मैं मानती हूँ कि लिखा दिमाग से कम और दिल से अधिक जाता है, क्योंकि हर लिखने वाला खास होता है, क्योंकि लिखना हर किसी के बस की बात नहीं होती और क्योंकि हर एक लिखने वाले के लिए पढने वाला जरुरी होता है और जिसे ये मिल जाये तो “अंधे को क्या चाहिए  दो आँखें” उसे जैसे सबकुछ मिल जाता है.और इसीलिए उसके यह कहने के वावजूद “कि कोई बड़ी बात नहीं है पर आपको बता रहा हूँ” मेरा ये पोस्ट लिखना जरुरी हो जाता है .आखिर हर एक ब्लॉगर भी जरुरी होता है और जो ब्लॉगर दूसरे ब्लॉगर के मना करने के वावजूद ना लिखे वो भला कैसा ब्लॉगर:):). इसीलिए सुनिए –


अभी कल…  नहीं शायद परसों… अजी छोड़िये क्या फर्क पड़ता है .हाँ तो इन्हीं किसी एक दिन हमारे एक बहुत ही काबिल ब्लॉगर 
अभिषेक कुमार अपने एक मित्र के साथ अपने शहर के एक मॉल में घूम रहे थे. अब ये तो बताने की जरुरत नहीं कोई विषय ही खोज रहे होंगे वहां. तो एकाएक पीछे से एक आवाज आई –


“are you  blogger abhi?”, i am buni..you  write so well…i read your blog…i have seen you one or two times in this mall..but today decided to meet you.”


अब बेशक अभि के लिए यह बड़ी बात ना हो हमने भी वैसे नापी नहीं कि बड़ी थी या छोटी. परन्तु ख़ुशी की बात तो अवश्य थी. आखिर किसी लिखने वाले के लिए इससे बड़ा पुरस्कार क्या हो सकता है कि कोई अनजान पाठक उसका लिखा गंभीरता से पढता है. मुझे यकीन है कि जरुर अभि को और उसके साथ उसके दोस्त को भी एक सेलेब्रिटी जैसा अहसास हो रहा होगा .और गर्व भी कि उसके दिल से निकली बातें वो जिस मेहनत से ब्लॉग पर सजाता है वह कितनी खास हैं, कितनी सुन्दर और कितनी जरुरी.


यूँ यह बात बेशक अभिषेक की है. परन्तु गर्व का मौका हम सब का है और शायद एक प्रेरणादायक वाकया भी , कि जो ब्लॉग हम में से कोई भी,यह सोच कर लिखता है कि हमारा ब्लॉग हमारी बपौती है.हम जो मर्जी लिखें, किसी को क्या लेना देना .तो हमें कुछ भी लिखते समय यह जरुर सोचना चाहिए कि बेशक ब्लॉग हमारा है और उस पर लिखने का अधिकार भी हमारा. परन्तु उसे पढने वाले अनगिनत हो सकते हैं. वे भी जो हमें जानते हैं और वे भी जो हमें बिलकुल नहीं जानते और जो हमारे लेखन से ही हमारे व्यक्तित्व का एक बुत बना लेते हैं. मुझसे कई बार कुछ लोग यह कहते हैं कि अरे वो पोस्ट ..वो तो हमने किसी को जलाने , सताने , मनाने, लुभाने वगैरह वगैरह के लिए लिखी थी. पर जरा सोचिये आपने जिसके लिए भी लिखी हो पर पढ़ी वो न जाने कितने जाने अनजाने लोगों ने होगी. और उन्हें तो यह बात नहीं मालूम कि ये आपने क्यों और किसके लिए लिखी थी. उनके लिए तो वह एक पोस्ट है और उसी से लेखक के प्रति एक धारणा उनके मस्तिष्क में बन जाती है. फिर बेशक वो आपके किसी खास परिस्थिति में लिखे एक वाक्य से ही क्यों ना हो.


एक लिखने वाला जब खुद को एक लेखक कहता है तो उसकी एक सामाजिक जिम्मेदारी भी बन जाती है

सोचिये जब यह ब्लोग्स नहीं थे. लिखने वाले तो तब भी थे परन्तु पाठक उनमें से कुछ खास किस्मत वालों को ही मिला करते थे और प्रतिक्रिया देने वाले भी सिमित हुआ करते थे. परन्तु ऐसे भी अनगिनत लिखने वाले हुआ करते थे जो चाहे कितना ही बेहतर क्यों नहीं लिखते उनका लिखा कुछ पन्नो में सिमित रह जाता होगा. पर आज हमारे पास ब्लॉग के रूप में एक ऐसा माध्यम है जहाँ हम बिना किसी परेशानी के अपनी अभिव्यक्ति असीमित वर्ग तक अनजाने ही पहुंचा देते हैं.और यदि आपने इमानदारी से लिखा है और वह पठनीय है तो अपना पाठक वर्ग खुद ही तलाश लेता है. आप बिना किसी खास परिश्रम के बन जाते हैं सेलेब्रिटी , आपके फैन्स भी बन जाते हैं, आपको अपना लिखना सार्थक लगने लगता है. और आपकी निष्ठा  और मेहनत लेखन के प्रति और बढ़ती जाती है. 


जैसा कि मुझे यकीन है कि अभि के साथ भी हुआ होगा. मुझे नहीं पता इस वाकये के बाद उस रात उसे नींद आई होगी या नहीं:) परन्तु मुझे विश्वास है कि अब उसकी लेखनी की धार और तेज़ होगी और दोगुने उत्साह से निरंतर चलती रहेगी.


तो आइये नियामत के रूप में मिले इस ब्लॉग को अभिव्यक्ति का एक सार्थक माध्यम बनाये. व्यक्तिगत कुंठा और शत्रुता का माध्यम नहीं. क्या मालूम राह चलते कभी आपको भी आपका कोई अनजान पाठक मिल जाये तो आपको अपने उस पाठक से नजरे मिलाने में ख़ुशी और गर्व हो , शर्मिंदगी नहीं.


* और अब एक और बात – आज  ही भारत में रूसी उच्चायुक्त श्री एलेक्जेंडर कदाकिन  का  मेरी पुस्तक “स्मृतियों में रूस ” पर प्रतिक्रया स्वरुप  एक  पत्र  मिला है 🙂 आप भी पढ़िए .