बस एक दिन बचा है. EU के साथ या EU के बाहर. मैं अब तक कंफ्यूज हूँ. दिल कुछ कहता है और दिमाग कुछ और

दिल कहता है, बंटवारे से किसका भला हुआ है आजतक. मनुष्य एक सामाजिक- पारिवारिक प्राणी है. एक हद तक सीमाएं ठीक हैं. परन्तु एकदम अलग- थलग हो जाना पता नहीं कहाँ तक अच्छा होगा. इस छोटे से देश में ऐसी बहुत सी जरूरतें हैं जिसे बाहर वाले पूरा करते हैं, यह आसान होता है क्योंकि सीमाओं में कानूनी बंदिशें नहीं हैं. मिल -बाँट कर काम करना और आना- जाना सुविधाजनक है.

परन्तु सुविधाओं के साथ परेशानियां भी आती हैं. बढ़ते हुए अपराध, सड़कों पर घूमते ओफेंन्डर्स, बिगड़ती अर्थव्यवस्था, रोजगार कुछ ऐसी समस्याएं हैं जिनका निदान, सीमाएं अलग कर देने में ही दिखाई पड़ता है. खुले आम होते खून, दिन दहाड़े बढ़ती चोरियां, सड़कों पर खराब होता ट्रैफिक, स्कूलों, अस्पतालों में घटती जगह एवं उनका स्तर और पढ़े लिखों के बीच बढ़ती बेरोजगारी हर रोज डराती हैं  और दिमाग कहता है कि अलग हो जाना और फिर से अपनी मुद्रा, अपने खर्च, अपनी व्यवस्थाएं और कानून लागू करना ही एक मात्र रास्ता है.

वहीं एक डर अलग – थलग पड़ जाने का भी सालता है. एक छोटे से टुकड़े में एक आदमी के भरोसे फंस जाने का डर. इतिहास गवाह है जब सीमित संसाधनों से जरूरतें पूरी नहीं होती तो मंशा छीनने की हो आती है. दूसरों पर कब्जा करना, लूट पाट, और अनियंत्रित व्यवहार.
एक हद्द तक अच्छा होता है किसी का अपने सिर पर नियंत्रण, कुछ सामान अधिकार, जिम्मेदारी और कानून जिसका पालन हर कोई करे. पूरी तरह से आजादी अनियंत्रण और स्वछंदता भी लेकर आ सकती है.
फिलहाल स्थिति असमंजस की है. मेरी खासकर इसलिए कि बाहर आये तो इतना प्यारा यूरोप इतने आराम से घूमना बंद हो जायेगा  और फिर सुना है डैरी मिल्क चॉकलेट भी तो यूरोप से बाहर अच्छी नहीं मिलती …. 樂