तेरे रुमाल पर जो धब्बे नुमायाँ हैं 
साक्षी हैं हमारे उन एहसासात के  
एक एक बूँद आंसू से जिन्हें 
हमने साझा किया था 
सागर की लहरों को गिनते  हुए.
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इतनी देर तक जो 
इकठ्ठा होते रहे
उमड़ते रहे 
घुमड़ते रहे 
इन आँखों में.
अब जो छलके तो 
गुनगुने नहीं 
ठन्डे लगेंगे 
ये आंसू.

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बंद होते ही पलक से 
जो बूँद शबनम सी गिरती है.

मचल कर धीरे से जो 
मेरी तर्जनी पर सरकती है. 
अपनी मुट्ठी की सीपी में छिपा 
उसे मोती सा बना दूं 
फिर तेरे लबों पर 
हंसी के टुकड़े सा लुढका दूं
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