आज निकली है धूप
बहुत अरसे बाद
सोचती हूँ
निकलूँ बाहर
समेट लूं जल्दी जल्दी
कर लूं कोटा पूरा
मन के विटामिन डी का
इससे पहले कि
फिर पलट आयें बादल
और ढक लें
मेरी उम्मीदों के सूरज को.
********
सिमटी होती है उसमें भी
लालिमा दिन भर की
जिसे ओढ़कर सो जाता है
क्षितिज की गोद में
लाने को फिर से नई सुबह
मेरी उम्मीदों का वह सूरज.
***********
पर यूँ भी तो है
कल उगे वो
पर ना पहुंचूं मैं उसतक
बंद हो खिड़की दरवाजे
ना पहुँच सके वो मुझतक.
तो बस
अभी ,इसी वक़्त
भरना है मुझे अपनी बाँहों में
मेरी उम्मीदों का सूरज.
*********
beautifully panned all three situations!
khoobsurat kavita
कितना सुन्दर, मन:स्थिति का वर्णन!….आभार!
spandanyukt ummeed ka sooraj ….
bahut sunder rachna …
shubhkamnayen …
सुन्दर…बहुत खूब.
आप एक अच्छी कवयित्री हैं। मुझे इसमें कोई शंका नहीं है। जिस तरह शब्दों को आप बिंबों में बांधती हं, और अनायास कोई नया अर्थ फूटता है, वह सबके बस की बात नहीं है। मैं इन तीनों छोटी-छोटी कविताओं को श्रेष्ठ कविता की श्रेणी में रखूंगा। इनमें भीतर का स्वर एक है, बाहर से चाहे अलग-अलग दिखे। एक जिजीविषा, एक आशा और एक उम्मीद के सहारे जीने की सचेष्ट आकांक्षा के भाव परिलक्षित होते हैं।
बहुत खूबसूरत दीदी…
लेकिन ये तारीफ़ अंतिम कविता के साथ वाली तस्वीर के लिए है..
कविता भी प्यारी सी, इंस्पीरेशनल सी है…तीनो..बहुत पसंद आई 🙂
वर्तमान के हर पल को पूर्ण रूप से जिया जाए .
कल का क्या भरोसा , क्या हो जाए .
बहुत खूबसूरती से लिखी क्षणिकाएं .
बहुत सुंदर लघु कविताएं.. आपकी उम्मीदों का सूरज यूं ही आपकी जिंदगी में उजाला भरता रहे..
सूरज लाली ऊष्णता, से जीवन उम्मीद ।
तन मन ऊर्जा प्राप्त कर, सदा मनाओ ईद ।।
सूरज आप तक बिना पहुंचे रह सकता है भला????
🙂
बहुत सुंदर रचनाएँ.
अनु
सूरज आप तक बिना पहुंचे रह सकता है भला????
🙂
बहुत सुंदर रचनाएँ.
अनु
श्रीकान्त मिश्र "कान्त " की मेल से प्राप्त टिप्पणी.
Dhoop ko bimb banakar ek utkrisht rachana k liye badhaai …
chhod dena ek tukda roshani
us tamas bhare kone ke liye
qaid hai jaha roodhiyo ki zanzeereo me
tathakathit bheeshm pitamah ki upadhi ko vaanchata
svyam kisi arjun ko chir bhedan hetu prateekshit ..
abhishapt.. apne hi vachan se…
chhota dhup ka.
वाह, जीवन तो उन्मुक्तता से जीना पड़ेगा, बिना कल से बँधे।
shikha ji ummid ka suraj sunder bimb me bandhi aapki kshanikaye bahut hi sunder hai aapko badhai .
rachana
बहुत खूबसूरत आशावादी रचना .. आभार .. !!
अरे! वाह………. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति…ऐज़ यू आर … ऑल आर वैरी गुड… अबाउट लाइफ एट इट्स फुल्लेस्ट…
अभी ,इसी वक़्त
भरना है मुझे अपनी बाँहों में
मेरी उम्मीदों का सूरज….उम्मीद की बेहतरीन अभिवयक्ति…..
उम्मीदों का एक उम्दा सृजन गीत!
बहुत बढ़िया प्रस्तुति!
घूम-घूमकर देखिए, अपना चर्चा मंच ।
लिंक आपका है यहीं, कोई नहीं प्रपंच।।
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
भर जाए बाहों में उम्मीदों का सूरज
वाह वाह, अच्छी लगी तीनो कविताएं !!!!
गया वक़्त दुबारा आये न आये जो पल मिले उसी में जी लो पूरा जीवन ……बहुत गहरी बात कह रही है रचना …अति सुन्दर
विटामिन डी मुबारक हो!
बहुत ही सुन्दर रचना…..
बेहतरीन भाव अभिव्यक्ति…
तीनो दृश्यों को (सबुह-शाम-रात) पढ़ने के बाद यह एहसास हुआ कि उम्मीदों का सूरज वक्त का मोहताज नहीं होता। यह तो अपने ही भीतर हर पल रोशन रहता है। जरूरत बस उसे पहचानने की होती है। उठो, जागो, धूप तुम्हारी मुठ्ठी में समा सकती है।
..अच्छी कविता है। अच्छा लगा पढ़कर। मगर तीनो साथ हों तभी अधिक असरकारी हैं।
मन को छू लेने वाली रचना…
कुछ अलग सी …प्रभावशाली रचना !
शुभकामनायें आपको !
बढिया है. यूं ही उम्मीदों के सूरज को समेटे रहो.
यह सुनहरी धूप
तुमको हो मुबारक
विटामिन डी मिले
भरपूर मन को
उम्मीद जब
सूरज बन इठलाएगी
फिर भला धुंध
कब तक छाएगी ?
भर बाहों में ले
तू उम्मीद का सूरज
घनघोर घटा फिर
और कहीं बरस जाएगी ।
तीनों क्षणिकाएं मन को ऊर्जा देती हुई … और चित्र तो कमाल के ही लगाए हैं … अंतिम वाले में तो लग रहा है कि सूरज बाहों में बस आ ही गया है :):)
उम्मीदों का सूरज कभी भी न डूबे यही दुआ है !
🙂
कविता नहीं पेंटिंग!! खूबसूरत!!
सुंदर सकारात्मक भाव….
कल को लेकर मानव मन सदा ही सशंकित रहा है । कल क्या होगा, कल किसने देखा है, कल हो न हो आदि कितनी ही अभिव्यंजनाएँ कल के अनिश्चित अपूर्वकथनीय रूप की पुष्टि करती हैं । इसीलिए 'आज' और 'अभी' का विचार मन को बहुत भाता है , रुचिकर भी लगता है । मुझे बहुत सुहाईं ये पंक्तियाँ : " पर यूं भी तो है / कल उगे वो / पर न पहुंचूँ मैं उस तक…/ तो बस / अभी इसी वक़्त / भरना है मुझे अपनी बाँहों में / मेरी उम्मीदों का सूरज । " अभिनन्दन शिखा जी सरल शब्दों में सुन्दर सृजन के लिए !!
इस पल को जी लें भरपूर , कल की उम्मीद भी रखें जरुर !
अच्छी रचना !
चित्रांकन,शब्दांकन और भावांकन बहुत मनोहारी एवं उत्प्रेरक,
एकदम विटामिन डी से भरपूर |
… जो भी है, बस यही इक पल है …
मन की विटामीन डी का प्रयोग अच्छा लगा। बढिया कविता के लिए बधाई।
उम्मीद का सूरज जलता रहे………सकारात्मक सोच
kash man ka Vitamin D ka kota pura ho pata:))
kash man ka Vitamin D ka kota pura ho pata:))
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
वाह आदरणीय शिखा जी…पढ़कर बहुत अच्छा लगा आपकी कविता…आगे भी यूँ ही अनुभ्रहित करते रहेण श्रृद्धेय!!
🙂
उम्मीदों का सूरज , जीवन के क्षितिज पर यूँ ही अपनी रश्मियाँ निछावर करते रहे . सुँदर सोच और अच्छी कविता की निष्पत्ति .
शिखा जी
आप बहुत अच्छा लिखती हैं…
अब तो आपको कविताओं की किताब के बारे में सोचना चाहिए…
उम्मीद का दामन कभी ना छूटे …
Ummeedon ka sooraj…
Aa jaye bahon main…
Aha…kya baat hai….bandh kar rakh diya….aapki kavitaon ne…
Khoobsoorat abhivyakti…aapki anya kavitaon ki tarah …
Deepak Shukla
बहुत ही बढ़िया ।
सादर
कल 29/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
हलचल – एक निवेदन +आज के लिंक्स
बहुत सुंदर रचनाएँ.
तो बस
अभी ,इसी वक़्त
भरना है मुझे अपनी बाँहों में
मेरी उम्मीदों का सूरज.
Aapkee kamana pooree ho!
शिखा जी बहुत सुन्दर भाव हैं । यह संयोग ही है कि सन् 86 में लिखी मेरी कविता जो आज तक अप्रकाशित है बहुत कुछ इसी तरह की है —सुबह होगई , संसार नहा गया रोशनी में , रात कहीं जाकर सोगई । धूप ..सुनहरी कोमल धूप, आ तुझे भरलूँ आँखों में देख सकूँ स्पष्ट,रंग रूप ,हट जाएं भ्रम दूर हो कुहासा….। कविता लम्बी है उसका भी निष्कर्ष यही है कि,–पता नही कब बादल घेर लें आसमान या रोकले कोई नदी को या रौंद डाले कोई हरीतिमा…या कि ऐसा कुछ न हो पर मैं ही न रहूँ इन्हें देखने ।
शिखा जी बहुत सुन्दर भाव हैं । यह संयोग ही है कि सन् 86 में लिखी मेरी कविता जो आज तक अप्रकाशित है बहुत कुछ इसी तरह की है —सुबह होगई , संसार नहा गया रोशनी में , रात कहीं जाकर सोगई । धूप ..सुनहरी कोमल धूप, आ तुझे भरलूँ आँखों में देख सकूँ स्पष्ट,रंग रूप ,हट जाएं भ्रम दूर हो कुहासा….। कविता लम्बी है उसका भी निष्कर्ष यही है कि,–पता नही कब बादल घेर लें आसमान या रोकले कोई नदी को या रौंद डाले कोई हरीतिमा…या कि ऐसा कुछ न हो पर मैं ही न रहूँ इन्हें देखने ।
सही है कल किसने देखा है… आज ही अपने हिस्से के सूरज से जी भर के मिल लिया जाये…
"भरना है मुझे अपनी बाँहों में
मेरी उम्मीदों का सूरज."
सुंदर रुपक से सजी सुंदर भावाभिव्यक्ति !
hmm..kal kare so aaj kar…bahut sundar rachna 🙂
सोचती हूँ
निकलूँ बाहर
समेट लूं जल्दी जल्दी
कर लूं कोटा पूरा
मन के विटामिन डी का ………..
बहुत सुन्दर
पहली बार आना हुआ आपके ब्लॉग पर…अच्छा लगा ..आती रहूंगी 🙂
बहुत प्रभावशाली सुंदर कविता …
bahut pyari kavita
हर कोई चाहता है इक मुट्ठी आसमान,
हर कोई ढूंढता है इक मुट्ठी आसमान…
जय हिंद…
बहुत सुन्दर
sabse pahle to der se aane k liye maafi 🙂 dusri baat ek gaana yaad aayaa aapki yh post padhkar.
"har ghadi badal rahi hai roop zindagi chanv hai kabhi kabhi hai dhup zindagi har pal yahan khul k jiyo jo hai samaa kal ho na ho" …..
शब्दों और भावों का बहुत उत्कृष्ट संयोजन…बहुत सशक्त और सुंदर प्रस्तुति..
Bahut sundar rachnaayein…
Bharna hai bahon mein ummidon ka suraj….bahut khoob
ब्लॉग बुलेटिन में एक बार फिर से हाज़िर हुआ हूँ, एक नए बुलेटिन "जिंदगी की जद्दोजहद और ब्लॉग बुलेटिन" लेकर, जिसमें आपकी पोस्ट की भी चर्चा है.
बहुत ही बढि़या प्रस्तुति।
wah…..bahot sunder kavita.
पर यूँ भी तो है
कल उगे वो
पर ना पहुंचूं मैं उसतक
बंद हो खिड़की दरवाजे
ना पहुँच सके वो मुझतक.
तो बस
अभी ,इसी वक़्त
भरना है मुझे अपनी बाँहों में
मेरी उम्मीदों का सूरज…
सच है इससे पहले की सूरज हातों से फिसल जाए … ये धूप ढल जाए … इसे समेटना होगा … लाजवाब एहसास …
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बहुत भावमय प्रस्तुति, उम्मीदों का सूरज, बधाई.
Khubsurat kavita… Man ke bhaavon ko shabdon mein bakhubi baandh liya aapne…
bhavnao ki sundar abhivyakti
sundar lekhan,bhavnao ki sundar abhivyakti
Bahut khoobsurat sabdo ko piroya hai apne
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