मन की राहों की दुश्वारियां

निर्भर होती हैं उसकी अपनी ही दिशा पर
और यह दिशाएं भी हम -तुम निर्धारित नहीं करते 
ये तो होती हैं संभावनाओं की गुलाम 
ये संभावनाएं भी बनती हैं स्वयं 
देख कर हालातों का रुख 
मुड़ जाती हैं दृष्टिगत राहों पे
कुछ भी तो नहीं होता हमारे अपने हाथों में 
फिर क्यों कहते हैं कि आपकी जीवन रेखाएं 
आपके ही हाथों में निहित होती हैं.
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कुछ पल छोड़ देने चाहिए यूँ ही 
तैरने को हलके होकर 
शून्य में 
मिले जहाँ बहाव ,बह चलें
क्यों जरुरी है उनका 
सही गलत निर्धारण करना
उन्हें भारी बना देना 
और करना ज़बरदस्ती,
बाँधे रखने की कोशिश।
जबकि बंध तो नहीं पाते वे फिर भी
क्योंकि मन की डोरी होती है बड़ी कच्ची 
उससे बाँध भी लें  उन पलों को 
तो रगस उसमें भी लगती है 
फिर शनै : शनै :  कोमल सी वो डोरी 
टूट जाती है कमजोर होकर. 
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मेरा अपना मेरा है 

उस पर हक़ भी मेरा है

क्यों हो वो तेरा,इसका, उसका 
क्यों ना मुझसे मेरा साक्षात्कार हो 
जिसपर मेरा, सिर्फ मेरा अधिकार हो .