राष्ट्र मंडल खेल खतरे  में हैं क्यों?  क्योंकि एक जिम्मेदारी भी ठीक से नहीं निभा सकते हम .बड़े संस्कारों की दुहाई देते हैं हम. ” अतिथि देवो भव : का नारा लगाते हैं परन्तु अपने देश में कुछ मेहमानों का ठीक से स्वागत तो दूर उनके लिए सुविधाजनक व्यवस्था भी नहीं कर पाए. इतनी दुर्व्यवस्था  कि  मेहमान भी आने से मना कर करने लगे. और कितनी शर्मिंदगी झेलने की शक्ति है हममें ? बस एक दूसरे  पर उंगली उठा देते हैं हम .हंगामा बरपा  है जनता कहती है कि ये राष्ट्रमंडल खेल बचपन खा गए , जनता को असुविधा हो रही है,अचानक से सबके अधिकारों का         हनन होने लगा है  और सरकार कहती है कि  शादी और खेलों के लिए ये समय अनुकूल नहीं ..वाह क्या लॉजिक   है. क्या आसान  तरीका है अपना पल्ला झाड़ने का ,अरे क्या ये  हमारा देश नहीं ? क्या  उसकी इज्जत की खातिर थोड़ी असुविधा नहीं झेल सकते हम ? मुझे याद है चीन जैसे देश में एक एक नागरिक ओलम्पिक की तैयारी में कमर कस  के जुट गया था, हर इंसान अंग्रेजी सीख रहा था कि आने वाले मेहमानों की सहायता कर सके .पर हम तो महान देश के महान नागरिक है.  हम सिर्फ मीन मेंख निकालेंगे और अपने संस्कारों की दुहाई देते रहेंगे बस  .क्यों नहीं हम कुछ अच्छा सीख सकते किसी से ?
इस रविवार को लन्दन में गणपति विसर्जन किया गया एक ऐसा त्योहार मनाया गया जिसे पर्यावरण  के लिए ठीक नहीं कहा जा सकता,  परन्तु फिर भी यहाँ रह रहे हिन्दू निवासियों की भावनाओं का सम्मान करते हुए  और उनकी सुविधानुसार  इसे परंपरागत रूप से मनाने के लिए सभी सुविधाएँ उपलब्ध  कराई जाती हैं .देश  के कुछ बड़े समुद्री  किनारों पर बाकायदा  विसर्जन की व्यवस्था की  जाती है जिसमें सभी सरकारी महकमो का पूर्ण रूप से योगदान रहता है .
पास ही एक “साऊथ एंड बाये सी” पर रविवार को यह उत्सव मनाया गया बहुत बड़ा पंडाल  लगाया गया था . सुरक्षा के तौर पर पूरी पुलिस टीम मौजूद थी, आपातकालीन एम्बुलेंस की व्यवस्था थी और आने जाने वालों के लिए सुबह से शाम तक का भंडारा .गणपति  बाप्पा मोरिया के स्वर क्षितिज तक गूँज रहे थे समुन्द्र  के एक छोटे से किनारे को काट कर एक खास स्थान बनाया गया था जहाँ पर विसर्जन किया जा रहा था .सरकरी महकमे के कई गणमान्य व्यक्ति वहां मौजूद  थे और भाषा की अनभिज्ञता के वावजूद उत्सव में पूरे जोश के साथ हिस्सा ले रहे थे . कितने गर्व के साथ हौंसलो इलाके  के “मेयर” ने कहा था कि उन्हें गर्व है अपने इंग्लिश होने पर और अपने देश पर, जो इतने सुव्यवस्थित तरीके से बाहरी समुदायों  के ऐसे आयोजनों को आयोजित कर पाते हैं और उनमें पूरे दिल से हिस्सा लेते हैं” .
वहां विसर्जन देखने वालों में स्थानीय  अंग्रेज़ नागरिक भी भारी मात्रा में थे , जिन्हें ख़ुशी महसूस हो रही थी कि उन्हें इस तरह के उत्सव को  देखने का मौका मिला . उनके मुताबिक वो भी अपने अन्दर एक उर्जा का एहसास कर रहे थे . 
क्या इस आयोजन की तैयारियों से उन्हें असुविधा नहीं हुई होगी ? पूरे दिन लाउड स्पीकर पर ऐसी भाषा सुनना जिसका एक शब्द उन्हें समझ में नहीं आता , समुद्री किनारे का पूरी तरह जाम होना , उनके समुद्री   किनारे क्या गंदे नहीं हो रहे थे ? – परन्तु नहीं …इन सबसे ऊपर थी उनकी  अपने देश  के प्रति भावना एक अच्छे  मेज़बान   और जिम्मेदार नागरिक की तरह वे  हर तरह से अपना योगदान दे रहे थे.
आइये आपको उस उत्सव की कुछ झलकियाँ दिखाती हूँ.


बाएं से दायें तीसरे नंबर पर हौंसलो इलाके के मेयर
बाकी गणमान्य व्यक्तियों के साथ


भंडारा गणपति का

गणपति बाप्पा मोरिया …