लरजती सी टहनी पर
झूल रही है एक कली
सिमटी,शरमाई सी
थोड़ी चंचल भरमाई सी
टिक जाती है
हर एक की नज़र
हाथ बढा देते हैं
सब उसे पाने को
पर वो नहीं खिलती
इंतज़ार करती है
बहार के आने का
कि जब बहार आए
तो कसमसा कर
खिल उठेगी वह
आती है बहार भी
खिलती है वो कली भी
पर इस हद्द तक कि
एक एक पंखुरी झड कर
गिर जाती है भू पर
जुदा हो कर
अपनी शाख से
मिल जाती है मिटटी में.
यही तो नसीब है
एक कली का
झूल रही है एक कली
सिमटी,शरमाई सी
थोड़ी चंचल भरमाई सी
टिक जाती है
हर एक की नज़र
हाथ बढा देते हैं
सब उसे पाने को
पर वो नहीं खिलती
इंतज़ार करती है
बहार के आने का
कि जब बहार आए
तो कसमसा कर
खिल उठेगी वह
आती है बहार भी
खिलती है वो कली भी
पर इस हद्द तक कि
एक एक पंखुरी झड कर
गिर जाती है भू पर
जुदा हो कर
अपनी शाख से
मिल जाती है मिटटी में.
यही तो नसीब है
एक कली का
जीवन का यही सत्य है लेकिन यदि किसी कली को जबरन बिखेरदे तब यह हमारी विकृति का प्रतीक है।
सौभाग्य ही है कली का जो पूरी तरह खिल सकी …यथा समय खुशियाँ भी बिखेर सकी …
क्षणभंगुर जीवन की सुंदर कहानी ….
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति …शिखा जी …
बहुत ही खूबसूरत भावभिव्यक्ति…:)वाकई यही तो नसीब है हर एक कली का…
kali khili ,phuli phali, bikhri hui tamam.
mager mehek ka de gai, duniya ko inaam….
jindagi kitni chhoti hoti है naa ! isliye jitna ho sake khushiyan बिखेरते रहिये .
सुन्दर अभिव्यक्ति……
ज़िन्दगी की हकीकत बयाँ करती सुन्दर प्रस्तुति।
मिट्टी से बनना और मिट्टी में मिल जाना यही जीवन है… कली का खिलना जीवन की सुन्दरता… सुन्दर भाव
jeevan ka shashwat satya… janam, fir khilkhilana, fir thora sundar dikhna… fir khatm:)
ek baar fir se dikha diya, tumhe har vidha me maharat hasil hai.!!
सौन्दर्य का एक यथार्थ -अच्छी लगी कविता
एक भारतीय स्त्री का जीवन झलक रहा है इस कविता में… अद्भुत
क्या बात है… खूबसूरत अभिव्यक्ति…
इस से कुछ उल्टा भी होता हैं …कुछ कलियाँ देवों को भी अर्पित की जाती हैं …हर कली धूल में मिलने के लिए पैदा नहीं होती ……
अत्यंत सुंदर और सटीक, क्या जीवन भी कली की तरह नही होता?
रामराम
bahut sundar rachna …………kali bhi ek sandesh de rahi hai
सत्याभिव्यक्ति…. बहुत सुंदर रचना…
सादर।
जीवन का यथार्थ , उसकी क्षण भंगुरता , इस कली के माध्यम से ख़ूबसूरती से चित्रित किया है . आभार
जीवन का सच …सुंदर बिम्ब लिए रचना
यथार्थवादी कविता … यदि कुछ देवों को अर्पित होती हैं तो कुछ को पैरों तले भी मसलने का प्रयास होता है …. यह मानसिकता कहाँ और कब जा कर रुकेगी नहीं पता …
wow
बेहद उम्दा … जय हो … 🙂
आपके इस खूबसूरत पोस्ट का एक कतरा हमने सहेज लिया है प्लस ३७५ कहीं माइनस न कर दे … सावधान – ब्लॉग बुलेटिन के लिए, पाठक आपकी पोस्टों तक पहुंचें और आप उनकी पोस्टों तक, यही उद्देश्य है हमारा, उम्मीद है आपको निराशा नहीं होगी, टिप्पणी पर क्लिक करें और देखें … धन्यवाद !
बहुत ही सुन्दर सुकोमल कविता |
कली खिल कर फूल बनी…खुशबु फैलाई….फिर तो झरना ही था उसे….
यही तो जीवन है….
जी भर कर जी लिया तो फिर क्या गम….
🙂
अनु
कली का जीवंत चित्रण…मानो कली भी ऍम आप में ही कोई हो…बहुत सुन्दर…!!
ख़ुशबू बिखर जाए बस इतनी सी चाह है ,
मृत्यु से बचने की कहाँ कोई राह है |
सुन्दर अभिव्यक्ति
Eeshwar aapkee lekhan kshamta barqaraar rakhe! Mai to likhna bhool-si gayee hun!
डूबकर जो ना देखे , वो कैसे जाने !
बहुत खूबसूरत है
आती है बहार भी
खिलती है वो कली भी
पर इस हद्द तक कि
एक एक पंखुरी झड कर
गिर जाती है भू पर
वह आप इतना खुबसूरत लिखती भी हैं ,प्रकृति के निकट मन के भाव ..वाह
bahut sundar likha hai.
कली का छिपा सौन्दर्य बाहर आना ही है, प्रकृति सहायक है…
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (15-07-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
महादेवी वर्मा जी की एक कविता की याद दिला रही है, जो आठवीं कक्षा में पढ़ी थी। सुंदर….
ये इस संस्कृति का, परंपरा का सत्य है। अपनी डाल से बिछड़कर दूसरे की मिट्टी में उसे (कली को) नया जीवन शुरू करना पड़ता है।
हम सब अपना काम करते हैं और चले (बिखर) जाते हैं !
आभार एक प्रभावशाली रचना के लिए !
नसीब अपना अपना
हमेशा की तरह सुंदर रचना पर
यही तो नसीब है एक कली का – मेरी असहमति दर्ज करे
यही तो जीवन है..
बहुत ही बेहतरीन रचना:-)
बहुत सुन्दर रचना. यह किस फूल की कली है, जानना चाहूँगा.
जीवन का यही तो सच है. सुंदर प्रस्तुति.
सुंदर रचना !!
कली को खिलना
भी तो पड़ता है
आज नहीं तो कल
एक फूल बनना
भी पड़ता है
नई कली के आने
के लिये खाली
करनी ही पड़ती
है डाल !
Hi there,
Fantastic blog post, I wish to apprentice at the same time how you amend your website.
hmesha ki traha is bar bhi aap ki kvita ka jwab nhi
जीवन के सत्य को कालि के माध्यम से लिखा है आपने .. इंसानी जीवन का सत्य भी ही तो यही है …
nice creation, best wishes
Man ko chhu gayi kavita.
…………
ये है- प्रसन्न यंत्र!
बीमार कर देते हैं खूबसूरत चेहरे…
सुन्दर कविता है शिखा.
पर वो नहीं खिलती
इंतज़ार करती है
बहार के आने का
कि जब बहार आए
कली खिली और फिर माटी में मिली.
यही तो जीवन चक्र है.
असल बात है जीवन में तो बस खिलना.
आप का भी तो इन्तजार रहता है,मेरे ब्लॉग की
कली को खिलने का.
देखतें हैं बहार कब आती है.
कली के बिम्ब से एक पूरी जिंदगी का शब्द चित्र रख दिया !
बहुत अच्छी लगी आपकी यह रचना … लरजती सी टहनी पर
झूल रही है एक कली काफी सांगीतिक और मधुर लगी यह पंक्तियाँ
हकीकत समझाने का प्रयास।
Great work! That is the kind of info that are supposed to be shared around the net. Disgrace on Google for now not positioning this post upper! Come on over and talk over with my website . Thanks =)