एक बड़े शहर में एक आलीशान मकान था. ऊंची दीवारें, मजबूत छत, खूबसूरत हवादार कमरे और बड़ी बड़ी खिड़कियाँ जहाँ से ताज़ी हवा आया करती थी. 

उस मकान में ज़हीन, खूबसूरत और सांस्कृतिक लोग प्रेम से रहा करते थे. पूरे शहर में उस परिवार की धाक थी. दूर दूर से लोग उनका घर देखने और उनके यहाँ अपना ज्ञान बढ़ाने आया करते थे. 

धीरे धीरे उस परिवार के लोगों को अपनी काबिलियत और रुतबे पर घमंड होता गया. स्वभाव में आलस और आत्ममुग्धता घर कर गई. उन्होंने अपने घर पर भी ध्यान देना बंद कर दिया। धीरे धीरे घर की हालत बिगड़ती गई. जालों ने जहाँ तहां अपना घर बना लिया, दीवारों से प्लास्टर उखड़ने लगा. पूरे घर में कीड़ों और चूहों का साम्राज्य हो गया. परिवार वाले बीमार पड़ने लगे. परन्तु घरवालों को इसकी कोई चिंता न थी वे अपनी शान में तल्लीन थे. 

घर की बिगड़ती हालत देख कुछ सदस्य पलायन कर गए, उन्होंने दूसरा घर तलाश लिया, उसे सुन्दर बना लिया। परन्तु उस पुराने घर के लोगों को उसे सुधारने में कोई रूचि न थी. उन्हें उसी तरह रहने की आदत हो गई थी. आस पास से गुजरते लोग उस आलिशान घर की ऐसी हालत को देखते तो परिवार वालों को बताते, उन्हें उसे सुधारने के लिए समझाते। परन्तु अपनी झूठी शान और अतीत पर इठलाता वह परिवार मानने को तैयार न होता और समझाने वालों को ही जलील कर भगा देता। 

धीरे धीरे लोगों ने वहां जाना, कुछ कहना बंद कर दिया और जर्जर होते उस आलिशान मकान की छत भी एक दिन डहडहा कर गिर पड़ी और एक शानदार घर, अपनी अकड़ में असमय ही खँडहर में तब्दील हो गया . जिसका कोई नाम लेवा भी अब न बचा था.