दुनिया का एक सर्वोच्च गणराज्य है
उसके हम आजाद बाशिंदे हैं
पर क्या वाकई हम आजाद हैं?
रीति रिवाजों के नाम पर

कुरीतियों को ढोते हैं ,
धर्म ,आस्था की आड़ में

साम्प्रदायिकता के बीज बोते हैं।
कभी तोड़ते हैं मंदिर मस्जिद कभी
जातिवाद पर दंगे करते हैं।
क्योंकि हम आजाद हैं….
कन्या के पैदा होने पर जहाँ
माँ का मुहँ लटक जाता है
उसके विवाह की शुभ बेला पर
बूढा बाप बेचारा बिक जाता है
बेटा चाहे जेसा भी हो
घर हमारा आबाद है
हाँ हम आजाद हैं।
घर से निकलती है बेटी तो
दिल माँ का धड़कने लगता है
जब तक न लौटे काम से साजन
दिल प्रिया का बोझिल रहता है
अपने ही घर में हर तरफ़
भय की जंजीरों का जंजाल हैं
हाँ हम आजाद हैं।
संसद में बेठे कर्णधार
जूते चप्पल की वर्षा करते हैं।
और घर में बैठकर हम
देश की व्यवस्था पर चर्चा करते हैं
हमारी स्वतंत्रता का क्या ये कोई
अनोखा सा अंदाज है?
क्या हम आजाद हैं?……