एक पुरानी यूनानी (Greek) पौराणिक कथा है कि जब ईश्वर संसार की रचना कर रहा था तो उसने एक छलनी से मिट्टी छान कर पृथ्वी पर बिखेरी. जब सभी देशों पर अच्छी मिट्टी बिखर गई तो छलनी में बचे पत्थर उसने अपने कंधे के पीछे से फेंक दिए और उनसे फिर ग्रीस (यूनान) बना. 


बेशक यह एक किवदंती रही हो परन्तु आज के हालातों में एकदम सच जान पड़ती है. एक उच्च जीवन स्तर वाला विकसित राष्ट्र कैसे कुछ ही समय में पतन के कागार पर खड़ा हो गया यह कोई ऊपर वाले का खेल सदृश्य ही लगता है. 


यह वह देश है जहाँ की राजधानी एथेंस दुनिया के सबसे पुराने शहरों में से एक है. यह वह देश है जहाँ सुकरातप्लेटोअरस्तु जैसे विद्द्वान हुए जिन्होंने अपने दर्शन से पूरी दुनिया का मार्गदर्शन किया। यह वह देश है जिसने दुनिया को विज्ञान और गणित की परिभाषाएं सिखाईं और आज दुनिया में जितनी भी भाषाएँ बोली जातीं हैं उनमें ग्रीक भाषा के सर्वाधिक शब्द प्रचलित हैं. और यह वही देश है जहाँ से संसार के सबसे प्रसिद्द ओलम्पिक खेलों की नींव पड़ी. 


हालाँकि जब इन खेलों की शुरुआत एथेंस में हुई थी तो इनका स्वरुप बेहद अलग हुआ करता था. और जीतने वालों के लिए कोई सोनाचांदी,और कांस्य पदक नहीं होता था बल्कि विजेता के लिए सिर्फ जैतून का माल्यार्पण और संभवतः कुछ पैसे या जैतून के तेल और सैलेरी से भरे जार हुआ करते थे। पूरे ग्रीस से हजारों की तादाद में लोग इन खेलों को देखने आते थे. यहाँ तक कि युद्ध के समय भी यह आयोजन रुकता नहीं था. ओलम्पिक के समय यूनानी संघर्ष विराम में एक महीने के लिए शांत बैठ जाते थे जिससे कि यूरोप के विभिन्न भागों से खिलाड़ी और दर्शक खेलों के लिए आ सकें। महान सिकंदर का देश जो दुनिआ भर की अकूत सम्पति और राज्य का मालिक था आज सिकंदर की तरह खुली मुट्ठी दिखा रहा है. उसपर भारी क़र्ज़ है जिसे वह चुकाने में असमर्थ है और अब उसकी स्थिति इधर कुआं उधर खाई” वाली हो गई है. 


हालत यह कि पूरे देश के बैंक १ हफ्ते से भी अधिक समय से बंद हैं. नागरिकों को अपना ही पैसा ६० यूरो से अधिक एक दिन में निकालने की इजाजत नहीं है और आगे क्या होगा किसी को समझ में नहीं आ रहा. क्योंकि ग्रीस एक छोटा सा देश हैजहाँ न तो कृषि योग्य भूमि अधिक है न रोजगार के अन्य साधन मौजूद हैं. पर्यटन ग्रीस का मुख्य व्यवसाय है जहां एक दर्जन से भी अधिक विश्व धरोहर स्थल हैं और ग्रीस एक खासा लोकप्रिय पर्यटन स्थल है. अपने बंदरगाह और शिपमेंट को भी ग्रीस अपना उद्द्योग ही मानता रहा है. और अपने उच्च जीवन स्तर को बनाये रखने में किसी भी तरह के दिखावे से भी परहेज नहीं किया है. 


उनकी आर्थिक और राजनैतिक आपदा का एक कारण २००४ के ओलम्पिक खेलों को भी माना जाता है, जिसके लिए जो अंतररार्ष्ट्रीय कर्ज उन्होंने लिया उसके भारी भरकम व्याज को चुका पाने में ग्रीस असमर्थ रहा. इन खेलों पर जितना खर्च किया जाता है उतना इनसे कमाया नहीं जाता. ग्रीस में इनके लिए बनाई गई सुविधाओं की ठीक से देखभाल नहीं की जाती. खेलों के बाद उन्हें तोड़ फोड़ दिया जाता है. यहाँ तक कि घोर आर्थिक तंगी और कर्ज के वावजूद भी ग्रीस ने २००४ में ओलम्पिक खेलों की मेजबानी की. 


फिलहाल स्थिति यह है कि ग्रीस की जनता ने यूरोपियन यूनियन की शर्ते मानने से इंकार कर दिया है. जिसके लिए यु के में रहने वाले ग्रीस के लोग जनमत संग्रह में अपना वोट देने के लिए अपनी मातृ भूमि गए थे. क्योंकि वहां के नियम के मुताबिक वे तभी इसमें हिस्सा ले सकते थे जब की वह ग्रीस लौटते। पिछले शनिवार को लंदनलीड्सब्रिस्टलएडिनबरालिवरपूल आदि शहरों में इस बाबत रैलियां भी हुईं जहां प्रदर्शनकारियों ने जनमत संग्रह की पूर्व संध्या पर ग्रीस के कर्ज को रद्द करने का आग्रह किया। हजारों लोग ट्राफलगर स्क्वेयर में ग्रीक एकमत विरोध में शामिल हुए. अब देखना यह है कि ग्रीस के भविष्य में क्या लिखा है. 


दुनिया केआकर्षण”में एन हैनरिच लिखते हैं कि ग्रीस को औसतन  250 से अधिक दिन सूर्य के प्रकाश का आनंद मिलता है या यूँ कहें कि, एक साल में तीन हजार धूप वाले घंटेजो उसे दुनिया में सबसे अधिक सूर्य के प्रकाश वाले देशों में एक और यूरोप का सबसे अधिक धूप वाला देश बनाता है. क्या स्वर्णिम इतिहासधनी संस्कृति और खूबसूरत व प्रतिष्ठित देवी देवताओं वाला यह देश फिर से प्रकाशवान हो पायेगा या आर्थिक तंगी के अँधेरे में खो जायेगावक़्त ही बताएगा।