आँखों में ये खारा पानी कहाँ से आता है किस कैमिकल लोचे से यह होता है,सबसे पहले किसकी आँख में यह लोचा हुआ और क्यों ? और कब इसे एक इमोशन से जोड़ दिया गया,और कब एक स्त्रियोचित गुण बना दिया गया,यह सब हमें नहीं मालूम। हाँ इतना जरूर मालूम है कि, काफी समय से इस पर महिलाओं की मोनोपोली रही है। मर्दों के लिए यह लगभग पुरुषत्व की अवमानना और शर्म का विषय रहा है . जहाँ पुरुष अपनी उफनती भावनाओं को इन आंसुओं के रास्ते बहा देने के लिए किसी एकांत को ढूंढते हैं और एकांत में बड़ा हिचकते हुए, अपने अहम् को पीछे धकेलते हुए इस काम को अंजाम देते हैं,अपने करीबी से करीबी मित्र के कंधे पर भी वह रोना गवारा नहीं करते। वहीँ महिलायें बड़े गर्व से इन्हें हर सुख दुःख में किसी भी मित्र के सहानुभूति पूर्ण कंधे पर बहा कर तृप्त हो लेती हैं।।इसके लिए न तो उन्हें किसी एकांत की जरुरत होती है, न ही किसी अहम् नाशक तत्व की। यहाँ तक कि वो तो इसे एक आभूषण समझती हैं जो उनकी भावात्मक अभिव्यक्ति को और प्रभावी बना देता है और कभी -कभी एक अचूक औजार भी, जहाँ कोई और नुस्खा न चले वहां आज़मा लिया ज्यादातर सफलता मिल ही जाती है।और शायद महिलाओं के इसी एक  गुण या अस्त्र से पुरुष समाज थोड़ा घबराता है। हिंदी फिल्मो में भी “मैं तुम्हें रोता हुआ नहीं देख सकता” या “तुम जानती हो तुम्हारे आँसू मुझे कमजोर बना देते हैं ” जैसे संवाद आम तौर पर पाए जाते हैं।  इससे बचने के लिए एक मुहावरा भी ईजाद कर लिया गया – घडियाली आँसू  …पर इसका भी कुछ खास असर नहीं हुआ और आँसुओं पर महिलाओं का वर्चस्व बना रहा। 


परन्तु अब सदियों बाद लग रहा है कि इस पर से महिलाओं की मोनोपोली ख़त्म होने वाली है। विश्व के सबसे ताक़तवर देश के सबसे ताक़तवर इंसान ने अपनी ख़ुशी में सबके सामने आंसू बहाकर पुरुषों के लिए भी यह रास्ता खोल दिया है। जी हाँ जब अमरीका का राष्ट्रपति अपनी भावनाओं के उबाल को आँखों के इस खारे पानी के माध्यम से जाहिर कर सकता है तो किसकी मजाल जो कहे कि यह काम मर्दों का नहीं। बल्कि उन्होंने सिद्ध कर दिया कि राष्ट्रपति के लिए भी यह गुण होना एक सकारात्मक तत्व है न कि नकारात्मक। आज के दौर में एक संवेदनशील, भावात्मक और कोमल ह्रदय नेता को जनता ज्यादा पसंद करती है।और उन्हें अपनी भावनाओं को दबाना नहीं चाहिए। 


याद कीजिये इतिहास में कितने ही ऐसे महापुरुष हुए जो सार्वजनिक तौर पर भी अपनी गीली आँखें नहीं छुपाते थे, नेहरु को लता मंगेशकर के “ए मेरे वतन के लोगो ” गीत पर आंसुओं के साथ देखा गया, तो राणा प्रताप को चेतक के लिए,2006 में अपने आखिरी प्रोफेशनल खेल की समाप्ति पर आंद्रेय अगासी हारने के वावजूद दर्शकों के खड़े होकर उनके लिए ताली बजाने पर रो पड़े थे। और जोर्ज वाशिंगटन भी राष्ट्रपतिपद की शपथ लेने के बाद अपने आंसू पोंछते देखे गए थे। 


तो रोना पुरुषार्थ को कम नहीं करता बल्कि उसे बढाता है, उसे महापुरुष बनाता है .पुरषों को अपने आंसुओं को ज़ब्त करने की अब कोई जरुरत नहीं। कोई जरुरी नहीं कि दुखों का पहाड़ टूटे तभी एक पुरुष को रोना चाहिए। एक इंसान को और एक अच्छे इंसान को अगर रोना आये तो जरुर रो लेना चाहिए बेशक आप विश्व के सबसे ताक़तवर व्यक्ति ही क्यों न हों।