बात उन दिनों की है जब हम अमेरिका में रहते थे. एक दिन हमें हमारे बच्चों के स्कूल से एक इनविटेशन कार्ड मिला | उसकी क्लास के एक बच्चे का बर्थडे था. बच्चे छोटे थे, ये पहला मौका था जब किसी गैर भारतीय की किसी पार्टी में उन्हें बुलाया गया था तो हम एक अच्छा सा गिफ्ट लेकर ( पढने लिखने वाला ) पहुँच गए बच्चों को लेकर | एक प्ले एरिया में पार्टी थी वहां बच्चों को ले लिया गया और हमें कहा गया कि जी ३ घंटे बाद आ कर ले जाना | किसी ने बैठने को तो क्या एक ग्लास पानी को नहीं पूछा ठीक भी था आखिर बच्चों को निमंत्रित किया गया था उनके माता -पिता को नहीं। हमने पूरे होंठ  फैला कर एक मुस्कान दी और उलटे पाँव लौट लिए | अब जगह हमारे घर से काफी दूर थी कहाँ जाते?, तो वहीँ के कैफे में बैठ गए. बच्चों की पार्टी देखते रहे और अपने पैसों से कॉफी पीते  रहे. खैर पार्टी ख़तम हुई तो हम लेने पहुंचे बच्चों को, तो पता  चला अभी एक कार्यक्रम और बाकी है | हम वहीँ खड़े हो कर देखने लगे कि देखें क्या होता है… तो हुआ ये कि सारे प्रेजेंट्स लाकर बर्थडे बॉय के पास रख दिए गए और पास में उसकी मॉम बैठ गई एक पेन और पेपर लेकर और बच्चे ने शुरू किया एक एक करके गिफ्ट्स खोलना | वो एक एक गिफ्ट्स खोलता जाता और देने वाले को थैंक्स बोलता जाता और उसकी मम्मी अपनी डायरी में नोट करती जाती. अचानक हमें भारत में हुई शादियों का दृश्य याद आ गया जहाँ दुल्हन दुल्हे के पास उसकी बुआ या बहन खड़ी होती है अपना मोटा सा पर्स लिए और हर मेहमान से लिफाफा ले लेकर पर्स में रखती जाती है और उसका नाम लिखती जाती है। शुकर है लिफाफा वहीँ खोल कर नहीं देखा जाता। हमारे दिल की  धड़कन बढ़ती जा रही थी क्योंकि जितने भी गिफ्ट्स खुल रहे थे, सब एक ही करैक्टर (कार्टून करैक्टर) के थे. हमें समझ नहीं आ रहा था कि हमारे करैक्टरलेस  गिफ्ट का क्या रिएक्शन होगा उसपर | पर कर क्या सकते थे खड़े रहे. हमारे गिफ्ट की बारी आई… उसने धीरे से कहा थैंक्स…और एक तरफ रख दिया. लौटते हुए हम अपनी ख्यालों के फ्लैश बैक में चलते रहे …- जब हमारे भारत में किसी बच्चे का बर्थडे होता था तो गिफ्ट लेते हुए मम्मियां मना करती रहती थीं कि इसकी क्या जरुरत है और पीछे से बच्चा मम्मी का पल्लू खींचता रहता था कि क्यों मना कर रही हो, हम भी तो लेकर जाते हैं ना. और बेचारा इंतज़ार करता था कि कब मम्मियों का ये औपचारिक व्यवहार ख़तम हो और कब मम्मी उसे कहे कि ये लो इसे अन्दर वाले कमरे में जाकर रख दो. फिर सारी पार्टी भर बच्चा उन गिफ्ट्स को निहारता रहता था. कभी चुपके से किसी का थोडा सा पेपर हटा कर देखने कि कोशिश भी कर लेता था तो तुरंत पापा की आवाज़ आती थी, ये क्या बदतमीजी है? मैनर्स नहीं हैं जरा भी. भगवान जब सब्र बाँट रहा था तो सबसे पीछे खड़े थे क्या ?. मेहमानों को चले तो जाने दो, तब खोलना। बच्चा बेचारा अपना सा मुँह लिए मेहमानों के जाने का इंतज़ार करता रहता और उनके जाते ही टूट पड़ता गिफ्ट्स पर.
खैर घर आ गया. हम अपनी ख्यालों की दुनिया से बाहर आये और निश्चित किया कि इस बारे में यहीं के किसी पुराने बाशिंदे  से बात करेंगे और अपनी जर्नल नॉलेज बढायेंगे। और हमने  ऐसा किया भी | पता चला कि अमूमन तो इनविटेशन कार्ड पर ही बच्चे की पसंद लिखी होती है और अगर नहीं तो, हमें इनविटेशन मिलने के बाद उन्हें फ़ोन करके पूछना चाहिए था कि बच्चा क्या पसंद करता है, उसे कौन सा कार्टून करैक्टर पसंद है? और फिर वही गिफ्ट लेना चाहिए। खैर ये बात हमारे गले से उतरी तो नहीं पर फिर भी हमने गाँठ बाँध ली. अब बच्चे तो वहीँ पालने थे.फिर कुछ दिनों बाद हमारी इस जर्नल नॉलेज में एक और इजाफा हुआ, जब हम एक सुपर स्टोर में खड़े कुछ निहार रहे थे तो पास ही एक जोड़ा वहां लगी एक कम्पूटर स्क्रीन पर एक लिस्ट बनाने में मसरूफ़ था. बहुत उत्साहित था. हमें बात समझ में नहीं आई .खैर वो वहां से खिसके तो हमने उस कंप्यूटर तो टटोलना शुरू किया, तो पता चला कि वो कंप्यूटर विशलिस्ट बनाने की  मशीन है…नहीं समझे ? अभी समझाते हैं | असल में जब कोई भी किसी उत्सव को आयोजित करता है- मसलन शादी का, या गृह प्रवेश या कुछ भी, तो उसे जिस चीज़ की भी जरुरत या चाह होती है नई जिन्दगी या घर के लिए, तो वो वहां पर एक लिस्ट बना लेता है, जो उस स्टोर के साथ रजिस्टर हो जाती है. और जिसका लिंक हर मेहमान को दे दिया जाता है, कि जिससे जो भी कोई गिफ्ट लेकर आये वो उस लिस्ट को देखे जिसमें झाड़ू से लेकर होम थियेटर तक सब लिस्टेड है और अपनी औकात के अनुसार गिफ्ट चुन ले और पैसे दे दे. वो गिफ्ट उसके नाम से मेज़बान तक पंहुचा दिया जायेगा। कोई झंझट नहीं और पैकिंग पेपर भी बचा. मेज़बान  को भी अपनी जरुरत और पसंद की चीज़ मिली, कोई घर में रखा फालतू शो पीस नहीं 🙂 .तो जी बड़ा प्रेक्टिकल है सबकुछ. हमें ये देख कर हैरानी भी हुई और दुःख भी | हैरानी इसलिए कि कहाँ पहुँच गया जमाना और हम अभी तक वहीँ हैं कि जी तोहफे की कीमत नहीं, देने वाले की नीयत  देखी जाती है. और दुःख इसलिए कि हमने अपने माता पिता की कितनी डांट खाई है जब किसी गिफ्ट को देखकर मुँह बिसूरा करते थे और तपाक से सुनने को मिलता था गिफ्ट्स लेने के लिए किसी को पार्टी में बुलाते हो क्या ? जाने क्या सीखते हैं आजकल स्कूलों  में. और बड़ी देर तक मम्मी शिक्षा और संस्कारों पर भाषण देती रहती थीं.