आज भी, जब भी विदेशी मीडिया में हिन्दुस्तान का जिक्र होता है तो उसमें सांप भालू का नाच दिखाते लोग, मूर्तियों को दूध पिलाते लोग दिखाए जाते हैं, भारत को किस्से कहानियों का, तमाशबीनों का देश समझा जाता है जिसके नागरिक किवदंतियों और चमत्कारिक कहानियों को अपना इतिहास बताते हैं.
जी हाँ, बरसों से सुनते आये हैं कि हम भारतीय बेबकूफ हैं, अन्धविश्वासी हैं. न जाने किन किन चीज़ों पर विश्वास करते हैं. पत्थर की मूर्तियाँ बना कर पूजते हैं वो भी १ – २ नहीं ३५ करोड़. इंसान तो इंसान सांप, हाथी, बन्दर यहाँ तक कि नदी और पेड़ पौधों को भी नहीं छोड़ते. मिर्गी के दौरों को किसी प्रेत आत्मा का असर समझते हैं और मीजिल्स जैसी बीमारियों को माता का प्रकोप. किसी अंग्रेज़ के लिए हिन्दुस्तान इतिहास का एक अध्याय जैसा है. और अब एक नया शिगूफा कि कोई भी बीमारी हो,डर हो तो उसके पीछे है.कोई राज़ पिछले जनम का…
पर जरा सोचिये क्या हम सचमुच अन्धविश्वासी हैं ? बेबकूफ हैं ? यदि हाँ तो फिर हम उन इजिप्शियन को क्या कहेंगे? जो नदी,पर्वत,सूरज आदि को पूजा करते थे. क्या वो मृत्यु के बाद की जिन्दगी पर विश्वास नहीं करते थे ?जिसके लिए उन्होंने mummified जैसी तकनीक इजाद की, जिसके साथ वो उसकी जरुरत का सारा सामान रखा करते थे, जिन्हें आज भी दुनिया के सबसे बड़े आश्चर्य के रूप में देखा जाता है. क्या कहेंगे आप दुनिया के एक सबसे विकसित और so called सभ्य कहे जाने वाले उस देश को जो उन mummies को इतिहास की सबसे बड़ी धरोहर और विज्ञान की एक उपलब्धि मानते हुए अब तक बड़े गर्व के साथ अपने संग्रहांलयों में सजाय हुए है.
ब्रिटिश मुजियम में रखी(संरक्षित ) एक जिंजर नाम की ममी जिसके साथ उसकी जरुरत का सामान भी मौजूद है
चलिए ईजिप्ट और उसकी बातें आदि काल की हो गईं पर क्या कहेंगे आप उन अंग्रेजों को? जो आज भी कुछ बड़े पत्थरों को एक स्थान पर सजाये (इंग्लैंड में स्थित स्टोन हेंज )बड़े फक्र से कहते हैं कि वह एक आश्चर्य है. वे पत्थर क्यों हैं, किसलिए हैं ? पता नहीं. शायद पहले लोग उनसे मौसम या ग्रहों की स्थिति का पता लगाते थे. अब उन्हें तो कोई बेबकूफ नहीं कहता पर जब हम कहते हैं हमारे पूर्वज बांस घुमा कर ग्रहों और मौसम की जानकारी पाते थे तो उसे कहानी कहा जाता है और हमारे पत्थर पूजने को अन्धविश्वास…
स्टोन हेंज
और तो और पश्चिम देशों में आज भी हेलोइन जैसे त्यौहार मनाये जाते हैं. भूत,चुड़ैलों के अस्तित्व को माना जाता है. यहाँ भी haunted house पर लोग यकीन करते हैं जहाँ उनकी रानियों की आत्माएं घूमा करती हैं. सांता क्लोस जैसे चमत्कारिक चरित्र पर बच्चों को विश्वास दिलाया जाता है. फिर उन्हें क्यों नहीं कोई अन्धविश्वासी कहता?
हेलोइन के दौरान अमरीकी सड़कों पर भुतहा परेड …त्यौहार मानते लोग.
जाने दीजिये ये सब. परन्तु प्रभु ईसा मसीह का एक दिन मरना और दूसरे दिन पुन: जीवित होना …इसे क्या कहेंगे आप ? क्या ये पुनर्जीवन नहीं है? इसपर तो सारा विश्व यकीन करता है…फिर हमारी ही मान्यताएं गलत और तर्कहीन क्यों? हम ही अन्धविश्वासी और बेबकूफ क्यों?
यहाँ ये सब कहने से मेरा ये मतलब कदापि नहीं कि हमें इन सबमें विश्वास करना चाहिए या अन्धविश्वासी होना चाहिए. मेरा मकसद किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुचना भी नहीं है. मेरा सवाल सिर्फ इतना है कि जब सारा विश्व इन मान्यताओं को किसी न किसी रूप में मानता है तो अन्धविश्वासी,पिछड़ा हुआ और बेबकूफ सिर्फ हम हिन्दुस्तानियों को ही क्यों कहा जाता है?