क्योंकि हमारे यहाँ प्यार दिखावे की कोई चीज़ नहीं है. नफरत दिखाई जा सकती है, उसका इजहार जिस तरह भी हो, किया जा सकता है. गाली देकर, अपमान करके या फिर जूतम पैजार से भी. परन्तु प्यार का इजहार नहीं किया जा सकता. उसे दिखाने के सभी तरीके या तो बाजारवाद में शामिल माने जाते हैं या फिर पश्चिमी संस्कृति का दिखावा. 

कहने को हम पश्चिमी देशों में मनाये जाने वाले यह … मदर्स डे. फादर्स डे, लव डे आदि आदि नहीं मनाते. क्योंकि हम बहुत मातृ- पितृ भक्त हैं किसी एक दिन की हमें जरुरत नहीं। पर ज़रा दिल पर हाथ रखकर बताइये होश संभालने के बाद आपने कितनी बार अपने माता- पिता के प्रति प्यार का इजहार किया है? क्योंकि हमारे समाज में प्यार तो दिखाने की चीज है ही नहीं वह तो छुपाने की चीज है. ऐसे में इन दिवसों के बहाने यदि साल में एक बार भी माँ – पिता को “खास” होने का, प्रिय होने का या उनका ख्याल होने का एहसास हो जाए तो बेकार ही है. पैसे की बर्वादी है,और बाजारवाद को बढ़ावा देना है। 
सच पूछिए तो बात यह है कि प्रेम जताना और उसे महसूस करना सभी को अच्छा लगता है. ज़रा सोचिये आजकल के दौर में जहाँ बच्चे बड़े होते ही पढ़ाई या रोजगार के लिए अलग हो जाते हैं ऐसे में एक खास दिन अपनी माँ को याद कर उसे कुछ तोहफा भेजते हैं. ज़रा अंदाजा लगाइये उस माँ की ख़ुशी का. ऐसे में इन भावनाओं के बदले यदि बाजार का कुछ भला हो भी जाता है तो कम से कम मुझे तो इसमें कोई आपत्ति नहीं। 
असल में आज यहाँ मदर्स डे है. सुबह सुपर स्टोर गई तो वहां की रौनक देखने लायक थी. फूलों की बहार आई हुई थी. रंग विरंगे गिफ्ट पैकेटस और चॉकलेट्स से काउंटर सजे हुए थे. और सबसे प्यारी बात की खरीदारों में ९०% पुरुष दिखाई दे रहे थे. 
मेरी नजर एक पिता – पुत्र पर टिक गई. फूलों के काउंटर के आगे एक ट्रॉली पर करीब २ साल का एक बच्चा बैठा हुआ था और उसका पिता वहां से कुछ फूल चुन रहा था. २-३ फूलों के गुच्छे लेकर उसने उस बच्चे से पूछा – विच वन यू लाइक दी मोस्ट ? बच्चा कुछ खोया सा उसे देखने लगा. उसे समझ में नहीं आया कि क्या और क्यों उससे पूछा जा रहा है. पिता ने फिर पूछा – विच वन यू लाइक फॉर मॉम ? अब बच्चे ने तपाक से बड़ी अदा से, एक पर हाथ रख कर कहा. दिस वन. और पिता ने वह गुच्छा खरीद लिया। मेरी आँखें वहीँ, जहाँ उस माँ के रिएक्शन की कल्पना करके छलकने को हो आईं वहीं उन पिता – पुत्र को देखकर असीम आनंद का एहसास हुआ. 
आखिर क्योंकर हम इन प्रेम भरी मानवीय भावनाओं को नजरअंदाज कर देना चाहते हैं. कितना कुछ हम अपने लिए, अपने काम के लिए और अपनी सुविधाओं के लिए करते हैं. न जाने कितने बाजारवाद का उपयोग हम अपने स्वार्थ के लिए करते हैं तो एक दिन अगर इन खूबसूरत एहसासों के लिए भी कर लें तो बुरा क्या है ???