वहमों गुमान से दूर दूर ,यकीन की हद के पास पास,दिल को भरम ये हो गया कि ……..जी नहीं मैं ये अचानक सिलसिला की बात नहीं कर रही हूँ .वरन ना जाने क्यों जोर्डन और हीर का प्रेम देख ये पंक्तियाँ स्मरण हो आईं. जोर्डन जो हीर से प्यार करना चाहता है सिर्फ इसलिए क्योंकि हीर दिल तोड़ने वाली मशीन है और उसे अपना दिल तुडवाना है क्योंकि बिना दिल टूटे हुए संगीत की झंकार नहीं निकल सकती.पर ना जाने कब ये प्यार उनकी रूह में बसता जाता है, दिल कतरा कतरा पिघलता जाता है, हर सीमा से परे, हर जरुरत से दूर, रूह से रूह का रिश्ता.

बहुत समय बाद कल सिनेमा हॉल पर जाकर एक फिल्म देखी .हालाँकि इतनी ठण्ड में गर्म लिहाफ से निकल रणवीर कपूर की फिल्म देखने जाना मुझे नागवार गुजर रहा था परन्तु इम्तिआज अली का नाम और फिल्म के गीत मुझे सिनेमा की तरफ ठेल रहे थे.यूँ फिल्म शुरू होने तक यही लगता रहा कि कहीं पैसे ना बर्बाद हो जाएँ.परन्तु शुक्रिया इम्तियाज अली साहब का ऐसा कोई भी पछतावा हमें नहीं हुआ बल्कि बड़े समय बाद एक अच्छी फिल्म देखी तो सोचा आपके साथ भी बाँट ली जाये.
चलिए अब बात करते हैं रॉक स्टार की, एक ऐसी फिल्म जिसे देखते आप स्क्रीन पर हैं. पर एहसास होता है एक क्लासिक उपन्यास पढने का.जैसे एक एक दृश्य एक एक पन्ने की तरह पलटता जाता है और आपके मन में प्रवेश करता जाता है.एक गंभीर कहानी की और बढ़ती फिल्म रोचक और चुस्त संवादों की वजह से कहीं बोझिल नहीं होती.हाँ अंत आते आते एक बार को लगने लगता है. अरे ये क्या…फिर वही लैला मजनू की कहानी, वही एक दुसरे की बाँहों में दम तोड़ते प्रेमी फिर वही नाटकीय अंत ?..लेकिन नहीं.. यहाँ एक बार फिर कहानीकार बाजी मार ले जाता है और एक बहुत ही तार्किक और अलग मोड़ पर कहानी का समापन होता है.
यूँ सफ़ेद चादर के अन्दर हीर और जोर्डन का एक अलग दुनिया में मिलने का बिम्ब अनोखा है और बेहद प्रभावशाली है.
जोर्डन की भूमिका के साथ रणवीर कपूर ने अपनी क्षमता से बढ़कर न्याय किया है .कहीं यह एहसास नहीं होता कि इसकी जगह कोई और होता तो शायद बेहतर होता.रणवीर कपूर ने बेफिकर दीवानगी और रूहानी मोहब्बत को बहुत ही शिद्दत से निभाया है और कहीं भी अपने पिता ऋषि कपूर के मजनू वाले किरदार की छाप उसमें नजर नहीं आती.
वहीँ हीर के तौर पर नर्गिस फकीरी बला की खूबसूरत लगीं हैं. इतनी कि हाथ ना लगना, मैली हो जाएगी.हो भी क्यों ना आखिर किंग फिशर के कलेंडर से निकली हैं. यूँ संवाद अदायगी में, और हीर के किरदार के साथ न्याय करने में उन्नीस सी साबित होती प्रतीत होती हैं. पर अपनी खूबसूरती के बल पर इन सारी कमियों को नर्गिस ढांप ले जाती हैं.फिल्म के बाकी पात्र भी अपनी अपनी भूमिका में उपयुक्त लगते हैं.
फिल्म में कहानी के अलावा एक और बेहद मजबूत पक्ष है – फिल्म का गीत संगीत – सभी गीत बेहद खूबसूरत हैं “तुम हो पास मेरे”, और “नादान परिंदे” ..जैसे गीत जिन्हें सुन- देख कर अनुमान लगाना मुश्किल होता है कि इनके बोल ज्यादा बेहतर हैं या सुर? फिल्मांकन ज्यादा आकर्षक है या गायकी ?
वहीँ खूबसूरत दृश्यों को कैमरे में उतारने में कैमरा मेन ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी..कश्मीर की अप्रतिम वादियाँ हो या प्राग का धुला धुला सा प्राकृतिक सौन्दर्य सभी जैसे छन -छन कर कैमरे में समाता गया है.
उस पर किरदारों के लिबास पर भी खासी मेहनत की गई है. दिल्ली के स्टीफंस कॉलेज में पढने वाली हीर और कश्मीरी पंडित की बेटी हीर के लिबासों में बेहतरीन तालमेल बैठाया गया है. कश्मीरी फिरन में लिपटी हीर के लिबासों में २००९ के किंगफिशर कैलेंडर की नर्गिस की छवि को भुनाने की कतई कोशिश नहीं की गई है.
कुल मिलाकर रणवीर कपूर के ना चाहने वालों के लिए भी. रॉक स्टार एक must watch फिल्म है.
हिंदी सिनेमा के इस दौर में जहाँ फिल्म में कहानी के नाम पर रेशेसन आया हुआ है ,इम्तियाज अली ने एक मास्टर पीस बनाया है और वे निसंदेह बहुत सी बधाई और हिंदी फिल्म दर्शकों की तरफ के एक बड़े वाले थैंक्स के हक़दार हैं.