अक्सर हमने बुजुर्गों को कहते सुना है कि ये बाल हमने धूप में सफ़ेद नहीं किये…..वाकई कितनी सत्यता है इस कहावत में …जिन्दगी यूँ ही चलते चलते हमें बहुत कुछ सिखा देती है और कभी कभी जीवन का मूल मन्त्र भी हमें यूँ ही अचानक किसी मोड़ पर मिल जाता है.अब आप सोच रहे होंगे कि किस लिए इतनी भूमिका बाँध रही हूँ मैं ? मुद्दे पर क्यों नहीं आती ..तो चलिए मुद्दे पर आते हैं आज आपको कुछ ऐसे वाकये सुनती हूँ जिनसे मुझे जीवन की सबसे बड़ी सीख मिली.पर शुरू करते हैं एक मजेदार किस्से से .
बात उन दिनों की है जब मैं १२ वीं के बाद अपनी आगे की पढ़ाई करने मोस्को (रशिया) गई थी.हमारे उस batch में करीब ५०-६० विद्यार्थी थे और हमें अपनी अपनी university भेजने से पहले १-२ दिन के लिए मोस्को के ही एक होटल में टिकाया गया था ,जहाँ खाने पीने तक की सारी व्यवस्था हमरे ऑर्गनाइजर. ही करते थे.और हमें कहीं भी बाहर जाने की इजाजत नहीं थी, क्योंकि हमें रूसी भाषा का बिलकुल ज्ञान नहीं था और वहां आम लोग बिलकुल अंग्रेजी नहीं समझते थे.खैर एक दिन हम कुछ दोस्तों (सभी भारतीय )को चाय की तलब लगी तो एक मित्र ने सलाह दी कि चलो होटल के कैफे में जाकर चाय पी जाये पर समस्या फिर वही की भाषा नहीं आती …हमारे उस मित्र महोदय में आत्म विश्वास कुछ ज्यादा ही था कहने लगा हम हैं न… समझा लेंगे ,सो हम केफे आ गए ..और शुरू हुई मुहीम वहां attendent को चाय समझाने की .अपने हाव भाव से, अंग्रेजी को तोड़-मोड़ के, घुमा घुमा का होंट बनाकर ,वह महोदय हो गए शुरू..अब हमारा वो दोस्त कहे ..टी-… टी …, फॉर टी pl .पर वो महिला समझ ही नहीं पा रही थी..थोड़ी देर सर फोड़ने के बाद …आखिरकार हमारा दोस्त खीज गया और झल्ला कर बोला ” चाय दे दे मेरी माँ.…………” और तुरंत ही जबाब मिला ” चाय खोचिश? ( चाय चाहिए) हमने जल्दी जल्दी हाँ मैं सर हिलाए..गोया हमने देर कि तो वो चाय को फिर से कॉफी समझ बैठेगी….हा हा हा …. उसदिन हमने रूसी भाषा का पहला शब्द सीखा…चाय……………रूसी में भी चाय को चाय ही कहते हैं..
अब आते हैं उस घटना पर जिसने मुझे जिन्दगी का शायद सबसे बड़ा सबक सिखाया…हुआ यूँ कि …मोस्को युनिवर्सिटी के ५ साला परास्नातक पाठ्यक्रम में जिसके …हर एक्जाम के लिए क्रमश ५ ( excellent ) ४ (good ) ३ ( satisfactory ) और २ (fail ) इस हिसाब से no दिए जाते थे …और जिसके शुरू से आखिर तक रिपोर्ट बुक में तीन या उससे कम विषय में से कम ४ no हो और बाकी के सब ५ उन्हें “रेड डिग्री” यानि की गोल्ड मेडल से नवाजा जाता है..तो जी बात उन दिनों की है जब मैं अपने आखिरी सेमेस्टर में थी और उस गोल्ड मेडल के ५ उम्मीदवारों में से १ उम्मेदवार भी……आगे २ exams और बचे थे और मेरी रिपोर्ट बुक में दो चौग्गी लग चुकीं थीं यानि सिर्फ एक ४ no की और गुंजाईश थी…एक exam बचा था रूसी भाषा का ..जिसमें मैं अपनी क्लास में अव्वल थी और दूसरा था इकोनोमिक्स का जिसमें मेरा हाथ ज़रा तंग था और पिछले सेमिस्टर में उसी में हम ४ no पा चुके थे और उसकी teacher ने हमसे हाथ जोड़ कर विनती की थी की pl .बस एक वो लाइन बोल दे जिसमें इस सवाल का जबाब है ..तेरी रिपोर्ट में पहली चौग्गी (४ no ) लगाने का पाप मैं अपने सर नहीं लेना चाहती ..पर भला हम क्या करते नहीं आ रही थी वो लाइन दिमाग में तो नहीं आ रही थी...खैर हमारे पास बस एक उपाय था कि उस रूसी के exam में पांच no ही लाने हैं…अब हम पहुँच गए exam देने और पता चला exam लेने वाली teacher बहुत ही खडूस है और बहुत मुश्किल से ५ no. देती है

खैर हमसे पहले और २ लोगों ने exam दिया जिन्होंने कभी १ बार में कोई exam पास नहीं किया था और उन्हें ५ no. मिल गए … हम हैरान ..फिर लगा भाई हो सकता है आखिरी साल है अक्ल आ गई होगी.अब हम पहुंचे, सारे जबाब दिए पर उन्होंने हमें पकडाए no. ४ . बात हमारी समझ में नहीं आई..पर कर क्या सकते थे ? हमने कहा हमें ये मंजूर नहीं हम दुबारा आयेंगे exam देने . हॉस्टल पहुँच कर देखते हैं वो दोनों अपनी जिन्दगी के पहले और आखिरी पंजी (५ अंक ) का जश्न मना रही थीं वहां हमें एक कॉमन फ्रेंड ने बताया कि उन्होंने एक महँगा गिफ्ट देकर उस teacher को खरीद लिया था..खैर हमें क्या ? हम फिर जुटे पढाई में और फिर से पहुंचे exam देने …पर इस बार उस teacher का रुख ही बदला था औपचारिकता वश १-२ सवाल पूछ कहने लगी कि नहीं मैं ४ से ज्यादा नहीं दे सकती…अब तो हमारा खून उबाल मारने लगा.जाने कौन सा भूत सवार हुआ … हमने छीनी अपनी रिपोर्ट बुक उसके हाथ से और चिल्लाकर कहा “मुझे पता है ५ no . कैसे मिलते हैं और अब मैं वैसे ही लुंगी.”और दनदनाते निकल गए कमरे से...वहां से हॉस्टल तो आ गए . वहाँ आकर एहसास हुआ कि क्या गज़ब कर आये हैं…अपने पैर पर खुद ही कुल्हाड़ी मार ली है…दोस्तों को बताया तो वो भी गलियां देने लगे ” दिमाग ख़राब हो गया है तेरा…teacher से लड़ आई …पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर ? अब ४ no भी नई मिलेंगे.”..पर अब क्या कर सकते थे तीर तो निकल चुका था कमान से ….कुछ न कुछ तो करना था . यूं अपनी ५ साल की मेहनत पानी में जाते नहीं देख सकते थे हम…..हम गए बाजार और एक बहुत ही खुबसूरत सा तोहफा खरीदा और लेकर पहुँच गए उस teacher को exam देने …एक हाथ में तोहफा और एक हाथ में रिपोर्ट बुक . teacher सामने आई तो सांस रुक सी गयी थी …आज से पहले किया कभी ऐसा काम किया नहीं था ..गला सूख रहा था …धडकते दिल से रिपोर्ट बुक पकड़ा दी..दूसरा हाथ आगे बढ़ाने ही वाले थे कि सुनाई दिया ” मुझे पता है आपने तैयारी की है मैं ५ no दे रही हूँ आपको.”..हमारी ऊपर की सांस ऊपर और नीचे की नीचे….अनवरत ही दूसरा हाथ पैकेट के साथ आगे आ गया….पर वो ये कह कर चली गई कि “नहीं इसकी कोई जरुरत नहीं ..आपका भविष्य सुखमय हो”……हम जडवत से खड़े थे वहां, मुंह से शुक्रिया भी न निकला…कानो में Dean द्वारा अपना नाम पुकारने और तालियों की गडगडाहट गूंजने लगी थी…...हमारी जिन्दगी का सबसे सुखद क्षण था वो….जिसने हमें हमारी जिन्दगी का पहला और सबसे जरुरी सबक सिखाया था...” अपना हक किसी को मिलता नहीं ,मांगना पड़ता है …और मांगने से भी न मिले तो छीनना पड़ता है ” अगर हम उस दिन चुपचाप ४ no लेकर आ गए होते तो ५ साल की हमारी सारी मेहनत पर एक नाइंसाफी की वजह से पानी फिर जाता …..पर आज एक उसी क्षण की वजह से हमारी डिग्री पर स्वर्ण अक्षर इंगित हैं ..शायद हमारे जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि ..और वो teacher जो शायद हमारी नफरत में कहीं होती आज हम उसे बड़े फक्र के साथ याद करते हैं


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