निर्मल हास्य के लिए जनहित में जारी 🙂 सफलता – कहते हैं ऐसी चीज होती है जिसे मिलती है तो नशा ऐसे सिर चढ़ता है कि उतरने का नाम नहीं लेता. कुछ लोग इसके दंभ में अपनी जमीं तो छोड़ देते  हैं. अब क्योंकि ये तो गुरुत्वाकर्षण का नियम है कि जो ऊपर गया है वह नीचे भी जरुर आएगा या…

लोकार्पण  सुश्री संगीता बहादुर ( डारेक्टर नेहरु सेंटर) १४ मार्च बुधवार की शाम को लन्दन स्थित नेहरु सेंटर में  पुस्तक ” स्मृतियों में रूस ” का विमोचन  हुआ .समारोह में सम्मानित अतिथि  सुश्री संगीता बहादुर ने सर्प्रथम सभी का स्वागत करते हुए लेखिका को बधाई देते हुए अपनी बात शुरू की. श्री कैलाश बुधवार (पूर्व बी बी सी प्रमुख )ने पुस्तक…

  पिछले दिनों गिरीश पंकज जी की एक ग़ज़ल पढ़कर कुछ यूँ ख़याल आये. ये संघर्ष हद से गुजर न जाये देखना औरत टूट कर बिखर न जाये देखना.  बैठा तो दिया है मंदिर में देवी बनाकर  वो पत्थर ही बन न जाये देखना  रोज उठती है,झुकती है,लचीली है बहुत  एक दिन अकड़ ही न जाये देखना. नज़रों में छुपाये हैं हर आँख का…

लन्दन के एक मंदिर में त्यौहारों पर लगती लम्बी भीड़ त्यौहार पर मंदिर में लगती लम्बी भीड़, रंग बिरंगे कपड़े, बाजारों में, स्कूल के कार्यक्रमों में बजते हिंदी फ़िल्मी गीत,बसों पर लगे हिंदी फिल्म और सीरियलों के पोस्टर.और कोने कोने से आती देसी मसालों  की सुगंध .क्या लगता है आपको किसी भारतीय शहर की बात हो रही है.है ना? जी नहीं यहाँ भारत के किसी शहर की नहीं…

भावनाऐं हिंदी कविता की  किताब हो गईं हैं जो  ढेरों उपजती हैं  पर पढीं नहीं जातीं. ****** भावनाऐं  प्रेशर कुकर भी हैं  जब बढ़ता है दबाब तो मचाती हैं शोर  चाहती है सुने कोई कि पक चुकी हैं. बंद की जाये आंच अब.  ********* भावनाओं का ज्वर जब चढ़ता   है  तो चाहिए होता है स्पर्श  माथे पर ठंडी पट्टी सा  दो  चम्मच मधुर…

 नवभारत में प्रकाशित  क्या पुरुष प्रधान समाज में, पुरुषों के साथ काम करने के लिए,उनसे मित्रवत  सम्बन्ध बनाने के लिए स्त्री का पुरुष बन जाना आवश्यक है ?.आखिर क्यों यदि एक स्त्री स्त्रियोचित व्यवहार करे तो उसे कमजोर, ढोंगी या नाटकीय करार दे दिया जाता है और यही  पुरुषों की तरह व्यवहार करे तो बोल्ड, बिंदास और आधुनिक या फिर चरित्र हीन .यूँ मैं कोई नारी वादी…

तेरे रुमाल पर जो धब्बे नुमायाँ हैं  साक्षी हैं हमारे उन एहसासात के   एक एक बूँद आंसू से जिन्हें  हमने साझा किया था  सागर की लहरों को गिनते  हुए. ******************************** इतनी देर तक जो  इकठ्ठा होते रहे उमड़ते रहे  घुमड़ते रहे  इन आँखों में. अब जो छलके तो  गुनगुने नहीं  ठन्डे लगेंगे  ये आंसू. ************************ * बंद होते ही पलक से  जो बूँद शबनम सी गिरती…

  अभी कुछ दिन पहले करण समस्तीपुर की एक पोस्ट पढ़ी कि कैसे उन्होंने अपनी सद्वाणी  से एक दुर्लभ सा लगने वाला कार्य करा लिया जिसे उन्होंने गाँधी गिरी कहा.और तभी से मेरे दिमाग में यह बात घूम रही है कि भाषा और शब्द कितनी अहमियत रखते हैं हमारी जिन्दगी में. यूँ कबीर भी कह गए हैं कि- ऐसी वाणी बोलिए , मन का आपा…

चॉकलेट,मिठाई  आलिंगन, चुम्बन. गुलाब और टैडी  सारे पड़ावों से गुजर  आखिर में  प्रेम का नंबर आ ही गया  सुना है आज प्रेम दिवस है. ************* रीत कुछ हम भी निभा लें, कुछ लाल तुम पहन लो  कुछ लाल मैं भी पहन लूं  चलो हाथ में हाथ डाल  कुछ दूर यूँ ही टहल आयें कमबख्त लाल फूल भी आज  बहुत महंगे हैं. *******************  खाली बगीचे से मन …

फरवरी के महीने में ठंडी हवाएं, अपने साथ यादों के झोकें भी इतनी तीव्रता से लेकर आती हैं कि शरीर में घुसकर हड्डियों को चीरती सी लगती हैं.फिर वही यादों के झोंके गर्म लिहाफ बनकर ढांप लेते हैं दिल को, और सुकून सा पा जाती रूह. कुछ  मीठे पलों की गर्माहट इस कदर ओढ़ लेता है मन कि पूरा साल…