अनवरत सी चलती जिन्दगी में
अचानक कुछ लहरें उफन आती हैं
कुछ लपटें झुलसा जाती हैं
चुभ जाते हैं कुछ शूल
बन जाते हैं घाव पनीले
और छा जाता है निशब्द
गहन सा सन्नाटा
फ़िर
इन्हीं खामोशियों के बीच।
रुनझुन की तरह,
आता है कोई
यहीं कहीं आस पास से
करीब के ही झुरमुट से
जुगनू की तरह
चमक जाता है,
सहला जाता है
रिसते घावों को
ठंडी औषिधि की तरह,
और फिर से
कसमसा उठती हैं कलियाँ
खिल उठती है धूप
खनक उठते हैं सुर
और फिर एक बार
करवट लेती है जिन्दगी,
और चल पड़ती है
अपनी लय से उसी तरह,
आख़िर वक़्त भी कभी ठहरा है किसी के लिए.?