कहते हैं, 

गरजने वाले बादल बरसते नहीं 

पर यहाँ तो गर्जन भी है और बौछार भी 
जैसे रो रहे हों बुक्का फाड़ कर. 
चीर कर आसमान का सीना 
धरती पर टपक पड़ने को तैयार. 
बताने को अपनी पीड़ा. 
कि भर गया है उनका घर 
उस गहरे काले धुएं से 
जो निकलता है 
धरती वालों की फैक्ट्रियों से. 
दम घुटता है अब बादलों का 
अपने ही आकाश में 
फट पड़ता है उनका गुबार 
और बरस पड़ता है जमीन पर 
भयंकर चीत्कार के साथ.