{New Observer Post Hindi Daily 28th nov.2009 (online edition )में प्रकाशित.} एक जमाना था जब पत्रमित्रता जोरों पर थी.देश विदेश में मित्र बनाये जाते थे, उसे ज्ञान बाँटने का और पाने का एक जरिया तो समझा ही जाता था, बहुत से तथाकथित रिश्ते भी बन जाया करते थे।और कभी कभी ब्लेक मैलिंग का सामान भी . आज यही काम इंटर…

आसमान के ऊपर भी एक और आसमान है, उछ्लूं लपक के छू लूँ  बस ये ही अरमान है। बना के इंद्रधनुष को अपनी उमंगों का झूला , बैठूँ और जा पहुँचूँ चाँद के घर में सीधा। कुछ तारे तोडूँ और भर लूँ अपनी मुठ्ठी में, लेके सूरज का रंग भर लूँ सपनो की डिब्बी में। उम्मीदों का ले उड़नखटोला जा उतरूं…

अनवरत सी चलती जिन्दगी में अचानक कुछ लहरें उफन आती हैं कुछ लपटें झुलसा जाती हैं चुभ जाते हैं कुछ शूल बन जाते हैं घाव पनीले और छा जाता है निशब्द गहन सा सन्नाटा फ़िर इन्हीं खामोशियों के बीच। रुनझुन की तरह, आता है कोई यहीं कहीं आस पास से करीब के ही झुरमुट से जुगनू की तरह चमक जाता…

कुछ दिनों से मेरे अंतर का कवि कुछ नाराज़ है. कुछ लिखा ही नहीं जा रहा था …पर मेरा शत शत नमन इस नेट की दुनिया को जिसने कुछ ऐसे हमदर्द और दोस्त मुझे दिए हैं , जिनसे मेरा सूजा बूथा देखा ही नहीं जाता और उनकी यही भावनाएं मेरे लिए ऊर्जा का काम करती हैं ॥ इन्हीं में एक…

आज कुछ पल सुकून के मिले थे शुक्रवार था .सप्ताहांत शुरू हो चुका था ,फुर्सत के क्षण थे तो यादों के झरोखे खुल गए और कुछ खट्टे मीठे पल याद आते ही जहाँ होठों पर मुस्कराहट आई वहीँ मन में एक सवाल हिल्लोरे लेने लगा… सोचा आपलोगों से बाँट लूं शायद जबाब मिल जाये. हुआ यूँ कि एक बार एक…

कितना आसान होता था ना जिन्दगी को जीना जब जन्म लेती थी कन्या लक्ष्मी बन कर होता था बस कुछ सजना संवारना सखियों संग खिलखिलाना, कुछ पकवान बनाना और डोली चढ़ ससुराल चले जाना बस सीधी सच्ची सी थी जिन्दगी अब बदल क्या गया परिवेश बोझिल होता जा रहा है जीवन जो था दाइत्व वो तो रहा ही बहुत कुछ…

सपनो को बंद करके पलक पर थे हम चले। शब्दों के कुछ फूल मन बगिया में जो खिले समेट कर आज इन्हें बिखरा दिया है इसकदर तमन्ना है की आपकी पलकों पर ये सजें ************************ बड़ी शिद्दत से बिछाये बैठे थे प्यार के गलीचे को खबर क्या थी उसमें खटमल भी आ जाया करते हैं ************* आज इस बारिश की…

सुनो! पहले जब तुम रूठ जाया करते थे न, यूँ ही किसी बेकार सी बात पर मैं भी बेहाल हो जाया करती थी चैन ही नहीं आता था मनाती फिरती थी तुम्हें नए नए तरीके खोज के कभी वेवजह करवट बदल कर कभी भूख नहीं है, ये कह कर अंत में राम बाण था मेरे पास। अचानक हाथ कट जाने…

रुकते थमते से ये कदम अनकही कहानी कहते हैं यूँ ही मन में जो उमड़ रहीं ख्यालों की रवानी कहते हैं रुकते थमते….. सीने में थी जो चाह दबी होटों पे थी जो प्यास छुपी स्नेह तरसती पलकों की दिलकश कहानी कहते हैं रुकते थमते…. धड़कन स्वतः जो तेज हुई अधखिले लव जो मुस्काये माथे पर इठलाती लट की नटखट…

लो फिर आ गई दिवाली… हम फिर करेंगे घर साफ़ मगर मन तो मेले ही रह जायेंगे . दिल पर चडी रहेगी स्वार्थ की परत पर दीवारों पे रंग नए पुतवायेंगे . फिर सजेंगे बाज़ार मगर जेबें खाली ही रह जाएँगी . जगमगायेंगी रौशनी की लडियां पर इंसानियत अँधेरा ही पायेगी . आस्था से क्या लेना-देना हमें पर लक्ष्मी पूजन…