तू बता दे ए जिन्दगी
किस रूप में चाहूँ तुझे मैं?
क्या उस ओस की तरह
जो गिरती तो है रातों को
फ़िर भी दमकती है.
या उस दूब की तरह
जिसपर गिर कर
शबनम चमकती है.
या फिर चाहूँ तुझे
या फिर चाहूँ तुझे
एक बूँद की मानिंद .
निस्वार्थ सी जो
घटा से अभी निकली है.
मुझे बता दे ए जिन्दगी
किस रूप में चाहूँ तुझे मैं.
कभी सोचती हूँ चाहूँ
उस चांदनी की तरह
बिखर जाती है जो
चाँद से प्यार करके.
या फिर उस किरण की तरह
निकल दिनकर से जो
फ़ैल जाती है ऊष्मा बनके .
फिर सोचती हूँ
क्यों ना बन जाऊं लौ दिए की
और जलती रहूँ रौशनी बनके .
तू ही बता दे ए जिन्दगी
किस रूप में चाहूँ तुझे मैं
रुक दो घड़ी सोचने दे ..
काश बन जाऊं वह नदी
जिससे ना रूठे सागर कभी
या फिर वो चंचल लहर
जिससे ना छूटे साहिल कभी
या फिर निशा की वो बेला
प्रभात से जो मिली अभी
तू बता दे ना ए जिन्दगी
किस रूप में चाहूँ तुझे मैं
नमस्कार…
कविता का आगाज़ अलग है…
तेरा ये अंदाज़ अलग है…
जीवन में इतने रूपक हैं…..
हर रूपक का साज़ अलग है…
सुन्दर भाव…
दीपक..
एक सुंदर सकारात्मक विचारों से युक्त भावपूर्ण कविता। बधाई। जीवन से प्रश्न पूछकर उनके उत्तर पाना मन को छू गया।
…एक एक शब्द में सुंदरता समाई हुई है कि दिल कह उठता है…वाह!
कुछ शब्द बड़ी चतुराई से पिरोये है आपने.. खूबसूरती को और बढा जाते है..
ऊष्मा और मानिंद खास तौर पर पसंद आये मुझे…
Jab chahne ki baat ho to,
jindgi ka har roop sundar lagta he!
aapne kai sare rupak diye, !
sundar ban padi he jindgi ki ye kavita/
badhai kabule
Zindagi jise bemani lagti ho,aise shakhs ko bhee aapki rachana padh,zindagi se pyaar ho jaye!
बहुत सुन्दर कविता…
''मिलिए रेखाओं के अप्रतिम जादूगर से…..'
तुम मुझे उन जंगलों के रूप में चाह सकती हो
जिनकी पगडंडियों पर तुम्हारे क़दमों की जगह अब खाली है
तुम मुझे मोहल्ले की उन तंग गलियों में सड़कों पर बने लाल निशानों के रूप में चाह सकती हो
जहाँ छोटे छोटे खानों में तुम्हारी सहेलियां अब भी खड़ी हैं
तुम मुझे उस पिता के मजबूत कंधों के रूप में चाह सकती हो
जिसने एक साथ कई जिंदगियों को थाम रखा था
और इसी बीच न जने कब खुद बूढ़ा हो गया
तुम घर के सामने से रोज गुजरने वाली उस सब्जी वाली के रूप में भी चाह सकती हो
जिसकी आवाज की तुम्हे उतनी ही आदत थी ,जितनी माँ के हाँथ के बने खाने की
तुम नुक्कड़ पर बैठ कर आसमान ताकने वाले उस अजनबी लड़के के रूप में भी मुझे चाह सकती हो
जो उस दिन तुम्हारी टूटी साइकिल से उम्र से ज्यादा जूझ कर थक गया था
और फिर एक दिन अचानक गायब हो गया
—
@ आवेश! वाह आपने तो गज़ब के रूपक जोड़ दिए जिंदगी में …शुक्रिया इतनी खूबसूरत पंक्तियों के लिए.
खूबसूरत रचना …शुभकामनायें !!
chitra me zindagi bata to rahi hai… suraj ki tarah rang ki tarah ehsaas ki tarah …. her bhaw hain us chitra me
behad khoobsoorat rachna…
aisa laga raha tha jaise aankho ke saamne pooree rachna chal rahee ho… padhne ke saath dekhne ka aanand bhi aaya…
thank u so much for such a lovely poem…
har roop main behtar hai jindagi
jaise bhi jiyo behtar ho jindagi
• इस कविता में आपकी वैचारिक त्वरा की मौलिकता नई दिशा में सोचने को विवश करती है।
beautiful poem didi….
loved it…awesome 🙂
ओस की बूंदें, सूरज की लालिमा, जिंदगी को चाहे जा सकने वाले रूप अनेक.
हर रूप में चाहो मुझे
हर पल एक नया रूप लेती हूँ
हर लम्हा बस मैं
तेरी चाहतों का इंतज़ार करती हूँ ….
नीचे लिखी पंक्तियाँ तुम्हारी रचना को पढ़ कर मन में आयीं …बस यूँ ही ..:)
ऐ ज़िंदगी –
तू बन कर किरण
ऊष्मा भरे जहाँ में
और समेट ले
शबनम अपने
आसमां में ….
बस हर रूप में
चाह बरकरार रख
और इसी तरह
ज़िंदगी को
खुशगवार रख …..
बहुत अच्छी … जैसे मेरे मन की बात कह दी हो :):) ..
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@संगीता स्वरुप ( गीत )..बहुत बहुत शुक्रिया दि! नए आयाम दे दिए आपने रचना को.
बहुत सुंदर …… सच में ज़िन्दगी को चाहने का सवाल कई बार ज़ेहन में आता है….. किस रूप में …किस तरह … आपने मनोभावों को बेहतरीन शब्द दिए……
क्यों ना बन जाऊं लौ दिए की
और जलती रहूँ रौशनी बनके .
आपका सोचना सही है …अगर आप दिए की लो बन जाते हो तो जिन्दगी स्वयं धन्य हो जाती है …प्रेरक कविता ..
प्रेम के परिप्रेक्ष्य में एक पूरा जीवन दर्शन समझा दिया आपने! मेरे जी में भी कुछ कहने की ख़्वाहिश थी, लेकिन फिर कभी!!
मुझे बता दे ए जिन्दगी
किस रूप में चाहूँ तुझे मैं
ati sunder bhav
जब जिन्दगी से ही प्रश्न पूछे जायें तो उत्तर मिलने लगते हैं।
रूपकों का बड़ा अच्छा समन्वय बनाया है, और ज़िन्दगी से जो भी सवाल किये गये हैं, वह तो चिर-शाश्वत हैं ही !
अरसे तक याद रहने वाली एक खूबसूरत रचना ।
सुन्दर एवं सार्थक रचना
सभी उपमाएं तलाश लीं आपने तो.
सुन्दर भाव, सुन्दर प्रस्तुति…
jindagi ke hoosn ke lakho rang,kaun sa rang dekho..ge
Wah! aapne to jindagi ke satrangi rango se bhi jyaada roop dikha diye.Shaandar abhivyakti.
shikha jee
bahuta sundara rachana
sundara shabda
arthvan
bhaavapoorn
तू बता दे ना ए जिन्दगी
किस रूप में चाहूँ तुझे मैं
har roop khoobsurat hai…
जिंदगी
बड़ी खुबसूरत है
खुबसूरत उसका है हर लम्हा……
इतने प्यार से कोई पूछता नहीं
वरना वो कभी यु इस तरह न होती तन्हा. ………
खुबसूरत एहसास के साथ सुंदर कविता ………. हर रूप उसका सुंदर है.
बहुत मनोहारी है..
अच्छी कविता है, लेकिन तुम्हारे संस्मरणों जितनी नहीं.( क्षमायाचना सहित) तुम्हारे संस्मरण कमाल होते हैं.
काश हमारे पास भी कुछ ऐसा रचने की संवेदना और क्षमता होती तो टिप्पणी में कुछ खास कहते फ़िलहाल बस इतना ही की
बहुत अच्छी लगी कविता |
सुबह की भोर मे सुरज की पहली किरण से चमकी ओस की बुंद की तरह से सुंदर चमकती आप की यह रचना लगी,अति सुंदर भाव लिये धन्यवाद
kavita acchi lagi di…par aawesh jee ki kavita padhne ke bad laga ki aapki kavita men nayapan kuch kam raha gaya..
सच कहते हो स्वप्निल ! उसे पढने के बाद तो मुझे भी ऐसे ही लगा 🙂 खैर वैसी ना सही, वैसी पंक्तियों की वजह तो बन ही गईं मेरी पंक्तियाँ 🙂 :).
किस किस रूप में चाहे जिंदगी को
हर रूप हर रंग ही जुदा है इसका
जैसी भी हो मगर होती है बड़ी खूबसूरत …
सूरज की ऊष्मा ,चन्द्रमा की चांदनी , फूलों की खुशबू , ओस में भीगे डूब , प्रकृति के हर रंग में है जिंदगी और इसलिए ही मुझे जिंदगी से प्यार है …
सुन्दर कविता !
अच्छी कामना और भावना के साथ लिखी गई सार्थक रचना के लिए बधाई!
किस रुप में चाहूं तुझे मैं….
बहुत बढिया..सुन्दरतम।
या फिर वो चंचल लहर
जिससे ना छूटे साहिल कभी
या फिर निशा की वो बेला
प्रभात से जो मिली अभी
तू बता दे ना ए जिन्दगी
किस रूप में चाहूँ तुझे मैं..
Beautiful presentation !
.
रूप कोई हो रंग कोई हो
हर हाल मे तुझे चाहूँ मै ज़िन्दगी
बहुत सुन्दर रचना है। बधाई।
जिंदगी के रंग , शिखा की कविता के संग . तुम जो भी लिखती हो एकदम दिल से और दिलो को छूने वाली, सारी विधाओ में निपुणता तुम्हारी लेखनी का अद्भुत आयाम है . आभार इस सुन्दर कविता के लिए .
bahut pyaari rachnaa 🙂
जीवन को प्रकृति के आयाम में जीवन को तलाशने का प्रयास अच्छा लगा। इसे पढ़कर भगवान दत्तात्रेय की याद आ गयी, जिन्होंने प्रकृति के चौबीस प्राणियों/वस्तुओं को अपना गुरु बनाया था। इसका विवरण भागवत महापुराण में मुझे पढ़ने को मिला। आभार।
काश बन जाऊं वह नदी
जिससे ना रूठे सागर कभी
या फिर वो चंचल लहर
जिससे ना छूटे साहिल कभी
या फिर निशा की वो बेला
प्रभात से जो मिली अभी
ज़िन्दगी से जिंदगी के लिए ज़िन्दगी बनकर ज़िन्दगी जीने की खूबसूरत पेशकश !
जीवन के विविध रंगों को .. अनेक रूपों को प्रतीक के माध्यम से लिखा है …
इन सभी माध्यमों में एक बात जो है वो ये है की जीवन जीने की आस रहनी चाहिए … किसी भी रूप में … सुन्दर रचना है ..
अच्छा … एक चीज़ बताइए… कि सुंदर लोग हमेशा सुंदर ही क्यूँ लिखते हैं?
चीज़ = बात
आई मीन एक बात बताइए…
बेहतर ख्याल ,बेहतर प्रस्तुति ! जिसे आवेश साहब ने बेहतरीन कर दिया !
वस्तुतः निर्मल प्रेम के स्वरुप का ही चित्रण किया है आपने इस मनोहारी कविता में…
चाहना, प्रेम तो सचमुच ऐसी ही होनी चाहिए…
बहुत बहुत बहुत ही सुन्दर भावाभिव्यक्ति…
राजेश रेड्डी साहब ने कहा है-
जाने कितनी उड़ान बाकी है
इस परिन्दे में जान बाकी है
इम्तहां से गुजर के क्या देखा
एक नया इम्तहां बाकी है
मुझे लगता है जिन्दगी को परीक्षा देने वाले विद्यार्थी की तरह ही चाहना चाहिए
एक और शायर ने कहा है न- जिन्दगी हर कदम एक नई जंग है
जो आदमी जिन्दगी के तमाशों से लड़ लेता है वह कभी-कभी मौत के तमाशों को भी हरा देता है. अच्छी रचना
ज्यादा विश्लेषण करूंगा तो लगेगा भाषण पिला रहा है.
mohabbat kee adayen bahut hain..:)
ek premi kaise naye naye bimbo ke dwara apne pyar ko dhundhta hai…!
bahut khub….sansamaran ke baad aapne dikha diya ki aapke tarkash me har tarah ke teer hain………..:D
HATS OFF!!
सुंदरतम.
रामराम.
जिन्दगी के इतने सारे रूपों में देखा और फिर उसको चित्रित भी बहुत प्यारे ढंग से देखा है. कुछ कहने को बचा ही कहाँ है?
बहुत सुंदर.
Sundar kalpnashakti ki dyotak kavita..
तू बता दे ए जिन्दगी
किस रूप में चाहूँ तुझे मैं?…
सुन्दर — सार्थक रचना..वाह!
जीवन की ये उद्दाम लालसाएं -कब अलग हुयी हैं शोख लहरे साहिल से ,और थम गयी है नदी सागर से मिलने को ….ओंस की बूँद पत्तियों पर आ मोती सी चमकने को .भला कब रुकी है ….और यह सब जब न होगा तो क्या सृष्टि रहेगी ?–
हाल में पढी गयी कविताओं में एक उत्कृष्ट कविता -बधाई!
जीवन के विविध रंगों को .. अनेक रूपों को प्रतीक के माध्यम से लिखा है ……प्रेम के गहन अनुभूति से सजी यह कविता दिल को छू लेती है… समर्पण का यह भाव कम ही देखने को मिलता है…
जिससे ना छूटे साहिल कभी
या फिर निशा की वो बेला
प्रभात से जो मिली अभी
तू बता दे ना ए जिन्दगी
किस रूप में चाहूँ तुझे मैं……….
सुन्दर भाव…
काश बन जाऊं वह नदी
जिससे ना रूठे सागर कभी
या फिर वो चंचल लहर
जिससे ना छूटे साहिल कभी
या फिर निशा की वो बेला
प्रभात से जो मिली अभी
वाह …बहुत ही खूबसूरत से सवाल है जिन्दगी से जिन्दगी ने पूछा है …लाजवाब ।
bahut sundar aur manmohak rachna.
wah…wah…wah !
bahoot sundar shikha ji
नौजवान भारत समाचार पत्र
सभी साथियो को सूचित किया जाता है कि हमने एक खोज शुरू की है युवा प्रतिभाओं की। जिसमें हम देश की उपेक्षित युवा प्रतिभाओं को आगे लाना चाहते है। जो युवा प्रतिभा इस में भाग लेना चाहते हो वो अपनी रचना इस ई मेल पर भेजें
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contect no. 097825-54044
090241-119668:48 PM
wah wah wah………………
bahut sundar
बहुत उम्दा शब्द रचना.
ज़िन्दगी को किसी भी रूप में चाहो,पर चाहो जरूर.
ज़िन्दगी है तो सब है,ज़िन्दगी नहीं तो कुछ भी नहीं.
आपकी कविता ने हर कवि के मन में एक नयी कविता को जन्म दे दिया है.यही आपकी कविता की सफलता है.
ज़िन्दगी को अगर कविता के रूप में चाहें तो भी चलेगा न.
आपकी कलम को ढेरों शुभ कामनाएं.
मैने कब कहा है पूनम का चाँद मेरा
हो जिंदगी में मेरे आठों पहर सबेरा
बस चाहना यही है, हो साथ तेरा मेरा
जुगनू की रोशनी हो,हो जब कभी अंधेरा।
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बहुत सुन्दर रचना, बधाई शिखा जी|
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