क्या अब भी होली की टोली
घर घर जाया करती है ?
क्या सांझ ढले अब भी 
महफ़िल जमाया करती है।

क्या अब भी ढोलक की थापों पे
ठुमरी, ख्याल सजाये जाते हैं ?
“जोगी आयो शहर में व्योपारी”
क्या अब भी गाये जाते हैं।

क्या अबीर गुलाल की बिंदी
हर माथे पे लगाई जाती है ?
क्या गुटके रेता की अब भी
थाली जिमाई जाती है।

क्या अब भी खड़ी, बैठकी होली का
रिवाज निभाया जाता है ?
हुड़दंगी होली से अलग क्या
सांस्कृतिक पर्व मनाया जाता है।

छोड़ आये हम वो गलियाँ…