उगता सूर्य कल यूँ बोला,

चल मैं थोडा ताप दे दूं 
ले आ अपने चुनिन्दा सपने
कुछ धूप मैं उन्हें दिखा दूँ 
 उल्लासित हो जो ढूंढा 
कोने में कहीं पड़े थे, 
कुछ सीले से वो सपने

निशा की ओस से भरे थे.

गत वो हो चुकी थी उनकी 
लगा श्रम बहुत उठाने में 
जब तक टाँगे बाहर आकर 
सूरज जा चुका था अस्तांचल में 
 अब फिर इंतज़ार दिनकर का, 
कब वो फिर से पुकारेगा, 
खूंटी पर टंगे मेरे सपनो को 
क्या कभी धूप वो दे पायेगा.?