पिछले दिनों एक समाचार पत्र में छपी खबर के मुताबिक एक 16 साल के लड़के को 15 हूडी लड़कों ने चाकू से गोदकर बेरहमी से सरे आम सड़क

 पर मार डाला . वह बच्चा छोड़ दो  , ऐसा मत करो की गुहार लगाता रहा और वे उसे चाकू से मारते रहे। यह इस साल का लन्दन में होने वाला पहला नाबालिक लड़के का खून है जबकि पिछले साल 17 वर्षीय एक युवक को ऐसे ही चाकू से वार करके मृत अवस्था में सड़क पर छोड़ दिया गया था। रिकॉर्ड के मुताबिक सन 2005 से अब तक लन्दन में 146 नवयुवकों की हत्या हो चुकी है।  


जहां लन्दन पुलिस के सामने यह गैंग प्रमुख चुनौती बने हुए हैं वहीँ लन्दन में रहने वाले नवयुवकों के माता – पिता के लिए यह हमेशा एक खौफ का विषय रहा है। इन गैंगों  के सदस्य इलाके के आधार पर होते है सामान्यत: एक ही स्कूल केएक ही इलाके में आसपास में रहने वाले लड़के आपस में एक गैंग बना लिया करते हैं और एक साथ ही घूमते  फिरते और बाकी गतिविधियाँ करते हैं।  

ऐसा नहीं है कि सारे ही गैंग आपराधिक प्रवृति के होते हैं। इनमें से कुछ गैंग्स सिर्फ दोस्तों के साथ घूमने  – फिरने तक सीमित भी होते हैं



परन्तु अधिकांशत: सड़क पर हल्ला गुल्ला करनागंदगी फैलाना लोगों को डराना , शो ऑफ करना इनकी सामन्य गतिविधियाँ होती हैकुछ के पास चाकू और गन जैसे खतरनाक हथियार भी होते हैं जिनका इस्तेमाल ये शो ऑफ के अलावा छोटी मोटी लूटपाट और कभी कभी गंभीर अपराध को अंजाम देने के लिए भी करते हैं। इन गैंगों के सदस्य किसी भी अन्य नवयुवकों जैसे ही होते हैं -महंगे ट्रेक सूटखिसकती हुई जींस और हुड वाली जेकेट या टोपीरास्तों में शोर मचाते, मस्ती करतेऔर धुंआ उड़ाते और अपने साथियों को अलग ही स्ट्रीट नामों से जोर जोर से पुकारते हुए इन्हें देखा जा सकता है। इनके गैंग्स के भी अलग अलग नाम होते हैं।कुछ ऐसे ही गैंग सदस्यों से बात करने पर, ख़बरों के माध्यम से सामने आया कि इन गैंगों में शामिल होने के जो  कारण हैं वो अमूनन बहुत ही सामान्य से होते हैं – जैसे कुछ खास करने को नहीं है तो यही गैंग बना लोघर में माता पिता व्यस्त हैं, ध्यान रखने वाला कोई नहीं तो अकेलेपन को हटाने के लिए शामिल हो गए या फिर दूसरे  लड़कों की गुंडा गर्दी या छेड़ छाड़ से बचने के लिए किसी गैंग का हिस्सा बन गए और इस तरह वे अपने आप को सुरक्षित महसूस करते है कि कोई उनसे अब कुछ नहीं कह सकता। ऐसे में किसी भी नवयुवक के लिए इनकी जीवन शैली की तथाकथित कूलनेस से प्रभावित होकर इनके साथ शामिल हो जाना मुश्किल नहीं होता।परन्तु एक बार शामिल होकरगलती समझ आ जाने पर भी इससे निकलना उनके लिए असंभव होता है इसके लिए उन्हें जान से मारने की धमकी तक मिलती है और इसे अंजाम भी दिया जा सकता है।
2007 में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक अकेले लन्दन में ही करीब 169 (करीब 5000 सदस्य ) अलग अलग ऐसे गैंग्स हैं जिनमें से एक चौथाई हत्या जैसे गंभीर मामलों में शामिल है

हालाँकि मेट पुलिस के अनुसार सितम्बर 2012 में आई रिपोर्ट्स के मुताबिक पिछले वर्ष अप्रैल से ऐसे अपराधों में लगभग34% की कमी देखी गई है, 1500 से ज्यादा ऐसे गैंग सदस्य गिरफ्तार किये गए हैं जो आपराधिक मामलों में शामिल थेऐसे गैंग्स से निबटने के लिए अलग से खास यूनिट बनाई गई है 


इनके ऑफिसर, बच्चों को इन गैंग्स में शामिल होने से रोकने के लिए स्कूलों में जाकर कार्यक्रम चला रहे हैं। जहाँ बात चीत के जरिये बच्चों को इस तरफ आकर्षित होने से रोके जाने की कोशिश की जाती है।बच्चों को बताया जाता है कि  कोई उन्हें किसी गैंग में शामिल करने की कोशिश करे या जबरदस्ती करे तो कैसे इससे बचा जा सकें।

परन्तु यह समस्या युवा होते बच्चों के माता पिता या अविभावकों के लिए एक डर का कारण तो है ही। खासकर एशिया मूल के लोगों के लिए एक अजीब सी असमंजस की स्थिति रहती है। सामान्यत: लोग लड़की के पालन पोषण के लिए, उसकी सुरक्षा के लिए चिंतित रहते हैं परन्तु लन्दन में रहने वाले एशियाई माता पिता के लिए लड़के को बड़ा करना उससे भी बड़ी चुनौती  है। वह चाहते हैं उनका बेटा भी बाहर की दुनिया से रू ब रू होघूमे फिरेदोस्त बनाए काम करे और अनुकूल माहौल में अपने आपको ढालना सीखे। परन्तु एक डर में हमेशा जीते रहते हैं कि अनजाने में ही अपने हमउम्रों के साथ उनकी तरह कूल बनने के चक्कर में या उनके उकसाए जाने पर कहीं किसी आपराधिक गैंग का हिस्सा न बन जाए या फिर उनसे कोई दुश्मनी ही न मोल ले बैठे। 
वहीँ उसे अधिक सुरक्षा या अपने में सिमित रखने पर अंदेशा रहता है कि वह स्कूल में बाकी साथियों के सामने हीन भावना का शिकार न हो जायेसाथियों के मखौल उड़ाने की वजह से उनका अच्छा भला पढने लिखने वाला बच्चा कहीं गलत रास्ते का चुनाव न कर ले। बेशक कोई गैंग आपराधिक या नुकसानदेह न हो परन्तु उनका रहन सहन और चाल चलन एशियाई अभिभावकों को कभी रास नहीं आ सकता