याद है तुम्हें ?
उस रात को चांदनी में बैठकर
कितने वादे किये थे
कितनी कसमें खाईं थीं.
सुना था, उस ठंडी सी हवा ने
जताई भी थी अपनी असहमति
हटा के शाल मेरे कन्धों से.
पर मैंने भींच लिया था उसे
अपने दोनों हाथों से.
नहीं सुनना चाहती थी मैं
कुछ भी
किसी से भी.
अब किससे करूँ शिकायत
कहाँ ले जाऊं फ़रियाद
जिसे हाजिर नाजिर जाना था,
बनाया था चश्मदीद अपना
सुना था उसने सबकुछ.
कमबख्त वह चाँद भी तो गूंगा निकला.
🙂 ho sakta hai suna ho..ho sakta hai gunga na ho, par chuppi sadhe hai…… 🙂
जिसे हाजिर नाजिर जाना था,
बनाया था चश्मदीद अपना
सुना था उसने सबकुछ.
कमबख्त वह चाँद भी तो गूंगा निकला.
Chaand ki upasthiti me kiye gaye vaadon aur baaton ki yaad bhulaaye nahi bhoolti… Aur laanchan bhi usi chaand ko lagta hai jab wah fariyaad sunate waqt goonga ho jaata hai…
Bahut sundar rachna …
Saadar !!
मौन तो तू तब भी था… खायी थी कसमे प्यार की….
ऐ चाँद !! जब चांदनी तले तेरी…. आज तू भी यहीं है और तेरी चांदनी भी
है यहीं…. आंसू का सैलाब मेरा मेरे साथ है…. तुझे घूरती हूँ जब डबडबायी इन आँखों से…. आभास हो जाता है मुझको की ऐ चाँद!! तू तो मूक है….
चाँद गूंगा है, पर सब देखता है, उसकी मुस्कान ही उसकी गवाही है !!!
बहुत उम्दा!
सच कहा आपने गूंगा है चाँद यह सभी जानते हैं मगर फिर भी सभी के दिलों के राज़ उसी के सामने खुला करते हैं शायद उसका यही गूंगापन तसल्ली है इस बात की कि कोई तो है जो बिना किसी शिकवे शिकायत के आपकी बात को सुन लेता है और राज़ रखता है हमेशा के लिए ….
चाँद गूंगा नहीं है……गवाही नहीं देता बस…किसका पक्ष ले इसी उधेड़बुन में घटता बढ़ता रहता है बेचारा…
अनु
बहुत खूब …
चाँद बोलने लगा तो न जाने कितनी प्रेम कहानियाँ कभी पूरी ही न होंगी !
बहुत उम्दा ,बहुत खूब ,
चाँद का गूंगा रह जाना ही ठीक था , उसने जाने क्या देखा होगा !
अब चाँद किस किस की गवाही दे …. सब उसे ही साक्षी बना देते हैं ….
मेरी चाँदनी ने
ठंडी हवा से
करवाया था इशारा
मैं देख रहा था
कि
नहीं सुनना चाहती थीं
तुम किसी की भी बात
वक़्त निकाल गया
जब हाथ से
तो मेरा मौन ही
श्रेयष्कर है —- चाँद
:):)..
" kuchh to majbooriyan rahi hongi/ yun koi bewafa nahin hota "
chaand, ya yun kahen ki premi, ka samay ke saath-saath bhavnashunya hote jaana aur fir preyasi ke sab armanon ko masalkar rakh dena–prem ki yah parinati sachmuch bahut peedadayak hoti hai. kavita ki antim pankti "kambaqht wah chaand bhi to goonga nikla" prem mein chhali gayi preyasi ki kheejh, jhunjhlahat, aur avyakt vedna ko prabhavpurn tareeke se vyakt kar rahi hai. premi hriday ke sahaj manobhavon ko saral shabdon mein sundarta se goontha hai! ek aur sundar kavita ke liye abhinandan Shikha ji!
मगर यह चाँद तो मुखर निकला 🙂
चाँद सब कुछ देखता है…कहता भी है कवियों की लेखनी से|
उसे भी तो चाँदनी से शिकायत है लेकिन वह बेचारा कहाँ जाए अपनी फरियाद लेकर!
bahut khub surat kabita —–hriday ko chhu jane wali.
अगर चांद गवाही दे देता तो भूचाल आ जाता । उसका मूक रहना ही ठीक है कुछ दर्द दिल में दबे रहने ठीक है कुछ दर्द भी होना चाहिये
विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर देश के नेताओं के लिए दुआ कीजिये – ब्लॉग बुलेटिन आज विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर पूरी ब्लॉग बुलेटिन टीम और पूरे ब्लॉग जगत की ओर से हम देश के नेताओं के लिए दुआ करते है … आपकी यह पोस्ट भी इस प्रयास मे हमारा साथ दे रही है … आपको सादर आभार !
चाँद ने देखा था सबकुछ
चाँद ने सबकुछ सुना था
इसलिए तो मुस्कुराता सा टंगा था
बन के इक स्माईली उन प्यार के वादों पे
लेकिन छिप गया
और सी लिया मुँह उसने अपना
बन गया गूंगा
कि यह इंसान खुद ही
तोड़ता है जब मुहब्बत के सभी वादे
तो फिर उसकी गवाही
माँगता क्यूँ है
यही फितरत है इंसानों की
अपनी स्याह करतूतों की खातिर
माँगता है वो गवाही
चाँद से तारों से और दिलकश फिजाओं से!
अरे चाँद पहले बोलता था ,सुन प्यार की बाते डोलता था
प्रेमियों की बाते सुनकर , मन ही मन भाव को तोलता था कसमें वादे कितने याद रखे, भर गया उसका झोला
चुप रहने की कसम खाई , कहने लगे गूंगा और अबोला
चाँद के बहते आंसू ओस से …. उसके शब्द हैं
क्या बात है दीदी 🙂 🙂
जिसे हाजिर नाजिर जाना था,
बनाया था चश्मदीद अपना
सुना था उसने सबकुछ.
कमबख्त वह चाँद भी तो गूंगा निकला.,,,,सुन्दर पंक्तियाँ,,,,
लेकिन देख और सुन तो सकता है,,,,
RECENT POST: तेरी फितरत के लोग,
प्यार की प्रतिलिपियाँ बहते पानी पर
या रेत पर लिखी होती है।
यहाँ तो चाँद को भी गवाह बनाया गया है,
वे बेचारा मजबूर है… इतनी दूर जो है !
सच कहा आपने, वह सब होते देखता है, बचाता किसी को नहीं है।
चाँद की यही नियति है. सुन्दर कविता.
देख कर मुस्कराता है या ग़ायब हो जाता है -कुछ सुनता गुनता नहीं ये चाँद !
सच ही तो है…. सुंदर रचना
कमबख्त वह चाँद भी तो गूंगा निकला.
सच कहा आपने…………
सुन्दर है
कुछ पंक्तियाँ पढ़कर सिर्फ एक ही शब्द निकलता है- "वाह" 🙂
आना तू गवाही देने ओ चंदा मैं उनसे प्यार कर लूंगी बातें हज़ार कर लूंगी
एक पुराना फ़िल्मी गीत है शायद याद कर पायें
ye chand yadi bol pada to najane kitnon ki pol khul jayegi .usdin ka intjar hai jab ye bolega
rachana
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 11-10 -2012 को यहाँ भी है
…. आज की नयी पुरानी हलचल में ….शाम है धुआँ धुआँ और गूंगा चाँद । .
Behad sundar!
बेहद सुन्दर और गहन…
सुन्दर भावाभिव्यक्ति…
🙂
जिसे हाजिर नाजिर जाना था,
बनाया था चश्मदीद अपना
सुना था उसने सबकुछ.
कमबख्त वह चाँद भी तो गूंगा निकला.
बहुत खूब…!
न जाने कितने ऐसे ही गूंगे जमीनी चाँद हमारे इर्द-गिर्द रहते हैं…मौका आने पर ही गूंगापन दिखाई देता है…..:)))
यह चाँद भी …..! गूंगा निकला …..संभवतः वह अपने प्रेम के अहसास को जुबान पर ला न सका हो ….!
bahut khub..baar baar padhne laayak..!! :):)
बहुत खूब वर्णन किया है आपने |
नई पोस्ट:-ओ कलम !!
मुझे तो उस गूंगे चांद के चांद में दे मारने का मन करता है। पर क्या करें ,,,
चाँद को तो पता था हर रोज़ उस फरेब का ,
कितने किस्सों का रहा है जो चश्मदीद वो ,
तुम्ही तो गुम थीं और थीं लबरेज़ 'उसके' जुनून से ,
अब 'वही' कर गया जुदा तम्हें तुम्हारे ही सुकून से !
उन लोगों के नाम एक शैर जो महानता का लबादा ओढ़े हुए हैं .खुद को कभी हवा नहीं लगाते .एक दिन फंगस लग जायेगी .अपने घर से बाहर निकलिए –
ब्लॉग जग के पंख कुतरेगा किसी दिन ये गुरूर ,
क्यों रहते हो भाई अपने में इतने मगरूर .
"क्विड प्रो को "कीजिए टिप्पणियों का .आदाब !
दिलकश शुरुआत…और एक कसक के साथ रचना पूरी होती हुई…बहुत ही सुंदर |
सादर |
बढ़िया साक्षी चाँद की गूंगा है तो क्या ,
गवाह तो फिर गवाह है .
कहाँ ले जाऊं फ़रियाद
जिसे हाजिर नाजिर जाना था,
बनाया था चश्मदीद अपना
सुना था उसने सबकुछ.
कमबख्त वह चाँद भी तो गूंगा निकला.
हड्डियां ……बढ़िया भावानुवाद .
बढ़िया साक्षी चाँद की गूंगा है तो क्या ,
गवाह तो फिर गवाह है .
चाँद पढा-लिखा तो होगा ही। गवाही-सवाही दे सकता ! 🙂
bas ek chhoti si shayaree….
shukra hai ki unke do bund aanshuon ne kah di rat bhar ki kahani.
varna aaj ekbar fir chand hi karorwar thahraya haya hota.
ये चाँद भी अक्सर बेवफा हो जाता है
कसमों को भूल रस्मों की याद दिलाता है ……
जिसे हाजिर नाजिर जाना था,
बनाया था चश्मदीद अपना
सुना था उसने सबकुछ.
कमबख्त वह चाँ द भी तो गूंगा निकला.
bahut hi sundar man ko tript karati rachana
बहुत कुछ भूली बिसरी सी यादें
कविता रचते तो देखा है चाँद को …
सुन्दर रचना
हर चीज़ कही नहीं जाती है न!
कमबख्त वह चाँद भी तो गूंगा निकला.
क्या बात है ।
अद्भुत!
गूंगा चाँद कितनों के प्रेम का चश्मदीद 🙂
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