मनोज जी ने अपने ब्लॉग पर प्रवासी पंछियों पर एक श्रंखला शुरू की है. जो मुझे बेहद पसंद है .क्योंकि उसमें मुझे अपने बचपन के बहुत से सवालों के जबाब मिल जाते हैं.ये कुछ पंक्तियाँ उन्हीं आलेखों से प्रेरित हैं.
कहते हैं उड़ान परों से नहीं
हौसलों से होती है
पर क्या हौसला ही काफी है.
हौसले के साथ तो 
उड़ता है बादल भी
पर कहलाता है आवारा.
यूँ तो उड़ता है पत्ता भी
पर निर्भर होता है
 
 हवा के रुख पर.
उड़ान हो तो ऐसी
जैसे उड़ते हैं पंछी
संतुलित करके परों को
सोच कर मंजिल को
पहचान कर सही दिशा को
उड़ो  तुम भी,
बेशक “पर” हौंसलों के हों
पर ध्यान रहे
गंतव्य तक पहुँचने के लिए
सही दिशा का भान होना
बेहद जरुरी है