कल देखा था मैंने उसे 

वहीँ उस कोने में 
बैठा था चुपचाप
मुस्काया मुझे देख 
सोचा होगा उसने 
कुछ तो करुँगी 
बहलाऊँगी ,मनाऊंगी 
फिर उठा लुंगी अहिस्ता से 
हमेशा ही होता है ऐसे.
वो जब तब रूठ कर बैठ जाता है 
थोडा ठुनकता है,
यहाँ वहां दुबकता है 
फिर मान जाता है.
पर इस बार जैसे 
कुछ अलग है 
नहीं है हिम्मत मनाने की 
जज्बा बहलाने का 
स्नेह उसे उठाने का 
इसलिए अभी तक वहीँ पड़ा है वो
कुम्हलाया,सकुचाया, हताश सा 
मेरा अस्तित्व .