बस काफी भरी हुई है .तभी एक जोड़ा एक बड़ी सी प्राम लेकर बस में चढ़ता है.लड़की के हाथ में एक बड़ा बेबी बैग है और उसके साथ के लड़की नुमा लड़के ने वह महँगी प्राम थामी हुई है.दोनो  प्राम को सही जगह पर टिका कर बैठ जाते हैं. प्राम में एक बच्चा सोया हुआ है खूबसूरत कम्बल से लगभग पूरा ढका हुआ. सिर्फ आँख कान मुँह ही दिख रहे हैं. तभी लड़की ने बैग खोला उसमें से इवेंट की बोतल निकाली जो आधी दूध से भरी हुई है. उसने चुपचाप बच्चे के मुँह में लगा दी और कुछ सेकेंड में ही निकाल कर बैग में रख ली , अब लड़के ने बैग खोला उसमें से एक डाइपर निकाला और बड़ी ही कुशलता से कम्बल के अन्दर ही अन्दर बदल दिया. पहला डाइपर एक थैली में रखकर बैग की पिछली जेब में रख दिया , फिर दोनों चुप चाप बैठ गए. कुछ मिनट बाद लड़की ने फिर बैग में  हाथ डाला,फिर दूध की बोतल निकाली और फिर बच्चे के मुँह में लगा दी.फिर छोटे से मोज़े निकाले और बच्चे को पहना दिए , अब लड़के ने टोपी निकाली और पहना दी.वो जोड़ा जितनी देर बस में रहा लगातार उस बच्चे के साथ उनकी यही गतिविधियाँ बारी- बारी चलती रहीं, पर बिना एक भी शब्द बोले और बच्चा भी एक दम शांत. न  जाने क्यों सब कुछ बहुत अजीब सा था फिर भी लगा कि शायद तीनी गूंगे -बहरे हैं.ये ख्याल मन में आया तो एक कुछ सहानुभूति भी हुई. फिर वह जोड़ा अगले स्टॉप पर उतर गया. उतरते ही लड़की ने बच्चे को गोद में उठा लिया और लड़का बैग को प्राम में रख चलने लगा.इत्तेफाक से हमें भी उसी जगह उतरना था.अत: तब उस बच्चे का चेहरा करीब से देख अहसास हुआ कि वह बच्चा कोई बच्चा नहीं बल्कि बच्चे के लाइफ साइज का गुड्डा है..थोड़ी देर को जहाँ खड़े थे हम वहीँ खड़े रह गए थोड़ी देर में होश आया तो समझ में आया कि क्यों वह दोनों उस बच्चे का जरुरत से अधिक ख्याल रख रहे थे.क्यों उनमें उसके काम करने की होड़ लगी हुई थी. और क्यों वह कुछ भी नहीं बोल रहे थे.ओह.. हे भगवान्  तो यह जोड़ा लिस्बियन है. उफ़ उनकी मनोदशा का अहसास वेदना से भर गया. एक बच्चे की ललक उस जोड़े में इस कदर थी कि …और आखिर एक अप्राकृतिक रिश्ते को पूर्ण करने के लिए वे एक अप्राकृतिक बच्चा भी पाल रहे थे.वह एक तथा कथित असामान्य  जीवन जरुर जी रहे थे परन्तु अपने बच्चे को पालने के आनन्द की अनुभूति उनकी एकदम सामन्य और प्राकृतिक थी.

गर्भवती रिकी और मैरी  पोर्टास लिस्बियन बाल में।
इस बात को करीब चार साल गुजर गए .कई दिनों तक उस जोड़े के बारे में सोचती रही, उनकी घरेलू  जिन्दगी का अहसास करने की कोशिश करती रही और आखिर में बात आई गई हो गई.परन्तु कल एक समाचार पत्र में पढ़ी खबर ने जैसे फिर इस किस्से को मेरे स्मृतिपटल पर साकार कर दिया. और फिर से ना जाने कितने ही सवाल मेरे मस्तिष्क में हलचल मचाने लगे.खबर थी कि लन्दन में पहली बार आयोजित  “सिर्फ महिलाओं के लिए पॉश लिस्बियन बाल” में मैरी  पोर्टास (मैरी कुईन ऑफ शॉप ,एक अंग्रेजी व्यवसायी, खुदरा विशेषज्ञ, और प्रसारक, इन्हें  खुदरा और व्यापार से संबंधित टीवी शो, हाल ही में ब्रिटिश प्रधानमंत्री द्वारा ब्रिटेन की हाई स्ट्रीट बाजार के भविष्य पर एक समीक्षा का नेतृत्व करने के लिए उनकी नियुक्ति के लिए  – सबसे अधिक जाना जाता है.) अपनी गर्भवती महिला साथी फैशन  जर्नलिस्ट मलीन रिक्की के साथ हाथ में हाथ डाले पधारीं. लगभग २०० मेहमानों और हाई क्लास सेलेब्रिटी से भरी इस हाई क्लास पार्टी का उद्देश्य हाई सोसाइटी में लिस्बिअनिज्म को सामान्य दिखाना था .और तब पहली बार  गे अधिकारों से जुड़ा इंद्र धनुषी झंडा व्हाईट हॉल पर फहराया गया.
यहाँ यह गौरतलब है कि मैरी करीब १४ सालों से एक सामान्य शादीशुदा जीवन जी रहीं थीं. उनके पति से उनके २ बच्चे भी हैं और उसके बाद करीब २ साल से वह अपनी महिला साथी रिक्की के साथ रह रही हैं और अब यह घोषणा करती हैं कि उनकी साथी गर्भवती है और इस बच्चे का वह दोनों बेसब्री से इन्तजार कर रहीं हैं.

यूँ किसी भी इंसान का  अपनी रूचि अनुसार जीवन जीने के अधिकार को लेकर मेरे मन में कोई शंका नहीं है. हर इंसान को अपने मनपसंद साथी के साथ रहने का पूर्ण अधिकार होना चाहिए.परन्तु इस खबर ने मेरे मन में अजीब सी उथल पुथल मचा दी है  कि आखिर क्यों जो लोग एक विपरीत सामाजिक परिवेश में एक अप्राकृतिक कहा जाने वाला जीवन अपनी रूचि से स्वीकारते हैं, यह कहते हुए कि वह सामाजिक बन्धनों को नहीं मानते, उनकी जरूरतें और रुचियाँ अलग हैं, और उन्हें उनके अनुसार ही जीवन जीने दिया जाना चाहिए, वैसे ही स्वीकार किया जाना चाहिए . फिर वही लोग शिशु जन्म और बच्चे की चाह को लेकर वही सामान्य इच्छा रखते हैं और वो भी उस हद  तक कि उसके लिए कोई भी अप्राकृतिक तरीका अपनाते हैं. इस बारे में मैंने जब कुछ जानने की कोशिश की तो ना जाने कितने ही तरह के तथ्य सामने आये, कितने ही सवाल मैंने नेट पर देखे यह जानने के लिए, कि कैसे  लिस्बियन अपने साथी को गर्भधारण करा के बच्चा पा सकते हैं ? और मुझे आश्चर्य हुआ यह जानकार कि मेडिकल साइंस इतनी आगे बढ़ गई है कि उसके लिए कितने आसान तरीके बताये और अपनाये जाते हैं. जहाँ एक ओर  स्पर्म दान लेकर यह काम किया जाता है,यहाँ तक कि उसके लिए किसी डॉक्टर या लैबोरट्रि   की भी जरुरत नहीं समझी जाती खुद ही सीरिंज से उसे इन्सर्ट कर लिया जाता है, वहीँ स्कूलों में भी सामाजिक विषय के अंतर्गत पढाया जाता है कि किस तरह सामान सेक्स वाले लोग बच्चे का सुख ले सकते हैं. उनके लिए ज्यादातर किराये  की कोख लेने का प्रावधान है जहाँ दोनों साथियों के स्पर्म/एग्ग के नमूने लिए जाते हैं और उन्हें बताया नहीं जाता कि होने वाला बच्चा उनमें से किसका है, जिससे कि बाद में कभी वह अलग हों तो कोई एक बच्चे पर अपना अधिकार ना जमा सके.और यह सब अब कानूनी तरीके से होता है.और सभी अधिकार  और मान्यता प्राप्त है.

कितना आसान लगता है ना सुनने में यह सब. कोई समस्या ही नहीं. बच्चा पैदा करने के लिए एक स्त्री एक पुरुष का होना जरुरी नहीं ..जैसे बस खाद लेकर आइये खेत में डालिए और आलू प्याज की तरह उगाइये.
सभी को अपना जीवन अपनी तरह से जीने  का और हर तरह की खुशियाँ पाने अधिकार है.पर विपरीत सेक्स के प्रति आकर्षण नकारने वाले को आखिर ये शिशु जन्म और पालन जैसी इच्छा हो ही क्यों ?वो भी इस हद तक कि इन सब तरीकों में मुश्किल हो तो एक बेजान गुड्डे से पूरी की जाये.?  ऐसे जोड़ों की मानसिक स्थिति मेरी समझ में नहीं आती.क्या कभी वे उस बच्चे के भविष्य के बारे में सोचते हैं? माना कि आज उन्हें सारे कानूनी अधिकार हासिल हैं. पर कल वह बच्चा स्कूल भी जायेगा क्या वह अपने साथियों के बीच अपने गे/लिस्बियन माता पिता को लेकर सहज हो पायेगा.? आज भी स्कूलों में समानसेक्स में रूचि रखने वाले बच्चों को अलग दृष्टि से देखा जाता है, उन्हें परेशान किया जाता है , चिढाया जाता है. यहाँ तक कि कितने ही बच्चे इस सबसे तंग आकर आत्म हत्या तक कर लेते हैं.ऐसे में ऐसे मातापिता के प्रति वह मासूम बच्चा किस स्थिति से गुजरेगा क्या कभी ये लोग सोचते होंगे? 

मैं मानती हूँ कि उनकी अपनी स्थिति पर उनका कोई जोर नहीं. वह ऐसे हैं तो हैं. इसमें कोई बुराई नहीं. पर एक मासूम बच्चे को बिना उसके किसी दोष के इस स्थिति से दो चार होने पर मजबूर करने का क्या उनको हक़ है?

आज इस तरह के सम्बन्ध कानूनी तौर पर मान्य हैं.और काफी कुछ सामाजिक तौर पर भी उन्हें माना जाने लगा है. यह भी एक सामान्य व्यवस्था है. फिर क्यों ये लोग अपनी अलग ही परेड निकालते हैं? खुद को अपने पहनावे, हाव भाव से सामान्य लोगों से अलग दिखाने की कोशिश करते हैं ?अपने को अलग,बताते और होते हुए भी एक सामान्य परिवार की चाह भी रखते हैं…क्या आपको यह सब बेहद कन्फ़्यूजिंग  नहीं लगता? मैं तो बहुत कंफ्यूज हो गई हूँ.