हे नारी तू हड़प्पा है…
अब आप सोच रहे होंगे कि भाई, नारी का हड़प्पा से क्या सम्बन्ध ? तो जी ! जैसे हड़प्पा की खुदाई चल रही है सदियों से, रोज़ नए नतीजे निकाले जाते, हैं फिर उन्हें अपने शब्दों में ढाल इतिहास बना दिया जाता है …
ऐसे ही बेचारी नारी है- खुदाई दर खुदाई हो रही है आदिकाल से, और किये जा रहे हैं सब अपने अपने तरीके से व्याख्या पर नतीजा ? ठन-ठन गोपाल….सच्चाई का किसी को कुछ पता नहीं परन्तु खोदना बंद नहीं होता.बड़े -बड़े विद्वान् आते हैं कुछ खोजते हैं पता नहीं क्या का क्या समझते हैं और फिर अपनी ही कोई मनघडंत कहानी बना इतिहास में छाप देते हैं.
किसी ने निष्कर्ष निकाला कि कमजोर है बेचारी तो घर ले जाकर बिठा दिया ।
तो किसी को दुर्गा नजर आई तो माथा टिका दिया.
किसी को सुन्दरता दिखी तो अजंता अलोरा में लगा दिया. 
तो किसी ने भोग बना कर कोठों पर सजा दिया ।
पर नारी पर शोध ख़तम नहीं हुआ. यहाँ तक कि बड़े बड़े ऋषि मुनि भी अछूते नहीं रहे इस विषय से…अब तुलसी दास को ही लीजिये लिखनी थी राम कथा -तो उसमें भी औरत को ले आये…और ताड़न का अधिकारी बना डाला. अब न जाने उनकी कौन सी भेंस खोली थी किसी औरत ने
ऋषियों ने वेदों में त्रिया चरित्र करार दे दिया .
फिर हमारे राष्ट्र कवि मैथली शरण गुप्त जी ने नारी को अबला बना दिया।( अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी…)
पर शोध ख़तम नहीं हुआ…लगातार जारी है।अब जब सारी उपमाएं, तुलनाये ख़तम हो गई तो कुछ नारी वाद का झंडा ले खड़े हो गए. और निष्कर्ष निकाला गया कि हम किसी से कम नहीं… और लड़े जा रहे हैं इसी मुद्दे पर ….
तो कहीं हो रही हैं चर्चाओं पर चर्चाएँ ..,शोध पर शोध ।
कोई अपने सर्वे के आधार पर कहता है की यह गेहुआं सांप होतीं हैं…औरतें झूठ का पुलिंदा होती हैं….
तो कोई अपने शोध से निष्कर्ष में उसे झूठी, कपटी, बहलाने -फुसलाने वाली बना देता है.अरे जब इतना समझते हो तो क्यों आते हो झांसे में दूर रहो नारी से।
मुझे तो समझ ये नहीं आता कि इस नारी नाम की मनुष्य को बख्श क्यों नहीं दिया जाता. अरे ऊपर वाले ने एक कृति गढ़ी है बाकि सब की तरह. जैसे ये पृथ्वी है, आकाश है,पेड़ -पौधे हैं, जानवर है वैसे ही एक नर है और एक नारी है फिर ये नारी को ही लेकर इतना हंगामा क्यों ?और बहुत से विषय हैं सोचने के लिए, सुलझाने के लिए, रिसर्च के लिए, उन पर ध्यान दो. नारी को ऐसे ही रहने दो जैसी वो है क्यों उसे वेवजह शोध का विषय बनाया हुआ है ?
बेचारा ऊपर वाला भी सोचता होगा – ये क्या बला बना दी मैने, कि बाकि सारी समस्याएं, सारे कर्म भूल कर सब इसी पर शोध करने पे तुले हुए हैं.
तो तात्पर्य ये है, 
जिसे उसका रचियता (ब्रह्मा) नहीं समझ सका उसे आप- हम जैसे तुच्छ मनुष्य क्या समझेंगे… तो बेहतर होगा नारी पर रिसर्च करने की बजाय दुनिया की बाकी समस्याओं का हल ढूँढने में वक़्त का उपयोग किया जाये.