एक बार मैं बस से कहीं जा रही थी. बस की ऊपरी मंजिल की सीट पर बैठी थी. तभी बस अचानक रुक गई और काफी देर तक रुकी रही. आगे ट्रैफिक साफ़ था और ऐसा भी नहीं लग रहा था कि बस खराब हो गई हो. नीचें आकर देखा तो पता चला कि बस में दो युवक बीयर का कैन हाथ में लिए कुछ हो- हल्ला कर रहे थे तो ड्राइवर ने उन्हें बस से उतरने को बोला था. अब चूंकि वे उतर नहीं रहे थे इसीलिए ड्राइवर बस नहीं चला रहा था और उसने पुलिस को खबर कर दी थी. यानि बस में बैठे अन्य यात्रियों को बीच में पड़ने की जरुरत ही नहीं थी. यह ड्राइवर की जिम्मेदारी थी कि जब तक वह बस के सभी यात्रियों की सुरक्षा के लिए पूरी तरह आश्वस्त नहीं हो जाता,  तब तक वह बस आगे नहीं बढ़ा सकता था. कुछ ही मिनटों में पुलिस आई और उन लड़कों को ले गई. 


यहाँ बसों में कंडक्टर नहीं होता, सिर्फ ड्राइवर होता है और उसे पूरे अधिकार होते हैं कि यदि वह बस में कोई भी गड़बड़ या अराजकता देखे तो वह उन्हें तुरंत बस से उतार सकता है या कोई भी और जरूरी कदम उठा सकता है.

अभी हाल में हरियाणा बस में हुई एक घटना की खबर देख कर (जिसमें दो लड़कियों को अपनी सुरक्षा के लिए अकेले कुछ लड़कों से हाथापाई करनी पड़ी) यह ख़याल मन में आया, क्या भारत में बस ड्राइवर को ये अधिकार नहीं हैं ? अवश्य ही होंगे, हाँ शायद उन्हें खुद ही उनका पता न हो. क्योंकि न तो ड्राइवरी सीखते वक़्त किसी ने उन्हें समझाया, सिखाया होगा न ही लाइसेंस लेते वक़्त ही उन्होंने कोई ट्रेंनिंग या परीक्षा ही पास की होगी। 
और बाकी के बस के यात्री भला क्यों मदद करते ? उन्हें भी पता था कि हस्तक्षेप किया, पुलिस आई तो मुसीबत उनकी ही होगी, अपराधियों को तो खाप और प्रशासन यह कह कर बचा लेंगे कि “बच्चे हैं, लड़के हैं, गलती हो गई. अपनी लड़कियों को ही सम्भालो”।और वैसे भी पहली क्लास से ही उन्हें प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी और अच्छी नौकरी पाने के नुस्खे ही सिखाये जाते हैं. नैतिकता या नागरिक जिम्मेदारी की शिक्षा बेचारे कहाँ से पाएं।
सुना है वे मनचले युवक भी फ़ौज की नौकरी करके देश की सेवा करने वाले हैं और खाप पंचायत को फ़िक्र है कि इस मामले की वजह से उनकी नौकरी न चली जाये।
तो लड़कियों लड़ो, और लड़ती रहो. कोई तुम्हारी मदद करने नहीं आएगा।
अब तुम्हारी लड़ाई सिर्फ अपने घर और समाज से ही नहीं है. अब यह लड़ाई तुम्हें व्यवस्था, प्रशासन, खाप, क़ानून, शिक्षा, सत्ता हर जगह, अपना स्थान बनाने के लिए लड़नी होगी। जब हर जगह महिलाओं की प्रभुत्ता होगी तभी शायद कुछ परिवर्तन हो सकेगा अब.