गीली सीली सी रेत में
छापते पांवों के छापों में
अक्सर यूँ गुमां होता है
तू मेरे साथ साथ चलता है
..
सुबह की पीली धूप जब
मेरे गालों पर पड़ती है

शांत समंदर की लहरें
जब पाँव मेरे धोती हैं
उन उठती गिरती लहरों में अब भी
मुझे अक्स तेरा दिखाई देता है
.
उस गोधुली की बेला में
जब ये दिल दिए सा जलता है
दूर क्षितिज में जब सूरज
अपनी संध्या से मिलता है
तब मेरी इन बाँहों को भी तेरे ,
आलिंगन का अहसास होता है

इस ठंडी सिकुड़ी रात में जब
तन मेरा सिहरने लगता है
तपते आग के शोलों में
मन मेरा पिघलने लगता है
तेरे सपनो की आस में तब
मेरे नैना धीरे से मुंद जाते हैं
माँ की गोद में सर रख जैसे,
नन्हा बच्चा कोई सो जाता है

पाँव के नीचे से जैसे
ये रेत फिसलती जाती है
वैसे ही चुपके से मेरी
रातें गुजरती जाती हैं.
दिन रैन की धूप छाँव में
लेकिन
यकीन हर पल ये होता है
मेरे दिल के किसी कोने में
कहीं न कहीं तू रहता है