सर उठा रहा भुजंग है 
क्रोध, रोष, दंभ है 
बेबस है लाल भूमि के 
शत्रु हो रहा दबंग है 
फलफूल रहा आतंक है 
और सो रहा मनुष्य है 
अपनी ही माँ की छाती पर 
वो उड़ेल रहा रक्त है 
जिन चक्षु में था नेह भरा
वो पीड़ा से आज बंद हैं 
माँ कहे मुझे नहीं देखना 
मेरी कोख पर लगा कलंक है 
नादान मासूम बच्चों को 
कौन कर रहा यूँ भ्रष्ट है
चीत्कार उठी भारत माता 
बस बहुत हुआ …ये अनर्थ है 
पर न झुकेंगे हम, 
न डरेंगे हम 
जब तक है सांस लडेंगे हम 
सपूत धरा के आये हैं 
करने नष्ट शत्रु का ये दंभ.