बहुत याद आता है गुजरा ज़माना
सान कर दाल भात हाथों से खाना।

वो लुढ़कती दाल को थाली में टिकाना,
गरम गरम दाल में उंगलियां
डुबाना
,
फिर “उईमाँ” चिल्लाकर, रोनी सूरत बनाकर,  
जली उँगलियों को मुँह तक ले जाना।
खूब सारा भात परोस कर लाना,
उसमें से आधा भी न खा पाना,
मम्मी की नजरों से फिर खुद को
बचाकर
,
थाली में सिर झुका कर ड्रॉइंग
बनाना।
कभी थाली पर कोई नक्शा
बनाना,
 
कभी अपना नाम लिख कर मिटाना, 
चावल के पहाड़ और दाल की नदी पर
कटे खीरा, टमाटर के फूल लगाना। 

बहुत याद आता है बचपन दीवाना

सान कर दाल भात हाथों से खाना।