तेरे रुमाल पर जो धब्बे नुमायाँ हैं
साक्षी हैं हमारे उन एहसासात के
एक एक बूँद आंसू से जिन्हें
हमने साझा किया था
सागर की लहरों को गिनते हुए.
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इतनी देर तक जो
इकठ्ठा होते रहे
उमड़ते रहे
घुमड़ते रहे
इन आँखों में.
अब जो छलके तो
गुनगुने नहीं
ठन्डे लगेंगे
ये आंसू.
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बंद होते ही पलक से
जो बूँद शबनम सी गिरती है.
मचल कर धीरे से जो
मेरी तर्जनी पर सरकती है.
अपनी मुट्ठी की सीपी में छिपा
उसे मोती सा बना दूं
फिर तेरे लबों पर
हंसी के टुकड़े सा लुढका दूं
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आंसू और समंदर.. समंदर का गुनगुनापन और खारापन पूरी तरह से उतर आया है.. शायद यही रिश्ते सबसे प्यारे होते हैं..धुले हुए आंसुओं से!! पाकीजा!!
शानदार भावमय प्रस्तुति.
मृदुल कोमलता का अहसास कराती हुई.
मेरी बात…पर आपका इन्तजार है.
अपनी मुट्ठी की सीपी में छिपा
उसे मोती सा बना दूं
फिर तेरे लबों पर
हंसी के टुकड़े सा लुढका दूं
Wah!
न जाने इनमें कितनी भावनाएँ समाहित कर दी हैं आपने.
उफ़ मोहब्बत जो ना कराये कम है।
भावों से नाजुक शब्द को बहुत ही सहजता से रचना में रच दिया आपने………
रुमाल पर आंसुओं के निशान सागर की लहरों को गिनते हुये …उमड़ते घुमड़ते ठंडे आँसू …. और तर्जनी से सरकती बूंद को मोती बना …हंसीं का टुकड़ा लुढ़काने की चाह …. बहुत सुंदर … एक ही शब्द बस …गज़ब
..
तेरे रुमाल पर जो धब्बे नुमायाँ हैं
साक्षी हैं हमारे उन एहसासातों के
एक एक बूँद आंसू से जिन्हें
हमने साझा किया था
सागर की लहरों को गिनते हुए.
..
अंतस के गहन गह्वर से झरने सी फूटती मर्मस्पर्शी .. !!
बहुत देर तक जैसे मन्दिर के किसी घण्टे की अनुगून्ज कानों में .. गूंजती है ..
नि:शब्द ..
Shika ji
namaskar! ek baar nahi anek baar padhi aapki ye komal ahshash liye khubsurat rachna.
aapko is rachna ke liye badhai.
Ashq moti hain
Ashq hain shabnam.
ye hote hain anmol
isse rakhe sambhalkar.
तेरे रुमाल पर जो धब्बे नुमायाँ हैं
साक्षी हैं हमारे उन एहसासात के
एक एक बूँद आंसू से जिन्हें
हमने साझा किया था
सागर की लहरों को गिनते हुए… lahron si siskiyaan inse uthti hain , hamare hone ko kahti hui
शानदार प्रस्तुति ||
प्रभावी पंक्तियाँ.क्या बात है:
उमड़ते रहे
घुमड़ते रहे
इन आँखों में.
अब जो छलके तो
गुनगुने नहीं
ठन्डे लगेंगे
ये आंसू.
बंद होते ही पलक से
जो बूँद शबनम सी गिरती है.
मचल कर धीरे से जो
मेरी तर्जनी पर सरकती है.
अपनी मुट्ठी की सीपी में छिपा
उसे मोती सा बना दूं
फिर तेरे लबों पर
हंसी के टुकड़े सा लुढका दूं
bahut sunder aansuon ka ye rup bahut sunder tarike se darshaya hai aapne
rachana
आपकी पंक्तियाँ पढ़कर मुझे प्रसाद जी की पंक्तियाँ याद आई
अब छुटता नहीं छुडाये , रंग गया ह्रदय है ऐसा
आंसू से धुला निखरता , यह रंग अनोखा कैसा
भावनाओ के ज्वार ला देती हो आप शब्दों के माध्यम से .
कोमल अहसासों से सजी भावपूर्ण अभिव्यक्ति…
गर्म आंसूं , ठंडे आंसूं –वाह शिखा जी । यह प्रयोग भी अद्भुत रहा ।
आंसुओ का गुनगुना होना जीवित होने का प्रमाण है , ठन्डे आंसू भयावह से लगते है कुछ मुर्दा से
वाऊ!!परफेक्ट!! 🙂 🙂
आंसुओं की भी जुबां होती हैं… नाजुक से अहसास.. सुंदर क्षणिकाएं
खून और अश्क … जब तक यह गुनगुनापन इन दोनों में है … सारा खेल तब तक ही है !
गुनगुने आंसू कुछ मीठा सा गुनगुना गए |
आँसू भावों का समुन्दर बहा गये..
बहुत प्यारे एहसासों को खूबसूरती से पिरोया है आपने….
बहुत सुन्दर शिखा जी…
फिर तेरे लबों पर
हंसी के टुकड़े सा लुढका दूं…..
खुशियां लुटाते चलो……
बहुत उम्दा और सार्थक प्रस्तुति!
ये आंसू मेरे दिल की जुबान हैं । सुंदर भावभीनी रचना ।
प्यार में अक्सर लोग आंसू बहाया करते हैं, मिले तब भी और ना मिले तब भी।
बंद होते ही पलक से
जो बूँद शबनम सी गिरती है.
मचल कर धीरे से जो
मेरी तर्जनी पर सरकती है.
अपनी मुट्ठी की सीपी में छिपा
उसे मोती सा बना दूं
फिर तेरे लबों पर
हंसी के टुकड़े सा लुढका दूं
अनुपम भाव संयोजन लिए …बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
har boond moti hai……
बहुत ही बढ़िया।
सादर
गुनगुने आंसू ठन्डे हुए तो किसी लब की हंसी बन जाए …
अनूठा प्रयोग !
सुन्दर !
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 23-02-2012 को यहाँ भी है
..भावनाओं के पंख लगा … तोड़ लाना चाँद नयी पुरानी हलचल में .
छोटी छोटी रचनाएँ पर भाव बड़े बड़े ..बहुत सुन्दर
बहुत सुंदर , आंसुओं के ज़रिये मन के भाव शब्दों में ढले…..
जिस पर हमारी आंख ने मोती बिछाए रात भर, भेजा तुझे काग़ज़ वही, हमने लिखा कुछ भी नहीं।
बस …! और कुछ नहीं!!
(और कुछ कहने की ज़रूरत है क्या?)
ashq aur hansi ka bada hi gahra rishta hai….dhuli huyi muskrahat….wah!!!!
ashq aur hansi ka bada hi gahra rishta hai….dhuli huyi muskrahat….wah!!!!
आंसू और कविता!
वाह!
सच्चे प्यार के लिए निकले आंसूं समंदर से भी गहरे डूबा ले जाते हैं
जो बूँद शबनम सी गिरती है.
मचल कर धीरे से जो
मेरी तर्जनी पर सरकती है.
अपनी मुट्ठी की सीपी में छिपा
उसे मोती सा बना दूं!
बहुत सुन्दर,
सादर
अपनी मुट्ठी की सीपी में छिपा
उसे मोती सा बना दूं
फिर तेरे लबों पर
हंसी के टुकड़े सा लुढका दूं…..
क्या ही खुबसूरत…. वाह!
सादर बधईयाँ…
..इन भाव कणिकाओं का अपना प्रवाह है जो बह गया वह बह गया ,बहता रहा ,सुन्दर ,मनोहर …
अंकों के इन आसुंओं को किसी की हंसी में बदल देने की चाह …. प्रेम की गहरी अनुभूति से ही संभव है …
फिर तेरे लबों पर
हंसी के टुकड़े सा लुढका दूं……..बहुत खूब!!
aansoo kahen ya gunguna khaara pani ya aankh se ludhka moti, sabhi upmaa bahut sundar. bhaavpurn kshanikaaon ke liye badhai.
अप्रतिम भाव !
wah, kya khoob likha aapne
मन को छू जाने वाले भाव…
——
..की-बोर्ड वाली औरतें।
आँसू की बूंद… हंसी का टुकड़ा । बहुत खूबसूरत भावपूर्ण क्षणिकाएँ…
सुन्दर अभिव्यक्ति!
भावपूर्ण उत्तम अभिव्यक्ति.
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