सर उठा रहा भुजंग है
क्रोध, रोष, दंभ है
बेबस है लाल भूमि के
शत्रु हो रहा दबंग है
फलफूल रहा आतंक है
और सो रहा मनुष्य है
अपनी ही माँ की छाती पर
वो उड़ेल रहा रक्त है
जिन चक्षु में था नेह भरा
क्रोध, रोष, दंभ है
बेबस है लाल भूमि के
शत्रु हो रहा दबंग है
फलफूल रहा आतंक है
और सो रहा मनुष्य है
अपनी ही माँ की छाती पर
वो उड़ेल रहा रक्त है
जिन चक्षु में था नेह भरा
वो पीड़ा से आज बंद हैं
माँ कहे मुझे नहीं देखना
मेरी कोख पर लगा कलंक है
नादान मासूम बच्चों को
कौन कर रहा यूँ भ्रष्ट है
माँ कहे मुझे नहीं देखना
मेरी कोख पर लगा कलंक है
नादान मासूम बच्चों को
कौन कर रहा यूँ भ्रष्ट है
चीत्कार उठी भारत माता
बस बहुत हुआ …ये अनर्थ है
पर न झुकेंगे हम,
न डरेंगे हम
जब तक है सांस लडेंगे हम
सपूत धरा के आये हैं
करने नष्ट शत्रु का ये दंभ.
बस बहुत हुआ …ये अनर्थ है
पर न झुकेंगे हम,
न डरेंगे हम
जब तक है सांस लडेंगे हम
सपूत धरा के आये हैं
करने नष्ट शत्रु का ये दंभ.
बहुत शानदार रचना….माँ की पुकार और चीत्कार दोनों ही सुनाई दे रही हैं….बहुत खूब
Adbhut… satya bhi hai…
Ganatantra diwas par shubhkamnayen
Jai Hind…
जोश आ गया यह कविता पढ़…वाह क्या कविता है…और इस गणतंत्र दिवस के अवसर पर ऐसी ही किसी रचना की जरूरत थी.बिलकुल आज़ादी की लड़ाई के दिनों में लिखी कविता जैसी..शुक्रिया शिखा
जिन चक्षु में था नेह भरा
वो पीडा से आज बंद हैं
माँ कहे मुझे नहीं देखना
मेरी कोख पर लगा कलंक है
नादान मासूम बच्चों को
कौन कर रहा यूँ भ्रष्ट है….ये पंक्तियाँ बहुत ही अनछुई सी हैं…आतंकवादियों की माँ पर क्या गुजरती है…किसी ने कभी नहीं सोचा..
न झुकेंगे हम, न डरेंगे हम
जब तक है सांस लडेंगे हम
सपूत धरा के आये हैं
करने नष्ट शत्रु का ये दंभ…
देशभक्ति का यह जज़्बा …. मन के अन्दर तक छू गया…. हम शत्रु का दंभ नष्ट कर के ही रहेंगे….
भारत माता की जय….
बहुत अच्छी लगी यह कविता…
जय भारत ,
जय हिंदी…
वन्दे मातरम….
शिखा जी, आदाब
बस यही एक डर लग रहा था,
आज के दिन 'मादरे-वतन' कोई शिकायत न कर बैठे
बेहद … भाव विभोर करने वाली रचना..!
(इस राष्ट्रीय पर्व पर हमें कुछ प्रण लेने चाहिये)
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
अच्छी कविता
गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई और शुभकामना …
बहुत अच्छा लिखा है आपने.
josh aa gya, pados me pakistan hai. narayan narayan
गणतन्त्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!
नया वर्ष स्वागत करता है, पहन नया परिधान ।
सारे जग से न्यारा अपना, है गणतंत्र महान ॥
अपनी ही माँ की छाती पर
वो उडेल रहा रक्त है
जिन चक्षु में था नेह भरा
वो पीडा से आज बंद हैं
माँ कहे मुझे नहीं देखना
मेरी कोख पर लगा कलंक है
नादान मासूम बच्चों को
कौन कर रहा यूँ भ्रष्ट है
आज की सच्चाई लिए हुए कविता है
शिखा जी बहुत पैनी कलम है आपकी
बहुत अच्छी सच्चाई को व्यां करती जोशिली कविता ।
बहुत ओजस्वी रचना. हार्दिक शुभकामनाएं.
रामराम.
इस दौर से बेहतर था असीरी का जमाना,
आजाद हैं और पावों में जंजीर पङी है।
परदेश में रहकर भी देश के लिए इतनी सुन्दर सोच !!!!!!! अकथनीय .
bahut hi sundar aur bhavmayi prastuti.
माता का क्रंदन होता है तो होने दो,
स्वार्थ से नाता जुड़ता है तो जुड़ने दो,
हम एक अकेले पूत नहीं इस माता के,
खामोश बने हैं सब तो हमको भी रहने दो.
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कुछ इस तरह की सोच हो गई है हमारी देश के प्रति. जो होता है वो होने दो की आदत ने ही चीत्कार तक पहुंचा डाला है. क्या कहें?????
आपकी रचना सोचने को मजबूर करती है ……………. सच में कोई स्पंदन नही रह गया है आत्मा में …….. स्वार्थ का बोल बाला है, माँ के क्रंदान को कोई नही देख रहा ……….. काश कुछ और साँसें जुड़ सकें आपकी साँसों के साथ और लड़ाई जारी रहे …….. बहुत अच्छी रचना है २६ जनवरी के उपलक्ष में ……..
न झुकेंगे हम, न डरेंगे हम
जब तक है सांस लडेंगे हम
सपूत धरा के आये हैं
करने नष्ट शत्रु का ये दंभ…
आपके इस जज़्बे को सलाम । जय हिन्द
दिनांक 27/01/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!
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'हो गया क्यों देश ऐसा' ………हलचल का रविवारीय विशेषांक…..रचनाकार….रूप चंद्र शास्त्री 'मयंक' जी
सशक्त और प्रभावशाली रचना…..
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