बच्चों की छुट्टियाँ ख़त्म होने को आ गईं हैं और उनका सब्र भी …ऐलान कर दिया है उन्होंने कि आपलोगों को हमारी कोई परवाह नहीं बस अपने काम से काम है. हम सड़ रहे हैं घर पर .बात सच्ची थी तो गहरा असर कर गई .इसलिए हम जा रहे हैं एक हफ्ते की छुट्टी पर बच्चों को घुमाने .

तब तक आप ये नज़्म टाइप का कुछ है वो झेलिये.

ये जुबान जब भी चली
कहीं कोई जख्म हुआ है
यूँ ही तो हमने
ख़ामोशी इख्तियार नहीं की है


मत हिला ये लब अपने
न निगाहों से बात कर
हमने लफ़्ज़ों की कभी
ताकीद तो नहीं की है


बस आँखों में झांक कर
इतना बता दे
तेरी तस्वीर जो इनमे थी
धुंधला तो नहीं गई है .


चल रहने दे
आज रात भी है काली बहुत
चाँद से भी तो चांदनी की
सिफारिश  नहीं की है.


(चित्र गूगल से साभार )