आज भी जब हो जाते हैं
मन के विचार गड्डमड्ड
डिगने लगता है आत्मविश्वास
डगमगाने लगता है स्वाभिमान
नहीं सूझती कोई राह
उफनने लगता है गुबार
छूटने लगती है हर आस
तो दिल मचल कर कहता है
तुम कहाँ हो ?
यहाँ क्यों नहीं हो?
फिर एक किरण आती है नजर
भंवर में जैसे मिल जाती है डगर
भेद सन्नाटा एक आवाज आती है
मन के सारे संशय मिटा जाती है
कुछ फुसफुसाती है कान में
और उतर जाती है सांस में।
फिर मैं कहती हूँ
हॉं तुम यहीं हो, यहीं कहीं हो !
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अपने बारे में कुछ कहना कुछ लोगों के लिए बहुत आसान होता है, तो कुछ के लिए बहुत ही मुश्किल और मेरे जैसों के लिए तो नामुमकिन फिर भी अब यहाँ कुछ न कुछ तो लिखना ही पड़ेगा न. तो सुनिए. मैं एक जर्नलिस्ट हूँ मास्को स्टेट यूनिवर्सिटी से गोल्ड मैडल के साथ टीवी जर्नलिज्म में मास्टर्स करने के बाद कुछ समय एक टीवी चैनल में न्यूज़ प्रोड्यूसर के तौर पर काम किया, हिंदी भाषा के साथ ही अंग्रेज़ी,और रूसी भाषा पर भी समान अधिकार है परन्तु खास लगाव अपनी मातृभाषा से ही है.अब लन्दन में निवास है और लिखने का जुनून है.