यूँ सुना था तथाकथित अमीर और विकसित देशों में सड़कों पर जानवर नहीं घूमते. उनके लिए अलग दुनिया है. बच्चों को गाय, बकरी, सूअर जैसे पालतू जानवर दिखाने के लिए भी चिड़िया घर ले जाना पड़ता है. और जो वहां ना जा पायें उन्हें शायद पूरी जिन्दगी वे देखने को ना मिले.ये तो हमारा ही देश है जहाँ न  चाहते हुए भी हर जगह कुदरत के इन जीवों का भी अधिकार होता है. एक आजाद देश के आजाद नागरिक की तरह वे भी कहीं भी भ्रमण कर सकते हैं. किसी के भी घर में बिना बुलाये मेहमान बन घुस सकते हैं और यहाँ तक कि मेहमान नवाजी भी पा जाते हैं.और इन्हीं दृश्यों की तस्वीरें बड़े शौक  और हैरत से खींच खींच कर विदेशी पर्यटक ले जाते हैं.और ऐलान हो जाता है कि भारत में तो सड़कों पर मनुष्य की  ही तरह जानवरों का भी अधिकार है.


लन्दन आये तो यह बात एकदम सच साबित होती लगी ॰यहाँ वहां टहलती कुछ खूबसूरत बिल्लियों और पार्कों में अपने मालिकों के साथ घूमते कुछ कुत्तों के अलावा कहीं कोई जानवर नजर नहीं आता. परन्तु घर के बाहर रखे कचरे के काले थैले  लगभग रोज़ ही बेदर्दी से फटे मिलते और उनके अन्दर का सामान इस कदर और इतनी दूर तक बिखरा होता कि समेटने में कमर में बल पड़ जाएँ , दुर्गन्ध इतनी अधिक और इतनी अजीब कि समझना दूभर हो जाये कि कचरे का पोस्ट- मार्टम  खाना  ढूंढने के लिए किया गया है या किसी और काम के लिए.इस काम को अंजाम किसी बिल्ली ने दिया होगा, ये मानना जरा मुश्किल था परन्तु इसके अलावा कोई और कारण समझ में भी नहीं आता था.फिर एक दिन रसोई की खिड़की के शीशे पर एक कुत्ते नुमा जानवर का  मुँह अपनी नाक रगड़ता दिखा.अमूमन पालतू कुत्ते यूँ बिना मालिक के बाहर नहीं घूमा करते परन्तु हो सकता है मालिक की आँख बचा कर कोई उस तरफ निकल आया हो.कभी कभार बगीचों में भी ऐसी ही हलचल दिखाई दे ही जाती है.फिर कुछ दिनों बाद लॉन में टहल कर रसोई में घुसी तो वही जीव रसोई के बीचों बीच  खडा मुझे निहारता मिला. गले सो जो चीख निकली कि घबरा कर वह लॉन  से होता हुआ भाग निकला. आँखें फाड़ कर देखा तो झब्बा सी पूँछ दिखाई दी ..उफ़ ..ये कुत्ता तो नहीं …क्या था फिर.? आसपास तहकीकात शुरू की तो पता चला कि वह लोमड़ी   थी. और उनका यूँ खुलेआम शहरों में घूमना बहुत आम बात है.यहाँ तक कि कचरे की चीरफाड़ के पीछे भी उन्हीं का हाथ (पैर ) हैं. उसके बाद धीरे धीरे वक़्त के साथ लन्दन में लोमड़ी   के आतंक के अनेकों किस्से देखने सुनने में आने लगे और यह भी कि इस देश में चूहे, कॉकरोच और लावारिस घूमते कुत्तों आदि से निबटने के लिए पेस्ट कण्ट्रोल है. परन्तु इन लोमड़ियों  के मामले में वह भी हाथ खडा कर देते हैं.
   
 
यूँ इन्हें एक ना नुक्सान पहुँचाने वाला जंगली पशु समझा जाता है.परन्तु गाहे बगाहे अच्छा खासा आतंक फैलाने में यह माहिर हैं और लोग इनसे काफी त्रस्त दिखाई पड़ते हैं. 

 १९३० के बाद से इन्होने ब्रिटेन के शहरों में घूमना शुरू किया.और ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी  के मैमल  रिसर्च यूनिट के अनुसार  २२५,००० ग्रामीण और ३३,००० शहरी लोमड़ियाँ ब्रिटेन के शहरों में टहला करती हैं.

हाल में आई एक खबर के मुताबिक एक मशहूर चीनी खाद्य लेखक की पत्नी उस समय आतंक  से दहल गई जब उसने अपने बगीचे में एक लोमड़ी  को अपने दो छोटे छोटे पालतू पप्पी पर हमला करते हुए देखा. बहुत कोशिशों के बाद लोमड़ी   को भगाने में सफल हुई महिला ने जब अपने उस पप्पी को देखा तो वह खून से लतपथ था.जिसके इलाज के लिए उसे फिर ऑपरेशन   करके  आई सी यू में रखा गया जिसका खर्चा £२२०० से भी अधिक आया.परन्तु उनके शिकायत करने के वावजूद काउंसिल के पेस्ट कण्ट्रोल वालों के लिए यहलोमड़ियाँ नुक्सान रहित और उनके कार्यक्षेत्र  से बाहर ही रहीं.सामान्यत: उन्हें एक डरपोक और हार्मलेस जीव समझा जाता है. जिसका एक और उदाहरण हाल में सामने आया जब एक टीवी प्रेजेंटर ने एक शो के दौरान इस बात को मानने से इंकार कर दिया कि लोमड़ी  किसी पर हमला कर सकती है. उनके इस कथन पर एक एम्बुलेंस  के कार्यकर्ता ने घोर नाराजगी जताई  जिसके हाथ की एक उंगली  का ऊपरी हिस्सा लोमड़ी ने खा लिया था. आखिर इस दर्द को वही जान सकता है जिसने इसे झेला हो.

 हालाँकि ब्रिटेन के ४००० घरों में किये गए एक सर्वेक्षण के अनुसार ६५.७% लोगों को यह शहरी जीव पसंद है,२५.८% लोगों के इस बारे में कोई विचार नहीं हैं और सिर्फ ८.५% लोग इसे नापसंद करते हैं . 

ऐसे में सड़कों पर पालतू पशुओं के घूमने को पिछडापन कहने वालों के पास  इस जंगली शहरी जीव से निबटने के लिए ना कोई व्यवस्था है ना ही कोई प्रावधान . आपको इनसे छुटकारा पाना है तो अपने ही बूते पर किसी निजी संस्था को भारी रकम चुका कर पाना होगा. धन्य है ऐसे विकसित और सभ्य शहर. ऐसे में भला हमारे देश के बेचारे मासूम गाय ,बैलों ने क्या गुनाह किया है.

साभार – हर शनिवार दैनिक जागरण  में “लन्दन डायरी “