मैं तो हरदम तेरे संग ही रहूंगी
कभी उतर कर तेरे ख़यालों में
बन कविता तेरे शब्दों में उकरूँगी
या फिर बन स्याही तेरी कलम की
तेरे कोरे काग़ज़ पर बिखरुंगी
यूँ ही हरदम तेरे संग रहूंगी
हो शामिल सूर्यकिरण में कभी
बन आभा तेरे चेहरे पर उभरूँगी
थक कर सुसताने बैठेगा  जब तू
बन पवन तेरे बालों में  फिरूंगी
जेसे भी हो बस तेरे संग रहूंगी.
 या बन जाऊंगी बरखा की बूँदें
और  तेरे सीने से जा लगूंगी
या बन तेरे कमरे के दिए की लो
जलूँगी  पर अपलक तुझे तकुंगी 
चाहे जो हो मैं तो तेरे संग रहूंगी
शरीर छूट जाना  है,
दुनिया छूट जानी  है
ये माटी की काया 
इस माटी में मिल जानी है
 ना कर सकी कुछ तो
बिखर तेरी राहों पे
मिट्टी बन तेरे पेरों से लिपटूँगी
पर जान ले हरदम तेरे संग रहूंगी.