आह… ऑटम ऑटम ऑटम… आ ही गया आखिर। इस बार थोड़ा देर से आया। सितम्बर से नवम्बर तक होने वाला ऑटम अब अक्टूबर में ठीक से आना शुरू हुआ है. सब छुट्टी के मूड में थे तो उसने भी ले लीं कुछ ज्यादा। अब आया है तो बादल, बरसात को भी ले आया है और तींनो मिलकर  छुट्टियों की भरपाई ओवर टाइम करके कर रहे हैं। वैसे उनका यूँ आना भी मुझे सुहाता ही है। धरती को पत्तों की शाल मिल जाती है। 
                                                                                                          अमेरिकी पतझड़ 
 
लन्दन में तो बारिश की मोनोपोली रहती है परन्तु अमरीका के कुछ क्षेत्रों में फॉल का अंदाज बेहद ही खूबसूरत हुआ करता है। लाल, नारंगी पीले हरे पत्तों का रंग बिरंगा दुशाला ओढ कर धरती और पर्वत खुद को आने वाली सर्दी से बचाने का उपाय कर लेते हैं। 
 
पेड़ों को फिर से अपनी भूमि और बाहें नए पत्तों के स्वागत के लिए तैयार करने में थोड़ा वक़्त लगेगा तब तक बारिश उन्हें नहलाएगी, धुलाएगी। बिना फूल, फल, पत्तों के उन्हें अकेलापन ना खले इसलिए वक़्त वक़्त पर बर्फ मेहमान बन कर जम जाएगी, खेलेगी, बतियाएगी, और  कभी कभी धूप आकर सहलाएगी।यानि पतझड़ भी आता है तो पूरे शबाब के   साथ और सबको अपने रंग में रंग लेता है. 
 
 
धरती पर बिछी ये खूबसूरत पत्तों की चादर मैं भी उठा कर तान लेना चाहती हूँ और उसमें ढांप  लेना चाहती हूँ जिंदगी के सारे पतझड़ी पलों को. और फिर से हो जाना चाहती हूँ तैयार नई खिलती कोपलों के लिए, फिर से नए परिवर्तन के लिए.  
 
काश सब कुछ चलता रहता यूँ ही और मैं भी हो जाती प्रकृति, जो अपनी इस व्यवस्थित व्यवस्था पर इठलाई फिरती है।




मास्को में पतझड़ की एक मित्र द्वारा भेजीं गईं कुछ ताज़ा तस्वीरें 

 

मेरी गली का पतझड़ (लंदन)