कभी यूँ भी तो हो
कि हम तुम मिलें
और कोई काम की बात न हो.
बेशक तुम लो चाय, मैं कॉफ़ी,
और बस मुस्कुराहट हो.
हों बहाने, शिकायतें, मशवरें,
बस न हो कोई भी मकसद.
मुफलिसी हो, मशक्कत हो,
या फिर हो मशरूफ़ियत.
आएं, बैठें, बोलें – बतियाएं,
पर ज़हन में कोई उम्मीद न हो.
हाँ कभी यूँ भी तो हो,
मिलें हम तुम और बस गुजर हो।