आजकल भाव
सब सूख से गए हैं
आँखों से पानी भी
गिरता नहीं
परछाई भी जैसे
जुदा जुदा सी है
मन भी अब
पाखी बन उड़ता नहीं
पंख भी जैसे
क़तर गए हैं.
पर फिर भी
ये दिल धडकता है
ज्यादा इत्मीनान से.
ख़ुशी भी झलकती है
अपने पूरे गुमान से
हाँ पर
ख़्वाबों को मेरे
ज़ंग लग गई है