अनवरत सी चलती जिन्दगी में
अचानक कुछ लहरें उफन आती हैं
कुछ लपटें झुलसा जाती हैं
चुभ जाते हैं कुछ शूल
बन जाते हैं घाव पनीले
और छा जाता है निशब्द
गहन सा सन्नाटा
फ़िर
इन्हीं खामोशियों के बीच।
रुनझुन की तरह,
आता है कोई
यहीं कहीं आस पास से
करीब के ही झुरमुट से
जुगनू की तरह
चमक जाता है,
सहला जाता है
रिसते घावों को
ठंडी औषिधि की तरह,
और फिर से
कसमसा उठती हैं कलियाँ
खिल उठती है धूप
खनक उठते हैं सुर
और फिर एक बार
करवट लेती है जिन्दगी,
और चल पड़ती है
अपनी लय से उसी तरह,
आख़िर वक़्त भी कभी ठहरा है किसी के लिए.?
Now the serious one…
और फिर एक बार
करवट लेती है जिन्दगी,
और चल पड़ती है
अपनी लय से उसी तरह,
आख़िर वक़्त भी कभी ठहरा है किसी के लिए.?
sach ! kah rahin hain aap…. वक़्त भी कभी ठहरा है किसी के लिए.?
bahut hi achci kavita….. sach aur yatharth ko chitrit karti…..
आता है कोई
यहीं कहीं आस पास से
करीब के ही झुरमुट से
sach! aata hai koi…..jhurmut se nikal ke…aur bhaw…. karke daraa jaata hai…hihihihihihihihihi….
अनवरत सी चलती जिन्दगी में
अचानक कुछ लहरें उफन आती हैं
कुछ लपटें झुलसा जाती हैं
चुभ जाते हैं कुछ शूल
बन जाते हैं घाव पनीले
और छा जाता है निशब्द
गहन सा सन्नाटा
zindagi ke kadwe sach likh diye hain. hota hai ki shool itane gahare chubh jate hain ki waqt lagta hai unko nikaalne men .
फ़िर
इन्हीं खामोशियों के बीच।
रुनझुन की तरह,
आता है कोई
यहीं कहीं आस पास से
करीब के ही झुरमुट से
जुगनू की तरह
चमक जाता है,
सहला जाता है
रिसते घावों को
ठंडी औषिधि की तरह,
और फिर से
कसमसा उठती हैं कलियाँ
wah………kitna sakartamk vichaar hai….aur sach hi koi aa jata hai un ghavon ko sahlane…thandak pad jati hai mann men..kante apane aap nikal jate hain.
खिल उठती है धूप
खनक उठते हैं सुर
और फिर एक बार
करवट लेती है जिन्दगी,
और चल पड़ती है
अपनी लय से उसी तरह,
आख़िर वक़्त भी कभी ठहरा है किसी के लिए.?
sach hai waqt nahi thahrta….humen khud hi waqt ki dhaara ko modna padta hai….bahut sundar rachna….badhai
जिंदगी की हकीकत बयान करती है आपकी रचना । बहुत अच्छा लिखा है आपने । विचार और शिल्प दोनों स्तरों पर रचना प्रभावित करती है ।
मैने भी अपने ब्लाग पर एक लेख लिखा है- घरेलू हिंसा से लहूलुहान महिलाओं का तन और मन -समय हो तो पढ़ें और कमेंट भी दें । -http://www.ashokvichar.blogspot.com
कविताओं पर भी आपकी राय मेरे लिए महत्वपूर्ण होगी। मेरी कविताओं का ब्लाग है-
http://sahityakash.blogspot.com
रुनझुन की तरह,
आता है कोई
यहीं कहीं आस पास से
करीब के ही झुरमुट से
जुगनू की तरह
चमक जाता है,
-बहुत सुन्दर कोमल रचना!! बेहतरीन भाव!
बहुत ही प्रभावशाली रचना है
अपना असर छोडती है
मखमली प्यारी सी अभिव्यक्ति के लिए साधुवाद!
इन्हीं खामोशियों के बीच।
रुनझुन की तरह,
आता है कोई
कुछ लम्हे सौगात के मानिन्द होते है और जिन्दगी जिनके कारण एक बार फिर पटरी पर वापस आ जाती है
सुन्दर भाव की रचना
पहली बार आपके बलॉग पर आया | बहुत कुछ पाया |
बस इसी उम्मीद पर दुनिया कायम है….
और फिर एक बार
करवट लेती है जिन्दगी
आता है कोई
जुगनू की तरह
चमक जाता है
bahut achchhi rachna hai………shukriya
वक़्त ! नहीं ठहरता, चलते-चलते कुछ एहसास थमा जाता है., जो हमारे आगे है, बहुत बढ़िया
और फिर एक बार
करवट लेती है जिन्दगी,
और चल पड़ती है
अपनी लय से उसी तरह,
आख़िर वक़्त भी कभी ठहरा है किसी के लिए.?
बहुत बडिया और सही अभिव्यक्ति है । शुभकामनायें
आता है कोई
यहीं कहीं आस पास से
करीब के ही झुरमुट से
जुगनू की तरह
चमक जाता है,
सहला जाता है
रिसते घावों को
जी हाँ सत्य कहा है …. समय किसी के लिए नहीं रुकता …… कोई तो होता है जो अचानक आ कर आंसू पौंछ जाता है ….. सुन्दर प्रस्तुति है …..
आता है कोई
यहीं कहीं आस पास से
करीब के ही झुरमुट से
जुगनू की तरह
चमक जाता है,
सहला जाता है
रिसते घावों को
बहुत सुंदर…..!!
वक़्त के साथ चलती नज़्म ….!!
और फिर एक बार
करवट लेती है जिन्दगी,
और चल पड़ती है
अपनी लय से उसी तरह,
आख़िर वक़्त भी कभी ठहरा है किसी के लिए.?
bahut hi ashavaadi bhav liye huye hai ye kavita..aajkal kam milti hain aisi abhivyaktiyan (kuchh blogs nahi khul rahe the..itni der se padhi ye kavita..MY LOSS 🙁
अगर तूफ़ान में जिद है … वह रुकेगा नही तो मुझे भी रोकने का नशा चढा है……
आता है कोई
यहीं कहीं आस पास से
करीब के ही झुरमुट से
जुगनू की तरह
चमक जाता है,
सहला जाता है
रिसते घावों को
…..सुन्दर भाव
shikha ji….socho agar zingi karvat na le to kitna boring ho jaye na sab kuchh…to zindgi me dhoop chhaav ka aane vazib hai…dhoop aayegi to chhaav ki yaad dilayegi aur aise hi chhaav aayegi to dhoop ki mehetta pata chalegi..
bahut khoobsurat shabdo me dhala aapne ise aur ek sakratmak soch se poorn.
badhayi.
बहुत कोमल और भावपूर्ण कविता। आनन्द आ गया। शुक्रिया।
miles to go before I sleep!
miles to go before I sleep!
sarahneey.badhai!
फ़िर
इन्हीं खामोशियों के बीच
रुनझुन की तरह,
आता है कोई
यहीं कहीं आस पास से
करीब के ही झुरमुट से
जुगनू की तरह
—–
और फिर से
कसमसा उठती हैं कलियाँ
–वक्त कभी नहीं ठहरता हर रात के बाद सबेरा होता है।
bhaaga bhaaga firta hai yeh dil… bas zindagi ke saath behti chaliye ! umda likha hai!!
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