अधिकार हमने ले लिए

सम्मान अभी बाकी है।

बलिदान बहुत कर लिए,

अभिमान अभी बाकी है।

फर्लांग देहरी दिए बढ़ा,

आसमाँ पे अपने कदम।

खोल मन की सांकले,

निकास अभी बाकी है।

रूढ़ियों के घुप्प अंधेरे

चीर बनकर ‘शिखा’

स्त्रीत्व से चमकता,

स्वाभिमान अभी बाकी है।