संसार एक मुट्ठी में .यही भाव आता है आज का लन्दन देख कर .लन्दन का नाम आते ही ज़हन  में एक बहुत  ही आलीशान शहर की छवि उभरती हैं .बकिंघम पेलेस, लन्दन ब्रिज, लन्दन आई, मेडम तुसाद  और भी ना जाने क्या क्या. 
पर इन सबसे अलग एक लन्दन और भी है, एक ऐसा शहर जो सारी दुनिया खुद में समाये हुए है आज ऐसे ही लन्दन से आपकी मुलाकात कराती  हूँ. जहाँ आज लगभग ९० विभिन्न समुदायों के लोग निवास करते हैं और जहाँ ३०० से ज्यादा भाषाए बोली जाती हैं.जिनमें बंगाली, गुजरती, मेंडरीन, कौन्टेसी  और  प्रमुख हैं.और इसी एक पॉइंट पर लन्दन २०१२ में होने वाले ओलम्पिक खेलों का मेजबान बन गया. 
लन्दन अनुसन्धान केंद्र के आंकड़े बताते हैं कि यहाँ ३३ विभिन्न समुदायों के १०;०००  से ज्यादा ऐसे लोग रह रहे हैं जो इंग्लैंड  से बाहर पैदा हुए हैं. और इसके अलावा  १२ और विभिन्न समुदाय के ५००० से ज्यादा लोग यहाँ रहते हैं .प्रतिवर्ष यहाँ आने वाले आगंतुकों की संख्या १३ मिलियन हो चुकी है और २०१२ तक इनके बढ़ने  की पूरी उम्मीद है .अमेरिका फ़्रांस ,जर्मनी ,इटली ,पोलेंड और स्पेन के बाद २०१२ में लन्दन में  सर्वाधिक आगंतुकों के आने की उम्मीद के मद्देनजर पूर्वी और मध्य यूरोप  की संस्कृति की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए यहाँ के स्वं  सेवक  उनकी भाषाएँ पूरे जोश से सीख रहे हैं.
लन्दन हमेशा से कला और संस्कृति का गढ़ रहा  है .जहाँ चर्च  ऑफ़ इंग्लैंड  प्रमुख है वहीँ विभिन्न समुदायों के धार्मिक स्थलों की  भी कोई कमी नहीं है. 
एक दक्षिण भारतीय मंदिर                                  खूबसूरत गुरुद्वारा.
लन्दन के हर हिस्से में एक छोटा भारत ,चीन , बंगाल या रूस दिखाई पड़ जाता है .शायद इतनी विभिन्न चीज़ें आपने अपने देश में भी ना देखी हों जो यहाँ बहुत ही सहज रूप से मिल जाती हैं .हर इलाके में मंदिर,मस्जिद,गुरुद्वारा दिखाई दे जाता है जहाँ अपने अपने धर्म की शिक्षा दी जाती है.बच्चों को उनकी अपनी संस्कृति से अवगत कराया जाता है. 
इंग्लैंड आमतौर पर अपने भोजन के लिए नहीं जाना जाता है उनका तो ले दे कर फिश एंड चिप्स है बस .इसलिए बाकी दुनिया के भोजन का यहाँ बहुत प्रभाव है खासकर भारतीय भोजन का.अब इतने साल भारत का आतिथ्य  मिला है उन्हें, तो आदत तो लग ही जाएगी ना .लन्दन के हर मोड़ पर “इंडियन टेक अवे” मिल जाता है जहाँ चिकेन टिक्का मसाला, तंदूरी चिकेन ,नान और बासमती चावल इंग्लॅण्ड वासियों के मध्य बहुत लोकप्रिय हैं .
लन्दन के हर इलाके में भारतीय परंपरा के अनुसार कपड़ों की ,राशन की ,और खाने पीने  के स्थलों की भरमार है. यहाँ तक कि ठेले और आवाज़ लगाकर बुलाते सब्जी और फल वाले भी मिल जाते हैं. 
भारतीय श्रृंगार आभूषण और परिधान.
फलों का ठेला.
कोई ऐसी वस्तु   नहीं जो यहाँ नहीं मिलती चाहे वो शादी के लिए कपडे हों या पूजा के लिए गजरे .कोई ऐसा पकवान नहीं जो यहाँ उपलब्ध ना हो .चाहे वो सर्वाना  भवन का डोसा हो या गुजराती थाली ,गन्ने का रस हो या देसी पान की  दूकान .सब कुछ हर इलाके में बहुत सहजता से उपलब्ध है . 
सरवना  भवन और उसका डोसा.
यूँ अगर  सेंट्रल लन्दन के कुछ हिस्से छोड़ दिए जाएँ तो बाकी जगह पर हर दूसरा आदमी एशियन ही नजर आता है यानि आप पत्थर फेंको तो शर्तिया किसी भारतीय, पाकिस्तानी,बंगलादेशी या श्रीलंकन पर ही गिरेगा .इसका एक कारण ये भी है कि  ब्रिटिश ,अलग थलग रहने वाले ,रूखे और विनम्र लोग माने जाते हैं. अत: वे  मुख्य
शहर की भीड़ में रहना पसंद नहीं करते और शहर के बाहर रहना ज्यादा पसंद करते हैं .और उन्हें प्रभावित करना बहुत मुश्किल होता है.
लन्दन आज बहुआयामी संस्कृति ,फैशन ,मीडिया और मनोरंजन का केंद्र बना हुआ है..
नवरात्रों के समय हर इलाके में थोड़ी थोड़ी दूरी पर गरबा रास का आयोजन होता है ,बड़े बड़े होलो में दुर्गा पूजा के लिए भव्य मूर्तियाँ स्थापित की  जाती हैं .तो ईद और  दिवाली पर बच्चों को स्कूल से छुट्टी भी दी जाती है .यहाँ तक की ट्रेफेल्गर स्क्वायर  में दिवाली का भव्य रंगारंग कार्यक्रम भी किया जाता है 
दुर्गा पूजा.
भारत में रिलीज  होने वाली हर हिंदी फिल्म लन्दन में भी उसी दिन रिलीज की जाती है. हर समुदाय और देश के लोगों के सांस्कृतिक और धार्मिक आयोजन होते रहते हैं.और किसी भी समुदाय के लिए लन्दन अपनों से दूर एक ऐसा अपना घर है जहाँ रहते हुए अपने देश से दूर रहने का अहसास उन्हें नहीं सालता.