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सिंधु घाटी से मेसोपोटामिया तक
मोहन जोदड़ो से हड़प्पा तक 
कहाँ कहाँ से न गुजरी औरत, 
एक कब्र से दूसरी गुफा तक.
अपनी सहूलियत से 
करते उदघृत
देख कंकालों को 
कर दिया परिभाषित। 
इस काल में देवी 
उस में भोग्या  
इसमें पूज्य 
तो उसमें त्याज्या 
बदलती रही रूप 
सभ्यता दर सभ्यता। 
जिसने जैसा चाहा उसे रच दिया 
अपने अपने सांचे में फिर मढ लिया 
वस्तु एक खोज की भी वह बन गई है
बस बनने से एक इंसान ही रह गई है
सुना है अब फिर कोई हुई है खुदाई
फिर एक औरत आज गढ़ी गई है.