एक दिन पड़ोस की नानी
और अपनी मुन्नी में ठन गई।
अपनी अपनी बात पर
दोनों ही अड्ड गईं।
नानी बोली क्या जमाना आ गया है…
 घड़ी घड़ी डिस्को जाते हैं,
 बेकार हाथ पैर हिलाते हैं
ये नहीं मंदिर चले जाएँ,
एक बार मथ्था ही टेक आयें॥
मुन्नी चिहुंकी
तो आपके मंदिर वाले
डिस्को नहीं जाते थे?
ये बात और है
डिस्को तब उपवन कहलाते थे।
हम तो फिर भी
एक ही के साथ जाते हैं
वो तो एक साथ
हजारो के साथ रास रचाते थे।
सुन नानी की भवें तन गईं
अपना डंडा ले मुन्नी पर चढ़ गईं
देखो कैसी जबान चलाती  है
न शर्म न बड़ों का लिहाज़
जो मन आया पट पटाती  है।
मुन्नी ने फिर चुटकी ली
नानी जरा अपने शास्त्रों का ध्यान करो
उसमें नारी के जो ६४ गुणों का वर्णन है
उसमें वाक्पटुता भी एक गुण है।
अब नानी को कुछ न सूझा
तो उसके कपडों पर अड्ड गईं
ये आजकल का सिनेमा और नाच
इसी ने किया है बच्चों का दिमाग ख़राब
मुन्नी खिलखिलाई
वाह नानी
ये कैसा दोगला व्यवहार है
इन्द्र की सभा में नाचें तो अप्सरा हैं
और पेट पालती बार बालाएं बदनाम हैं।
फर्क बस इतना है –
तब राजतंत्र था
और शौक राजाओं तक सिमित था
आज लोकतंत्र है
हर बात काजनता को भी हक है।
बदला जमाना नहीं
बदला आपके चश्मे का नम्बर है
मुन्नी नानी का मुहँ चूम
फुर्र से उड़ गई
और नानी बेचारी
सोच में पड़ गई।
अरे अम्मा!
चलो पार्क घुमा लाऊं ?
पप्पू की आवाज आई
पल्लू से चश्मा पोंछ
नानी बुदबुदाई
अभी वो कहीं नहीं जाएँगी
कल ही बेटे से कह
पहले ये मूआं चश्मा बदलवाएगी.