“शब्-ए फुरक़त का जागा हूँ, फरिश्तों अब तो सोने दो,

कभी फुर्सत में कर लेना हिसाब आहिस्ता आहिस्ता…”

कभी सोचा नहीं था कि इस पोस्ट के बाद यह श्रद्धांजलि इतनी जल्दी लिखूंगी. अभी इसी साल जून की तो बात है जब जगजीत सिंह का लन्दन में कंसर्ट था और वहां उनका ७० वां जन्म दिन मना कर आई थी उनके जन्म दिन का केक खा कर आई थी जो वहीँ स्टेज पर काटा था उन्होंने. यूँ तो उनका कार्यक्रम लगभग हर साल ही होता था और लगभग हर देश में होता था .परन्तु मेरा दुर्भाग्य कि कभी भी, कहीं भी उसमें शामिल होने का मौका नहीं मिला. हर साल किसी न किसी वजह से बस मन मार कर रह जाना पडा.परन्तु इस बार शायद कोई शक्ति थी जो मुझे उस ओर खींच रही थी. और मैंने अपना फैसला सा सुना दिया था कि इस बार कोई जाये साथ न जाये मैं तो जा रही हूँ और मेरा इतना कडा रुख देख पतिदेव भी बिना हुज्जत किये मेरा साथ देने को तैयार हो गए थे. आज सुबह-सुबह मेल देखने के लिए नेट खोला तो उनके ना रहने की दुखद खबर मिली.तब से उस कन्सर्ट के वो ऐतिहासिक पल नजरों से आंसू बन टपक तो रहे हैं परन्तु लुप्त होने का नाम नहीं ले रहे.रह- रह कर उनकी छवि और उनका आत्मिक ,सुकून देने वाला स्वर मन मस्तिष्क पर हावी हो रहा है. स्टेज पर बैठ तीन घंटे तक उसी कशिश और जोश के साथ लगातार गाने वाले वाले उस सुगठित देह और आकर्षित व्यक्तित्व को देखकर कौन सोच सकता था कि कुछ ही महीनो में वो इस दुनिया से विदा ले लेगा.खुद उन्होंने भी कहा था कि अपने ७० वर्ष पूरे करने के उपलक्ष्य में वे दुनिया भर में इस साल अपने ७० कंसर्ट करेंगे.उस स्वर सम्राट को शायद मुझ जैसे ही किसी दीवाने की नजर लग गई. जो उस पूरी शाम उसे निहारती रही थी और ऊपर वाले की इस नियामत पर फक्र किये जा रही थी.

जगजीत सिंह वह इंसान था जिसने अपने स्वर और आवाज़ से आम श्रोता को ग़ज़ल से रु ब रू कराया.”कागज की कश्ती” के माध्यम से उन्हें बचपन लौटाया, “होटों से छू लो से”- मोहब्बत करना सिखाया यहाँ तक कि “आखिरी हिचकी तेरे जानू पे आये ,मौत भी मैं शायराना चाहता हूँ.”से  उसे रोना और मरना भी सिखाया. यह वो इंसान था जिसने ग़ज़ल को खास लोगों की महफ़िल से उठाकर आम लोगों के बीच खड़ा किया.और दुनिया का कोई भी संगीत प्रेमी उनके इस ऋण से कभी भी उऋण नहीं हो सकेगा.
मेरे लिए तो ग़ज़ल का मतलब सिर्फ और सिर्फ जगजीत सिंह थे. मेरी आँखों से अगर कभी भी पानी निकला तो उसका कारण सिर्फ और सिर्फ जगजीत सिंह के गीत थे.और उनकी ही गायकी में मैंने ग़ालिब को समझना सीखा.

आज गजल की दुनिया का यह सम्राट हमारे बीच नहीं परन्तु उनकी आवाज़ की वो खनक, वो अंदाज ए बयाँ , लफ्जों की वो खुमारी मेरी दुनिया में हमेशा एक सौगात बनकर बसी रहेगी.

उन्होंने हमेशा अपने चाहने वालों के लिए गाया. हमेशा अपने चाहने वालों का मान वे अपने कार्यक्रमों में रखा करते थे और आज शायद यही वो कह रहे हैं अपने चाहने वालों से.
थक गया मैं करते करते याद तुझको.
अब तुझे मैं याद आना चाहता हूँ.