हवा हुए वे दिन जब बच्चे की तंदरुस्ती  से घर की सम्पन्नता को परखा जाता था. माताएं अपने बच्चे की बलाएँ ले ले नहीं थकती थीं कि  मेरा बच्चा खाते पीते घर का लगता है. एक वक़्त एक रोटी  कम खाई तो चिंता में घुल घुल कर बडबडाया  करती थीं ..हाय मेरे लाल ने आज कुछ नहीं खाया शायद तबियत ठीक नहीं है. नानी दादी से जब भी बच्चा मिले उन्हें हमेशा कमजोर  ही लगा करता था..अरे कितना कमजोर हो गया मेरा लाल,  कुछ खिलाती पिलाती नहीं क्या माँ. और जम कर घी और रबडी की पिलाई शुरू , कि देई तो भरी भरी ही अच्छी लगे है.
पर जी अब जमाना बदल गया है अब इस भरी भरी देह को मोटापा कहा जाता है और इसके पक्ष में अब माँ तो क्या दादी नानी भी देखी नहीं जातीं. आज जमाना दिखावट का है .शारीरिक आकार और सौष्ठव  बहुत मायने रखता है .ऐसे में आपका हृष्ट  पुष्ट बच्चा घर से बाहर या स्कूल में अपने साथियों के मध्य हास्य और उपहास  का कारण बन जाता है . .
आजकल बच्चों में मोटापा बढ़ता जा रहा है यानि “चाइल्ड ऑबेसिटी” की समस्या दिन ब दिन बढ़ रही है और बच्चे के साथ साथ माता पिता के लिए एक गहन चिंता का विषय बन रही है .
जिसके कारण के तौर पर सीधा सीधा बच्चे की गलत इटिंग हैबिट  को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है. 
बाजार में बढता जंक फ़ूड का प्रचलन और बच्चों में उनके प्रति आकर्षण को हम सीधा निशाना बना देते हैं और उन्हें गालियाँ देकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेते हैं.
 “सारे दिन बस चरता ही रहता है ये जुमला उछालते अक्सर हम कुछ बच्चों के माता पिता को देखते हैं .
यह सही है कि बाजारू जंक फ़ूड बच्चों में ऑबेसिटी का एक मुख्य कारण है परन्तु इसके पीछे और भी बहुत से कारण हैं जिन्हें हम नजरअंदाज कर देते हैं. 
बच्चा क्यों सारे दिन चर रहा है, इसका कारण जानना हम जरुरी नहीं समझते .
ज्यादातर देखा जाता है कि तनाव में इंसान अधिक खाता है .और बच्चों में यह तनाव कई बार बहुत ही छोटी छोटी बातों को लेकर हो सकता है .
जैसे घर में हुए छोटे मोटे झगडे. 
स्कूल में किसी साथी से अनबन. 
अपने शारीरिक गठन को लेकर सुनी गई टिप्पणियाँ. 
 परीक्षा में आये कम अंक.  इत्यादि इत्यादि . 
बच्चा इन कारणों को नहीं समझ पाता ,.बाहर से वह आहत हो कर, तनाव लेकर  घर, प्यार की तलाश में आता है. और  घर आकर उसके खाने को लेकर घरवालों  की  कटु टिप्पणियाँ उसे और तनाव ग्रस्त कर देती हैं. खाद्य पदार्थ अक्सर प्यार के, और अपमान से छिपने के  विकल्प के रूप में दीखता है. अत: तनाव में उसका ध्यान सिर्फ खाने पर ही जाता है और वह निराश होकर और अधिक खाना शुरू कर देता है.
कई बार देखा गया है कि मोटापे के चलते माता पिता बच्चों पर खाने पीने की रोक टोक करते हैं .और इन परिस्थितियों में बच्चा बाहरी खाने के प्रति और ज्यादा आकर्षित हो जाता है. 
मतलब यह कि मोटापे का एक कारण गलत और अधिक खाना तो है परन्तु इससे भी ज्यादा  मानसिक होता है और जाने अनजाने हम वह कारण बन जाते हैं.
परन्तु इसके विपरीत थोड़ी सी भी समझदारी से काम लेकर हम बच्चे की इस अवस्था में मदद कर सकते हैं और उसे मोटापे से छुटकारा पाने में सहायक हो सकते हैं..
बच्चा अपने मोटापे के कारण घर से बाहर अपमानित होता है ,उसके साथी बच्चे उसे चिढाते हैं, उसके कोमल मन पर इसका गहरा असर होता है.हाँ बाहर वालों को तो हम नहीं रोक सकते,  परन्तु अपने घर का वातावरण नियंत्रित कर सकते हैं . 
जब वह घर आये तो जरुरी है कि घर वाले उससे प्रेम से व्यवहार करें, 
मजाक में भी उसे चिढायें  नहीं . 
उससे बात करें उसे विश्वास दिलाएं कि शारीरिक सौन्दर्य से ज्यादा मानसिक सौन्दर्य महत्त्वपूर्ण  है.
उसके उन गुणों के बारे में उसे बताएं जिसकी वजह से वह दूसरों से अधिक आकर्षित बनता है. 
आप जितना उसके गुणों की तारीफ करेंगे उसका आत्मविश्वास उतना ही बढेगा और बाहर वालों की टिप्पणियों का असर उसपर कम होता रहेगा.
बच्चे को अच्छी फ़ूड हैबिट और कसरत आदि के लिए उत्साहित अवश्य करें परन्तु कभी भी उसे ऐसा करने के बदले इनाम के तौर पर किसी खाने की वस्तु  का लालच ना दें .ऐसा करके आप ना चाहते हुए भी उसका खाद्य पदार्थ के प्रति आकर्षण बढ़ाते हैं. इसके बदले उसे कोई फिल्म दिखाने का या कहीं घुमाने ले जाने का पुरस्कार दें .
एक बच्चा जो देखता है वही सीखता है जरुरी है कि पूरा परिवार स्वास्थ्य और भोजन के प्रति सतर्क रहे सभी स्वास्थ्य के लिए अच्छा भोजन करें ,व्यायाम करें और अपने निजी प्रस्तुतीकरण के महत्त्व  को समझें. अपने बच्चे के लिए अनुकरणीय बने . धीरे धीरे वह भी उसी दिनचर्या का आदी हो जायेगा.


बच्चे की ज्यादा खाने की आदत के पीछे बहुत से सामाजिक ,शारीरिक और मनोवैज्ञानिक कारण हो सकते हैं अत:कभी भी .
बच्चे को वजन कम ना करने का दोषी करार ना दें बल्कि उसके पीछे छुप्पी समस्या को तलाशें ,उसे समझें और उसका हल निकालें