आत्मा से जहन तक का,
रास्ता नसाज है
या भावनाओं का ही कुछ,
पड़ गया आकाल है
दिल के सृजनात्मक भाग में
आज़कल हड़ताल है।
हाथ उठते हैं मगर
शब्द रचते ही नहीं
होंट फड़कते हैं मगर
बोल फूटते ही नहीं
पन्नों से अक्षर का रिश्ता
लग रहा दुश्वार है
दिल के सृजनात्मक भाग में
चल रही हड़ताल है
 चल रहीं साँसे मगर
रूह कहीं लुप्त हो गई
धड़क रहा है दिल तो
क्या रवानगी सुस्त पड़ गई
इस हृदय में चल रहा
एक हाहाकार है
दिल के सृजनात्मक भाग में
जो चल रही हड़ताल है
  बिन रंगो की तुलिका जैसे
खंडित मूरत की मुद्रा जैसे
बेनूर कोई अँखियाँ जैसे
बिन पानी नादिया जैसे
सृजन बिन कोरा ये जीवन ,
 बेनमक का सा आहार है
दिल के सृजनात्मक भाग में ,
गर जारी रही ये हड़ताल है……